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Written By Author डॉ. अशोक कुमार भार्गव
Last Updated : मंगलवार, 15 मार्च 2022 (20:09 IST)

'जागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक'

'जागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक' - 'Conscious consumer is the symbol of development'
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस (15 मार्च 2022) पर विशेष...
 
अर्थचिंतन की पूंजीवादी अवधारणा में यह स्वीकार्य था कि समाज में उपभोक्ता ही राजा होते हैं, क्योंकि इनकी रुचि, पसंद और मांग ही पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में निर्णायक होती है। इस स्थिति को अमेरिका के विलियम हेराल्ड हट ने पहली बार 'उपभोक्ता की सार्वभौमिकता' शब्द से निरूपित किया। जैसा कि एक उच्च डच कहावत है कि 'डी क्लांट इज कोनिंग' अर्थात ग्राहक राजा है।
 
समय के बदलाव के साथ विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की संकल्पना ने उपभोक्तावादी संस्कृति को प्रोत्साहित किया। बाजार नियंत्रित समाजों में प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण सृजित हुआ, जहां नैतिकता, ईमानदारी और मानवीय मूल्यों का अभाव था। विशुद्ध मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, अनैतिक व्यापार की दूषित मानसिकता ने उपभोक्ता की सार्वभौमिकता के प्रभाव को निस्तेज कर दिया।
 
यह धारणा विकसित हुई कि समाज के भीतर व्याप्त प्रत्येक तत्व उपभोग करने योग्य है। आवश्यकता बस इतनी है कि उसे सही तरीके से एक आवश्यक वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित कर दिया जाए। उपभोक्ताओं को रूपहले मायावी विज्ञापनों के आकर्षण की मृग-मरीचिका से भ्रमित कर उनके लिए महंगी और गैरजरूरी वस्तुओं की भूख जागृत की। आधुनिक जीवनशैली को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया।
 
बड़े-बड़े उद्योगपतियों और कंपनियों ने स्वयं को सामाजिक दायित्वबोध से मुक्त कर अपने उत्पादों के खोखले दावों और मिथ्या प्रचार के भ्रमजाल में उपभोक्ताओं को कैद कर लिया। बड़े-बड़े लोकप्रिय सेलिब्रिटियों ने भी कुछ अपवादों को यदि छोड़ दें तो बिना जांच-पड़ताल के ही ऐसे मिथ्या विज्ञापनों को रूपायित किया, जो उपभोक्ताओं के प्रति उनकी गैरजिम्मेदारी को प्रकट करते हैं। फलस्वरूप उपभोक्ताओं को असल और नकल के बीच की महीन रेखा को पहचानना कठिन हो गया।
 
ऐसी विषम परिस्थितियों ने उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उपभोक्ता आंदोलन को जन्म दिया, जो अमेरिका में रालफ नाडेर के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ। 15 मार्च 1962 को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने अमेरिकी संसद में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी विधेयक को मंजूरी दी जिसमें उपभोक्ता सुरक्षा का, सूचित किए जाने, चयन करने और सुनवाई करने के अधिकार थे। बाद में प्रतितोषण पाने और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार जोड़ा, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार घोषणापत्र में भी सम्मिलित थे।
 
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 15 मार्च 1983 से 'विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस' मनाना प्रारंभ किया। भारत में 1966 में मुंबई से फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन ने उपभोक्ता आंदोलन उद्योगपति जेआरडी टाटा के नेतृत्व में प्रारंभ किया। 1974 में बीएम जोशी ने पुणे में स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना की, तत्पश्चात देश के विभिन्न राज्यों में उपभोक्ता हितों के संरक्षण हेतु स्वयंसेवी संगठनों का गठन प्रारंभ हुआ और उपभोक्ता आंदोलन निरंतर आगे बढ़ता रहा।
 
भारत सरकार ने कानूनी स्तर पर 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया जिसमें 1993 एवं 2002 आवश्यक संशोधन किए गए। लेकिन सूचना क्रांति के विस्फोट के इस दौर में बाजार में आए बदलावों के चलते यह अनेक मामलों में लगभग अप्रासंगिक होने अनुचित व्यापारिक लेन-देन, वस्तुओं के कृत्रिम संकट, मूल्यों में हेराफेरी, अमानक और गुणवत्ताहीन वस्तुओं के विक्रय, वस्तुओं के घटिया उत्पादों, वजन, माप, मात्रा में बेईमानी तथा नए बाजार के उपभोक्ताओं की बदली हुई जरूरतों को पूरा करने के संबंध में पर्याप्त समाधान नहीं कर सका।
 
इसीलिए वर्ष 2019 में इस विधेयक में संयुक्त राष्ट्र संघ के उपभोक्ता संरक्षण पर जारी दिशा-निर्देशों को समाविष्ट कर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू किया गया। इस विधेयक में उपभोक्ता वह व्यक्ति है, जो अपने उपयोग के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से टेलीशॉपिंग, बहुस्तरीय मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किए जाने वाले सभी तरह के ऑनलाइन या ऑफलाइन लेन-देन भी सम्मिलित है किंतु ऐसे व्यक्ति नहीं, जो व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को खरीदते हैं।
 
इसमें उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए त्रिस्तरीय अर्द्धन्यायिक तंत्र के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन का प्रावधान है, जो राज्य और जिला स्तर पर भी गठित होंगे। यह प्राधिकरण अनुचित व्यापार प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों तथा उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का विनियमन के साथ वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र के रूप में भी कार्य करेगा जिसमें मुकदमे के बाद भी मध्यस्थता का प्रावधान है।
इस विधेयक में उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करने के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के गठन का प्रावधान है जिसमें कोई भी उपभोक्ता क्षेत्राधिकार अनुसार ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं।
 
