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Last Updated : गुरुवार, 5 अप्रैल 2018 (13:57 IST)

हजार साल तक लड़ने की हसरत का अंत

हजार साल तक लड़ने की हसरत का अंत - Tributes paid to ZA Bhutto on death anniversary
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाक की एक पूर्व प्रधानमंत्री बेनजी‍र भुट्‍टो के पिता जुल्फिकार अली भुट्‍टो को वर्ष 1978 में रावलपिंडी की एक जेल में 4 अप्रैल को फांसी दी गई थी। 
 
फांसी पर लटकाए गए जुल्फिकार अली भुट्टो कोई साधारण आदमी नहीं थे। वे पाकिस्तान के ताकतवर राजनेताओं में से एक थे। कल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जुल्फिकार अली भुट्टो की याद में अवकाश घोषित किया गया। भुट्‍टो, पाकिस्तान के 9वें प्रधानमंत्री थे जिन्हें अपने देश में आधुनिक खयालों वाला राजनेता माना जाता था। वे ऑक्सफोर्ड में श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ पढ़े थे और उनकी एक छोटी सी गलती ने समूचे उपमहाद्वीप का इतिहास ही बदल दिया। 
 
भुट्‍टो 14 अगस्त 1973 से 5 जुलाई 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। 5 जुलाई 1977 को पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मोहम्मद जिया-उल-हक ने उनका तख्तापलट कर दिया और उन्होंने भुट्‍टो को एक समकालीन नेता की हत्या के मामले में जेल में डाल दिया था। इस मामले में खास बात यह थी कि जिया उल हक को सेना प्रमुख बनाने का फैसला भी भुट्‍टो का था जिन्होंने न सिर्फ भुट्‍टो को फांसी पर लटकाया वरन पाकिस्तान में सेना, मुल्ला मौलवियों और देश में इस्लामीकरण का एक ऐसा दौर शुरू किया जिसने पाकिस्तान को आतंकवादियों को पैदा करने वाली फैक्ट्री में बदल दिया।
 
समझा जाता है कि सेना प्रमुख जिया उल हक ने देश पर अपनी पकड़ बनाने के लिए 3 सितंबर 1977 को सेना से उन्हें गिरफ्तार करवा लिया। उन पर मार्च 1974 में एक विपक्षी नेता की हत्या का आरोप लगा था। लेकिन हत्या का यह मामला स्थानीय कोर्ट की बजाय सीधे हाई कोर्ट में चला गया। 
 
समझा जाता है कि हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में भी भुट्टो को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला था और वे आखिरी समय तक अपने वकील से मिलने के लिए ही तरसते रहे। 
 
18 मार्च 1978 के लाहौर में पंजाब हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि जुल्फिकार अली भुट्टो को नवाब मोहम्मद अहमद खान की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटकाया जाए। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा लेकिन भुट्‍टो का भाग्य पहले ही तय किया जा चुका था। विदित हो कि नवाब मोहम्मद अहमद खान पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी के पूर्वज थे और वे उस समय पाकिस्तान मुस्लिम लीग के समन्वयक थे। कोर्ट को बताया गया कि भुट्‍टो ने नवाब मोहम्मद अहमद खान की हत्या किए जाने का आदेश दिया था। 
 
भुट्टो की जीवनी लिखने वाले और पंजाब प्रांत के पूर्व गवर्नर दिवंगत सलमान तासीर ने अपनी किताब 'भुट्टो' में लिखा है, ' जेल के शुरुआती दिनों में भुट्टो जब टायलट जाते थे, तब भी एक गार्ड वहां भी उनकी निगरानी करता था। भुट्टो को ये बात इतनी बुरी लगती थी कि उन्होंने करीब करीब खाना ही छोड़ दिया था ताकि उन्हें टॉयलट न जाना पड़े। कुछ दिनों बाद इस तरह की निगरानी खत्म कर दी गई थी और उनके लिए कोठरी के बाहर एक अलग से टॉयलट बनवाया गया।' सलमान तासीर की हत्या लाहौर में उनके ही एक बॉडीगार्ड मुमताज कादरी ने गोलियां चलाकर की थी। 
 
