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Written By DW
Last Modified: रविवार, 12 फ़रवरी 2023 (08:19 IST)

भूकंप के बाद मलबे के नीचे कितने दिन जिंदा रह सकते हैं लोग?

भूकंप के बाद मलबे के नीचे कितने दिन जिंदा रह सकते हैं लोग? - how long can people survive in the rubble of an earthquake
तुर्की और सीरिया में भूकंप को आए तीन दिन से ज्यादा हो गए हैं। 15 हजार से ज्यादा लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है लेकिन अब भी हजारों लोग लापता हैं। ये लोग वे हैं जो मलबे के नीचे दबे हुए हैं। इन्हें बचाने के लिए बचाव दल दिन रात काम कर रहे हैं। अधिकारियों के बयान आ रहे हैं कि वे वक्त के खिलाफ काम कर रहे हैं क्योंकि हर गुजरते मिनट के साथ मलबे के नीचे दबे लोगों के जिंदा मिलने की संभावनाएं घटती जा रही हैं।
 
आखिर कब तक लोगों के जिंदा होने की उम्मीद में तलाश जारी रखी जानी चाहिए? विशेषज्ञ कहते हैं कि लोग हफ्ते भर तक मलबे के नीचे जिंदा रह सकते हैं। हालांकि यह निर्भर करता है कि वे किन हालात में फंसे हुए हैं, उन्हें गिरने की वजह से कितनी चोट लगी है और मौसम कैसा है।
 
लोगों को जल्द से जल्द निकाला जा सके इसलिए तुर्की और सीरिया में तो स्थानीय लोगों के अलावा विदेशों से भी बचाव कर्मियों के दल पहुंचे हुए हैं। इसके अलावा लापता लोगों के रिश्तेदार भी जीतोड़ मेहनत कर मलबा हटा रहे हैं कि जिंदा लोगों तक पहुंच सकें।
 
पहले 24 घंटे अहम
विशेषज्ञ कहते हैं कि जो लोग मलबे से जिंदा बचाए जाते हैं, उनमें से ज्यादातर भूकंप के 24 घंटे के भीतर मिल जाते हैं। उसके बाद हर दिन के साथ लोगों के जिंदा मिलने की संभावनाएं की लगातार घटती जाती हैं। इसकी मुख्य वजह चोटें होती हैं। गिरने से लोगों को गंभीर चोटें लगी होती हैं और भले ही एकदम उनकी जान नहीं जाती लेकिन समय पर इलाज ना मिलने के कारण और कई बार बहुत मलबे के नीचे दबे हुए ही बहुत ज्यादा खून बह जाने के कारण उनकी जान चली जाती है।
 
एक अन्य बात जो लोगों की जिंदगी और मौत के बीच फर्क तय करती है, वह है हवा और पानी की उपलब्धता। अगर लोग गहरे कहीं दब गए हैं जहां हवा समुचित उपलब्ध नहीं है तो सांस घुटने से लोगों की जान चली जाती है। पानी ना मिल पाने से भी लोगों की जान जा सकती है। इसके अलावा मौसम भी बहुत हद तक लोगों के बचे रहने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
 
सीरिया और तुर्की में राहत और बचाव कार्यों में मौमस बड़ी बाधा बना है। वहां इस वक्त भयानक सर्दी पड़ रही है। जिस रात भूकंप आया, उस रात भी कई जगह बर्फ गिरी थी और तापमान जीरो डिग्री से नीचे है।
 
सातवें दिन तलाश बंद
अमेरिका के मैसैचुसेट्स जनरल अस्पताल में इमरजेंसी और डिजास्टर मेडिसन एक्सपर्ट डॉ. जेरोन ली कहते हैं, "आमतौर पर तो पांचवें से लेकर सातवें दिन के बाद मलबे के नीचे से किसी का जिंदा मिलना दुर्लभ ही होता है। इसलिए अधिकतर राहत-बचाव दल उस वक्त तक लोगों की तलाश बंद कर देते हैं। लेकिन ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जिनमें लोग सात दिन के बाद भी जिंदा मिले। दुर्भाग्य से ये बहुत ही दुर्लभ और कभी-कभार सुनाई देने वाली कहानियां हैं।”
 
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी फाइनबर्ग के मेडिकल स्कूल में इमरजेंसी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. जॉर्ज शियांपास कहते हैं कि लोगों की बचने की संभावना में सबसे बड़ा रोड़ा पत्थरों या कंक्रीट के नीचे कुचले जाने से लगीं चोटें और अंगों का कट जाना होता है। वह कहते हैं, "पहला घंटा गोल्डन ऑवर होता है। अगर आप उन्हें पहले घंटे में बाहर नहीं निकालते तो उनके बचने की संभावना बहुत कम होती है।”
 
शियांपास कहते हैं कि ऐसे लोगों के बचने की संभावना भी बहुत कम होती है जो बीमार होते हैं और किसी तरह की दवा पर निर्भर होते हैं। साथ ही उम्र और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है।
 
युवाओं के बचने की संभावना ज्यादा
सैन फ्रांसिस्को की कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में काम करने वाले डॉ. क्रिस्टोफर कोलवेल भी इमरजेंसी मेडिसिन विशेषज्ञ हैं। वह कहते हैं, "आप बहुत से अलग-अलग परिदृश्य देखते हैं जिनमें कि लोगों को किसी चमत्कार की तरह बचा लिया गया और लोग बेहद भयानक परिस्थितियों में भी जिंदा रहे। वे अक्सर युवा लोग होते हैं और बहुत किस्मत वाले होते हैं कि किसी ऐसी जगह फंसे जहां उन्हें पानी या हवा जैसी चीजों की उपलब्धता रही।”
 
2011 में जापान में भूकंप और सूनामी के बाद एक किशोर और उसकी 80 वर्षीया दादी अपने घर के मलबे से नौ दिन बाद जिंदा मिले थे। उससे एक साल पहले हेती में भूकंप आया था। उस वक्त पोर्ट ओ प्रिंस में 16 साल की एक किशोरी 15 दिन बाद जिंदा मिल गई थी।
 
डॉ. शियांपास कहते हैं कि पीड़ित की मानसिक स्थिति भी बहुत कुछ तय करती है। वह बताते हैं कि जो लोग शवों के साथ फंसे हों और किसी से संपर्क में ना हों, उनके उम्मीद छोड़ देने की संभावना ज्यादा होती है। वह कहते हैं, "अगर आपके पास कोई है जो जिंदा है तो आप दोनों एक दूसरे का सहारा बन जाते हैं और संघर्ष करते रहते हैं।”
वीके/एए (एपी)
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