जिला आयोग के आदेश के विरुद्ध राज्य आयोग तथा राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध राष्ट्रीय आयोग में अपील और अंतिम अपील करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय सक्षम है। अनुचित अनुबंध के विरुद्ध शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय आयोग में ही की जा सकेगी। कोई भी उपभोक्ता यदि मांगी गई क्षतिपूर्ति की राशि 1 करोड़ रुपए है तो जिला स्तर पर 1 करोड़ से अधिक किंतु 10 करोड़ से कम राशि होने पर राज्य स्तर पर और 10 करोड़ से अधिक राशि के मामलों की सुनवाई राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष होगी। इस विधेयक में ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार के लिए नियमों विनियमों का प्रावधान, जो सलाहकारी न होकर अनिवार्य है।
 
जहां तक सेलिब्रिटीज का प्रश्न है, वे समाज में अधिक लोकप्रिय प्रभावी और अनुकरणीय होते हैं। यदि उनके द्वारा भ्रामक विज्ञापन किया जाता है तो पहले अपराध के लिए 10 लाख रुपए तथा 1 साल का प्रतिबंध जबकि दूसरे अपराध के लिए 50 लाख का जुर्माना और 3 वर्ष तक प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है। इसी प्रकार भ्रामक विज्ञापन के लिए कंपनियों पर भी शिकंजा कसते हुए पहले अपराध के लिए 10 लाख और 2 वर्ष की जेल इसके बाद के अपराध के लिए 50 लाख रुपए जुर्माना और 5 वर्ष तक की जेल तथा खाद्य पदार्थों में मिलावट संबंधी प्रकरणों में जुर्माने के साथ उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।
 
भारत में उपभोक्ताओं को सशक्त समृद्ध बनाने के विशिष्ट प्रावधान होने के बावजूद सामाजिक व आर्थिक समस्याओं, गरीबी, निरक्षरता, जानकारी का अभाव, क्रयशक्ति में कमी और उपभोक्ताओं के संगठित न होने के कारण उनके अधिकारों के दमन, ठगी, धोखाधड़ी व व्यापार संबंधी अनुचित क्रियाकलापों की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं और विडंबना यह है कि पढ़े-लिखे तबके के उपभोक्ता भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं। वे ठगे जाने पर भी मौन रहते हैं और शिकायत नहीं करते।
 
नि:संदेह उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु सरकारी गैरसरकारी स्तर पर उपभोक्ता शिक्षा अभियान की आवश्यकता है। साथ ही अनैतिक व्यापार में लिप्त वर्गों को व्यावसायिक पवित्रता, नैतिकता, ईमानदारी और जवाबदेही के साथ मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ाना भी जरूरी है ताकि उपभोक्ता बाजारवाद की कठपुतली न बने। इस संबंध में शासन की ओर से कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपभोक्ताओं को कहीं से भी शिकायत ऑनलाइन दर्ज कराने के लिए 'ई दाखिल पोर्टल' प्रारंभ किया गया है जिसमें फाइलिंग, ऑनलाइन भुगतान, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई आदि के प्रावधान हैं ताकि उपभोक्ता के समय श्रम-धन की बचत के साथ त्वरित न्याय मिल सके।
 
लेकिन जब तक उपभोक्ता स्वयं जागरूक जिम्मेदार नहीं बनेंगे और अपने स्वर्णिम अधिकारों को जानेंगे नहीं, तब तक उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण संभव नहीं। प्रत्येक व्यक्ति एक स्वाभाविक उपभोक्ता है, चाहे वह शहरी ग्रामीण अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा कैसा भी हो। हम सभी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खरीददारी करते हैं किंतु समझदारी न रखी जाए तो हम धोखा खा सकते हैं। अत: जागरूक रहते हुए खरीददारी के पूर्व ठीक से जांच-पड़ताल, अवसान की तिथि, कीमत, वजन, मात्रा, माप, गुणवत्ता, उपयोगिता, मानक मार्क आदि का ध्यान रखते हुए दुकानदार से पक्का बिल लेना न भूलें।
 
सोशल मीडिया के विभिन्न प्रचार माध्यमों से सावधान रहें। जहां 5 मिनट में गोरा बनाने की क्रीम 10 मिनट में दुबला करने की मशीन, 1 मिनट में घने काले बाल करने की तरकीब, गोलियां खाते ही ताकत प्राप्त करने की पेशकश, 1 के साथ 2 फ्री जैसे आकर्षक विज्ञापनों की भ्रामक दुनिया से बहुत सावधान रहें। धोखा होने पर शांत न बैठे, क्योंकि हमारी उदासीनता व सज्जनता ही अनुचित व अनैतिक व्यापार प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करती है। इसीलिए यह संदेश घर-घर तक पहुंचाने की आवश्यकता है कि 'जागो ग्राहक! जागो!' हम समझें और समझाएं। उपभोक्ता शोषण के खिलाफ आवाज उठाएं। उपभोक्ता हेल्पलाइन में शिकायत करें।
 
इस संबंध में बड़े-बड़े उद्योगपतियों, उत्पादकों, व्यापारियों और कंपनियों आदि के लिए महात्मा गांधी के इस कथन के निहितार्थ को आत्मसात करने की आवश्यकता है कि 'उपभोक्ता हमारे परिसर में आने वाला सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। वह हम पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि हम उस पर निर्भर हैं। उससे हमारे काम में रुकावट नहीं आती, वह तो हमारा लक्ष्य है। वह हमारे कारोबार से अलग नहीं है, वरन उसका हिस्सा है। उसकी सेवा कर हम उस पर कोई एहसान नहीं करते बल्कि हमें ऐसा अवसर देकर वह हम पर एहसान करता है।' (लेखक मप्र के पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं।)
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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