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Written By Author विकास सिंह
Last Modified: गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020 (14:42 IST)

खास खबर : मध्यप्रदेश के उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक जीवन की अग्निपरीक्षा

उपचुनाव में भाजपा से ज्यादा सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर

खास खबर : मध्यप्रदेश के उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक जीवन की अग्निपरीक्षा - Madhya Pradesh by-election Jyotiraditya Scindia's reputation at stake
मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इस बार राजनीतिक दलों के साथ-साथ नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। मध्यप्रदेश में 10 नवंबर के बाद किसकी सरकार होगी इसको 28 सीटों पर आने वाले उपचुनाव के नतीजें बहुत कुछ तय करेंगे। प्रदेश के संसदीय इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हो रहे उपचुनाव में इस बार सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की प्रतिष्ठा तो दांव पर लगी ही हुई है लेकिन कांग्रेस छोड़ भाजपा नेता बने ज्योतिरादित्य सिंधिया की भविष्य की पूरी राजनीति को इन उपचुनाव के परिणाम तय करेंगे। 
 
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को सत्ता से बाहर कर भाजपा की सरकार बनाने में मुख्य किरदार बने भाजपा सांसद बने ज्योतिरादित्य सिंधिया का आने वाले समय में भाजपा के अंदर में क्या कद होगा इसको भी बहुत कुछ उपचुनाव के नतीजें ही तय करेंगे।   
उपचुनाव वाली 28 सीटों में से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल से आती है,जो ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है। ऐसे में सिंधिया के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती के सा अपनी लोकप्रियता के सहारे अपने साथ दलबदल कर आए नेताओं को फिर से विधानसभा पहुंचाना है। 
 
ग्वालियर-चंबल और सिंधिया घराने की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि मध्यप्रदेश में हो रहे उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक जीवन की अग्निपरीक्षा है। दलबदल करने के बाद उनके कंधों पर ही ग्वालियर चंबल के सभी 16 सीटों के साथ उनके कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट की सांवेर सीट और गोविंद सिंह राजपूत की सुरखी सीट को जिताने का पूरी जिम्मेदारी है। इन सीटों को जिताकर ही सिंधिया भाजपा में अपने को सिद्ध कर पाएंगे अन्यथा आने वाले समय में उनकी राह बहुत कठिन हो जाएगी। 
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. राकेश पाठक कहते हैं कि सिंधिया भले ही भाजपा में शामिल हो गए हो लेकिन आज भी भाजपा का एक धड़ा उनको स्वीकार नहीं कर पाया है। ऐसे में सिंधिया अगर अपने प्रभाव वाले क्षेत्र की आधी सीटें भी हार गए तो आने वाले समय में उनकी राह कांटों से भरी होगी।
वहीं दूसरी ओर अगर वह इस चुनावी समर में जीतते है कि आने वाले समय में भाजपा के एक बड़े नेता की रूप में उभरेंगे और वर्तमान में जो प्रदेश भाजपा का नेतृत्व है उसमें से कई चेहरे पर आने वाले समय में बड़ा रोड़ा बन जाएंगे। 
उपचुनाव में सिंधिया समर्थक एक बार फिर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच जाते हैं तो निश्चित तौर पर भाजपा में उनका कद बढ़ जाएगा और संघ और भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व सिंधिया को और आगे बढ़ाने का ही काम करेगा। उपचुनाव के परिणाम अगर सिंधिया के पक्ष में जाते तो वह प्रदेश भाजपा में एक नेतृत्वकारी भूमिका में भी नजर आ सकते है।   
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