-आदिल भट
India Israel diplomatic relations: भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल पर हमास के हमलों की कड़ी निंदा की। जिसके बाद ऐसे कयास लगने लगे कि शायद भारत अपनी आधिकारिक नीति में बदलाव की ओर बढ़ रहा है। जिस दिन हमास ने इजराइल पर हमला किया, उस दिन नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, 'हम इजराइल पर हमले की खबर से बेहद सदमे में हैं। 'हमारे ध्यान पीड़ितों और उनके परिवारजनों के साथ हैं। हम इस मुश्किल घड़ी में इजराइल के साथ खड़े हैं।'
यूरोपियन यूनियन, अमेरिका समेत जर्मनी और दूसरे देशों ने भी हमास को 'आतंकवादी गुट' घोषित किया हुआ है। हालांकि भारत अब भी इन देशों में शामिल नहीं है। हमास हमले पर नरेन्द्र मोदी के बयान के बावजूद भारत, इजराइल और फिलिस्तीन मसले पर संतुलन बनाकर चलने की कोशिश में लगा है।
भारत ने इन दोनों देशों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए हमेशा द्विपक्षीय बातचीत पर जोर दिया है। हमास हमले के 5 दिन बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बार फिर अपना पक्ष दोहराते हुए कहा कि 'भारत, इजराइल-फिलिस्तीन के बीच सीधी वार्ता के हक में है। एक संप्रभु और स्वतंत्र फिलिस्तीन जो अपनी स्वीकृत व सुरक्षित सीमाओं के भीतर इजराइल के साथ शांति से रह सके।'
उपनिवेशवाद विरोधी नीतियों का साया
भारत की वर्तमान नीति की जड़ें आधुनिक इजराइल की स्थापना के वक्त में समाई हैं। 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी हासिल करने के तुरंत बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन प्रशासित फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ वोट डाला था। भारत ने इजराइल की स्थापना के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में उसे शामिल करने के खिलाफ भी मतदान किया था।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और दूसरे नेता भी धर्म के आधार पर एक देश की स्थापना के विरोधी थे। उनका मानना था कि इजराइल के अस्तित्व को स्वीकारने का मतलब होगा पाकिस्तान की स्थापना को सही ठहराना जिसे धर्म पर ही आधारित माना गया।
इसके अलावा भारत फिलिस्तीन मुद्दे पर नर्म रुख रखता है, क्योंकि दोनों के बीच का संबंध साम्राज्यवाद विरोधी भावना पर आधारित है। जहां भारत ने 1950 में इजराइल देश को स्वीकार किया, वहीं अगले 4 दशकों तक कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के इजराइली प्रयासों को अस्वीकार किया।
1990 के दशक में सोवियत यूनियन के खत्म होने के बाद शीतयुद्ध के अंत और वैश्विक शक्ति के तौर पर अमेरिका के उभार के बाद 1992 में भारत ने आखिरकार तेल अवीव में अपना दूतावास खोला। हालांकि तब से भारत और इजराइल के कूटनीतिक संबंध काफी मजूबत हुए हैं, खासकर नरेन्द्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद।
मोदी और नेतन्याहू की नजदीकी
नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्य एशिया अध्ययन विभाग में प्रोफेसर पी.आर. कुमारस्वामी कहते हैं कि भारत और इजराइल के संबंध का विकास 'मान्यता देने से आगे बढ़कर एक दूसरे को समझने और अब ग्लानिरहित स्वीकार्यता' के रूप में विकसित हुए हैं।'
2014 में गाजा संकट के दौरान इजराइल के युद्ध अपराधों के लिए उस पर अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में मुकदमा चलाने के लिए 2016 में संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से भारत ने खुद को बाहर रखा। 2017 में नरेन्द्र मोदी इजराइल की यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। कुमारस्वामी ने डीडब्ल्यू से कहा, 'इस दोस्ती को सार्वजनिक तौर पर स्वीकर करने में कोई शर्म नहीं।'
सऊदी अरब, ओमान और यूएई में भारत के पूर्व राजदूत तलमीज अहमद ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि इस नजर से देखा जाए तो हमास हमले की निंदा करते हुए नरेन्द्र मोदी के शब्द, 'प्रधानमंत्री नेतन्याहू और मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंधों की झलक दिखाते हैं। भारत ने इससे पहले हमास के बारे में कभी कोई टिप्पणी नहीं की है।'
फिलिस्तीन का सवाल
नई दिल्ली में इंडियन काउंसिल फॉर वर्ल्ड अफेयर्स में सीनियर रिसर्च फैलो फज्जुर रहमान सिद्दीकी का मानना है कि 'भारत की इजराइल-फिलिस्तीन पॉलिसी यथार्थवाद और आदर्शवाद के दो पाटों के बीच चलती है' का समर्थन करने वाला पहला देश है।
विचारधारा और राजनीति के स्तर पर भारत के लिए फिलिस्तीन का समर्थन करना जरूरी था, जो आज भी जारी है। सिद्दीकी महात्मा गांधी के मशहूर शब्द दोहराते हैं, 'फिलिस्तीन, फिलिस्तीनियों का है, फ्रांस, फ्रेंच लोगों का।' डीडब्ल्यू से उन्होंने कहा, 'यह प्रतिबद्धता 20वीं सदी में शुरू हुए साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन के वक्त से जारी है, जब भारत उसका अगुआ था।'
हालांकि व्यावहारिकता के स्तर पर यह देखना अहम है कि भारत, इजराइली हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है। हाल में भारत से इजराइल को होने वाले निर्यात काफी बढ़े हैं। यहां तक कि दोनों देश लंबे वक्त से चल रही मुक्त-व्यापार वार्ता को ठोस रूप देने की उम्मीद भी कर रहे हैं।
मध्य एशिया में बदलाव और भारत
इजराइल की तरफ भारत की नरमी, मध्य एशिया में हो रहे बदलावों के मुताबिक ही है। संबंधों को सामान्य बनाने की एक कोशिश के तहत संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई ने 2021 में तेल अवीव में दूतावास खोला। इसके साथ ही वह मिस्र और जॉर्डन के बाद तीसरा अरब देश बन गया जिसने इजराइल के साथ पूरी तरह से कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। हमास हमले के कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि इजराइल, सऊदी अरब के साथ एक समझौता करने की कगार पर है।
मध्य एशिया में इन बदलावों की वजह से भारत के लिए भी मौका था कि वह अपने विकल्पों को आंके। फज्जुर रहमान सिद्दीकी कहते हैं, 'दोनों देशों के बीच संबंध आर्थिक कारकों और रणनीतिक मसलों पर आधारित हैं और इनकी प्रकृति लेन-देन वाली है।'