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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : शनिवार, 30 दिसंबर 2023 (12:41 IST)

ईरानी सेब और अफगानी अखरोट ने बढ़ाई कश्मीरियों की परेशानी

ईरानी सेब और अफगानी अखरोट ने बढ़ाई कश्मीरियों की परेशानी - Iranian apples and Afghan walnuts have increased the trouble of Kashmiris
Jammu Kashmir news in hindi : कश्‍मीरियों की परेशानियों में बढ़ौतरी करने को अब अफगानिस्‍तान से आने वाला अखरोट भी अपनी अहम भूमिका निभने लगा है। पहले से ही कश्मीरी अखरोट, जो कैलिफोर्नियाई और चिली अखरोट के हमले से पीड़ित था, अब अफगानी अखरोट से खतरा पैदा हो गया है। यही नहीं ईरान से आने वाला सस्‍ता सेब पहले ही कश्‍मीरी सेब की वाट लगा चुका है।
 
कश्मीर अखरोट उत्पादक संघ के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान का कहना था कि अफगानिस्तान से भारत में बड़ी मात्रा में अखरोट का आयात किया गया था, जिससे इस विशेष उद्योग को नुकसान पहुंच रहा था। वे कहते थेकि हमें इन आयातों के कारण भारी नुकसान हो रहा है। दरअसल भारत और अफगानिस्तान के बीच मुक्त व्यापार समझौता है जिसके कारण अखरोट बड़ी मात्रा में भारत आते हैं।
 
walnut
खान कहते थे कि इसने हमारे घरेलू बाज़ार पर बड़े पैमाने पर कब्जा कर लिया है। हालांकि खान कहते थे कि वे अखरोट उद्योग को बचाने के लिए सरकार से संपर्क कर रहे हैं। उन्होंने एक चौंकाने वाला रहस्‍योदघाटन किया कि कई लोगों ने कम मांग के कारण कश्मीर में अखरोट का व्यापार करना छोड़ दिया है।
 
इस व्‍यापार से जुड़े लोगों का कहना था कि पिछले एक दशक से अखरोट की कीमतों में सुधार नहीं हो रहा है। अखरोट का व्यापार उस तरह नहीं हो रहा है जैसा कुछ साल पहले कश्मीर में होता था।

अखरोट के उत्‍पादक मानते हैं कि कैलिफोर्निया और चिली अखरोट ने पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर की उपज के बाजार को समान रूप से प्रभावित किया है।
 
व्यापारियों के अनुसार, स्थिति ऐसी है कि शीर्ष गुणवत्ता वाले अखरोट की गिरी 1000 रुपये प्रति किलोग्राम बिकती है। एक दशक पहले यह 1200 रुपये में बिकता था, जब भारतीय बाजारों पर केवल कश्मीरी अखरोट का राज था।
 
बाजार के रुझान के बारे में जानकारी देते हुए, एक अन्‍य अखरोट उत्‍पादक कहते थे कि कम गुणवत्ता वाला अखरोट, जिसमें कश्मीर में उत्पादित 8-0 प्रतिशत शामिल है, 150-250 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिकता है। वे कहते थे कि कुछ साल पहले कम गुणवत्ता वाली गिरी 300 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिकती थी।
जानकारों के मुताबिक, इस साल अखरोट गिरी के रेट करीब 50 फीसदी तक कम हो गये हैं।
 
अखरोट उत्‍पादकों के बकौल, कश्मीर के अखरोट उद्योग को बचाने के लिए अखरोट की नई किस्मों की शुरूआत भी उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है। एक अन्‍य उत्‍पादक कहते थे कि हमारे पास पारंपरिक अखरोट की किस्में हैं, जो पूरी तरह से जैविक हैं। कैलिफ़ोर्निया और चिली के अखरोट की तुलना में, गुणवत्ता बहुत कम है। इसलिए, हम संबंधित विभाग से विदेशी आयातों के आक्रमण से लड़ने के लिए नई किस्मों की शुरूआत को प्रोत्साहित करने की अपील कर रहे हैं।
 
इस बीच, अखरोट एक अन्‍य व्यापारी बशीर अहमद वानी ने कहा कि उनमें से कई लोगों ने कोई रिटर्न नहीं मिलने के कारण इस व्यापार को स्थायी रूप से छोड़ दिया है। उनके मुताबिक, अखरोट जैसे सेब कश्मीर की मुख्य नकदी फसल हुआ करते थे। हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस व्यापार से जुड़ा हुआ था। अब शायद ही, लोग बाजार की कम मांग के कारण अखरोट के व्यापार से जुड़े हैं।