तीन अप्रैल, 1978 को शाम 6 बजे फांसी की जानकारी दी गई। शाम 6.05 बजे जेल के अधिकारियों, मैजिस्ट्रेट और डॉक्टर ने भुट्टो को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी फांसी की सजा के खिलाफ अपील रद्द हो गई है। यह खबर सुनकर भुट्टो के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। तब भुट्टो ने जेल अधीक्षक से कहा, 'मुझे फांसी से 24 घंटे पहले सूचित करना चाहिए था। आज दोपहर 11.30 बजे जब मेरी बेटी और पत्नी मुझसे मिलने आईं तो उन्हें भी इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी।' भुट्टो ने कहा कि चूंकि उन्हें फांसी का कोई लिखित आदेश नहीं दिखाया गया है इसलिए वह अपने वकील से जल्द से जल्द मिलना चाहेंगे। लेकिन जेल अधिकारियों ने उनके इस अनुरोध को नहीं माना।
 
तब रावलपिंडी सेंट्रल जेल में खुफिया अधिकारी रहे कर्नल रफीउद्दीन ने अपनी किताब 'भुट्टो के आखिरी 323 दिन' में लिखा है, 'जब अधिकारी भुट्टो को फांसी की सूचना देकर जाने लगे तो वे कांपते हुए उठे। उन्होंने कहा कि उनके पेट में दर्द हो रहा है। उन्होंने अपने सहायक अब्दुर रहमान को बुलाया और दाढ़ी बनाने के लिए गर्म पानी लाने को कहा। फिर भुट्टो ने रफी से पूछा, 'रफी, क्या ड्रामा रचा जा रहा है?' रफी चुप रहे। जब भुट्टो ने दोबारा वही सवाल किया तो उन्होंने उन्हें साफ बता दिया कि उन्हें आज ही फांसी दी जाएगी। ये सुनकर थोड़ी देर के लिए भुट्टो के चेहरे पर अजीब से सवाल फैल गए और फिर वह बोले, 'ठीक है, सब खत्म..ठीक है सब खत्म।' 
 
उनकी जीवनी लेखकों के अनुसार फांसी से कुछ देर पहले जब सुरक्षाकर्मियों ने भुट्टो के हाथ पीछे कर बांधने की कोशिश की तो उन्होंने उसका विरोध किया लेकिन फिर भी उनके हाथों में जबरदस्ती रस्सी बांधी गई। उसके बाद उन्हें एक स्ट्रेचर पर लिटा कर कुछ दूर ले जाया गया। उस समय रात करीब दो बजे का समय था। भुट्टो को फांसी पर लटकाने के लिए पहले से ही सारी तैयारियां थीं। जैसे ही घड़ी में देर रात 2 बजकर 4 मिनट हुए, जल्लाद ने भुट्टो के कान में कुछ फुसफसाया और लिवर दबा दिया। भुट्टो आधे घंटे तक फांसी के फंदे पर लटके रहे। इसके बाद एक डॉक्टर ने भुट्टो की जांच की और उन्हें मृत घोषित कर दिया। कश्मीर को लेकर वे अपने भाषणों में भारत से हजार वर्षों तक जंग लड़ने की बात करते थे लेकिन जेल में फांसी के साथ ही उनकी हजार साला जंग की हसरत ने भी दम तोड़ दिया।  
 
हालांकि भुट्‍टो भी पाकिस्तान के एक ख्यात राजनेता थे लेकिन वे जिया उल हक और उनके बाद के नेताओं की तरह मजहबी कट्‍टरपंथी नहीं थे और यही बात उनकी बेटी बेनजीर के बारे में कही जा सकती है। हालांकि भारत के खिलाफ जहर उगलना हर पाक नेता की मजबूरी है लेकिन तब यह इतनी वीभत्स नहीं थी कि इंग्लैंड में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शिष्य रहे एक शिक्षित आदमी को पूरी तरह से खूंखार सेनाअधिकारी या आतंकवादी बना देती। 
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