ओजोन को 365 दिन रखना होगा याद
ओजोन दिवस पर विशेष
किसी व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे विचारों में छुद्रता आती है और इस वैचारिक छुद्रता का अर्थ यह होता है कि हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू। पतन के इस क्रम में हमने ओजोन की उस छतरी को भी छलनी बना डाला है, जो सूरज की खतरनाक किरणों से हमें अब तक बचाती रही है। चिंता की बात यह कि अब यह छेद हमारे अस्तित्व के लिए अंतहीन सुरंग बनने की ओर बढ़ चला है। नासा के औरा उपग्रह से प्राप्त आंकड़े के अनुसार ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को अपने चरम पर पहुंच गया था, कोई 97 लाख वर्ग मील के बराबर। यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक है। 12 सितंबर, 2008 को छेद का आकार और बढ़ गया। सूरज से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणें हमारे अस्तित्व को छेद रही हैं। लेकिन इसके लिए कोई और नहीं, खुद हम जिम्मेदार है। आज हमें त्वचा कैंसर, त्वचा के बूढ़ा होने और आंखों की खतरनाक बीमारियों के खतरों से दो-चार होना पड़ रहा है। ओजोन क्षरण के कारण प्रति वर्ष दुनियाभर में मेलेनोमा के 130,000 से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं और 66,000 लोग प्रति वर्ष स्किन कैंसर से मारे जा रहे हैं। दरअसल, ओजोन क्षरण के लिए जिम्मेदार है, क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस और खेती में इस्तेमाल किया जाने वाला पेस्टीसाइड मेथिल ब्रोमाइड। रेफ्रीजरेटर से लेकर एयरकंडीशनर तक क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस पर निर्भर हैं, और हम इन उपकरणों पर। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि दोनों के उत्पादन और इस्तेमाल पर आज से पूर्ण प्रतिबंध भी लगा दिया जाए, तो भी ओजोन क्षरण की समस्या बनी रहेगी। क्योंकि वातावरण में पहले से मौजूद दोनों तत्वों की सफाई का कोई तरीका अभी तक नहीं इजाद हो पाया है और यह गैस तो अगले 100 सालों तक वातावरण में बनी रहेगी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सीएफसी पर पूर्ण प्रतिबंध संभव भी है? मोट्रियल प्रोटोकाल से जुड़े 30 देशों ने सीएफसी के इस्तेमाल में कमी लाने पर सहमति जताई है। लेकिन यह कमी कितनी होगी, इसका कोई आंकड़ा स्पष्ट नहीं है। वर्ष 2000 तक अमेरिका तथा यूरोप के 12 राष्ट्र सीएफसी के इस्तेमाल और उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर सहमत हो गए थे। इसे एक बड़ी उपलब्धि मानी गई थी।ओजोन चादर क्या है?अंटार्कटिका के ऊपर इस ओजोन छिद्र का पता 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जोसेफ फारमैन, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन ने लगाया था। इसके पहले वायुमंडल में ओजोन की चादर की खोज वर्ष 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिकों, चार्ल्स फैब्री और हेनरी बूइसॉ ने की थी।