पिछले हफ्ते अमेरिका के आसमान में चीनी गुब्बारा नजर आने के बाद इसे लेकर कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर विवाद उठ खड़ा हो गया था। साथ ही इस कथित जासूसी गुब्बारे वाली घटना के बाद नए सिरे से आशंका जताई जा रही है कि बीजिंग अपने सबसे बड़े रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के बारे में खुफिया जानकारी कैसे जुटाता है।
एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे ने 2020 में कहा था, "चीनी जासूसी हमारे देश की जानकारी, बौद्धिक संपदा और हमारी आर्थिक ताकत के लिए सबसे बड़ा और दीर्घकालिक खतरा है।"
चीन के विदेश मंत्रालय ने समाचार एजेंसी एएफपी को दिए एक बयान में कहा कि उसका देश "जासूसी संचालन का विरोध करता है। और अमेरिकी आरोप 'गलत सूचना और नापाक राजनीतिक उद्देश्यों पर आधारित' हैं।"
चीन की जासूसी करने के अमेरिका के भी अपने तरीके हैं। वॉशिंगटन के पास चीन की निगरानी और खुफिया पहुंच तकनीक है, साथ ही मुखबिरों के कई नेटवर्क भी हैं।
चीन का जासूसी नेटवर्क
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 में कहा था कि उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने वाणिज्यिक साइबर जासूसी में शामिल नहीं होने का वादा किया था। बाद में वॉशिंगटन के बयानों ने संकेत दिया कि अभ्यास जारी था। बीजिंग ने हाल के वर्षों में अमेरिका की जासूसी कैसे की है? उसके कुछ उदाहरण इस तरह से हैं।
अमेरिका ने 2022 में अपनी वार्षिक खुफिया रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि एशियाई शक्ति चीन "अमेरिकी सरकार और निजी क्षेत्र के लिए सबसे व्यापक, सबसे सक्रिय और लगातार साइबर जासूसी के खतरे" का प्रतिनिधित्व करता है। शोधकर्ताओं और पश्चिमी खुफिया अधिकारियों के मुताबिक औद्योगिक और व्यापारिक रहस्यों को चुराने के लिए चीन प्रतिद्वंद्वी देशों के कंप्यूटर सिस्टम को हैक करने में माहिर हो गया है।
हैकर्स को कंपनियों में रखने का आरोप
2021 में अमेरिका, नाटो और अन्य सहयोगियों ने कहा कि चीन ने अपने सुरक्षा एजेंटों को ईमेल भेजने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के ईमेल सिस्टम में कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए "अनुबंध हैकर्स" को काम पर रखा था, कॉर्पोरेट डेटा और अन्य संवेदनशील जानकारी तक पहुंचा जा सकता है।
अमेरिकी सरकार के बयानों और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चीनी साइबर जासूसों ने अमेरिकी ऊर्जा विभाग, यूटिलिटी कंपनियों, दूरसंचार फर्मों और विश्वविद्यालयों को भी हैक किया है।
बीजिंग द्वारा जासूसी का खतरा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी फैल गया है क्योंकि ऐसी चिंताएं हैं कि देश से जुड़ी चीनी कंपनियों को सरकार के साथ जानकारी साझा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इन चिंताओं के आधार पर अमेरिका के न्याय विभाग ने 2019 में चीनी कंपनी हुवावेई पर व्यापार रहस्य और अन्य अपराधों को चुराने का आरोप लगाया था।
संदेह के दायरे में टिक टॉक
इसी तरह टिक टॉक को लेकर भी इन दिनों पश्चिम में ऐसी ही बहस चल रही है। कुछ सांसदों ने डेटा सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए चीनी कंपनी बाइटडांस द्वारा विकसित बेहद लोकप्रिय ऐप पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है।
विशेषज्ञों, अमेरिकी सांसदों और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बीजिंग सरकार भी खुफिया जानकारी इकट्ठा करने और संवेदनशील तकनीक चोरी करने में मदद करने के लिए विदेशों में चीनी नागरिकों पर निर्भर है। इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध मामलों में से एक जी चाओकुन का था, जिसे जनवरी में अमेरिका में आठ साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। उन पर चीनी खुफिया एजेंसी को संभावित भर्तियों के लिए अपने लक्ष्यों के बारे में जानकारी देने का आरोप लगाया गया था।
विदेश में कथित चीनी पुलिस स्टेशन
सितंबर 2022 में स्पेन में एक गैर-सरकारी संगठन, सेफगार्ड डिफेंडर्स ने कहा कि चीन ने कथित तौर पर कम्युनिस्ट पार्टी के आलोचकों को निशाना बनाने के उद्देश्य से दुनिया भर के विभिन्न देशों में 54 गुप्त पुलिस स्टेशन स्थापित किए हैं। नवंबर में नीदरलैंड्स ने चीन को वहां के दो कथित "पुलिस स्टेशनों" को बंद करने का आदेश दिया। एक महीने बाद चेक गणराज्य ने कहा कि चीन ने प्राग में ऐसे दो केंद्र बंद कर दिए हैं।
चीनी गुब्बारे के मामले के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने तो अपनी चीन यात्रा तक रद्द कर दी थी जबकि दोनों देश इस यात्रा से संबंधों की बेहतरी की उम्मीद लगाए हुए थे।
एए/सीके (एएफपी)