पाकिस्तान के 23वें प्रधानमंत्री के रूप में शहबाज शरीफ ने ली शपथ, जानिए उनसे जुड़े विवादों की कहानी
इस्लामाबाद। शहबाज शरीफ ने सोमवार को पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली जिससे उनके पूर्ववर्ती इमरान खान के खिलाफ 8 मार्च को लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बाद से देश में बनी अनिश्चितता की स्थिति समाप्त हो गई। सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी की अनुपस्थिति में 70 वर्षीय शहबाज को पद की शपथ दिलाई। अल्वी पीएमएल-एन नेता के शपथ लेने से पहले अस्वस्थता के कारण छुट्टी पर चले गए।
इससे पहले पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के संसद में मतदान में भाग नहीं लेने और वॉकआउट करने की घोषणा की थी। इसके बाद शहबाज प्रधानमंत्री पद की दौड़ में अकेले उम्मीदवार रह गए थे। स्पीकर अयाज सादिक ने इस सत्र की अध्यक्षता की और नतीजों की घोषणा की जिसके अनुसार शरीफ को 174 वोट मिले और उन्हें पाकिस्तान इस्लामी गणराज्य का प्रधानमंत्री घोषित किया जाता है। इससे पूर्व डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने कहा था कि उनकी अंतरात्मा सत्र के संचालन की इजाजत नहीं देती।
विवादों से भी रहा है नाता : पाकिस्तान के निर्वाचित 23वें प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-नवाज) के 70 वर्षीय नेता शहबाज शरीफ की छवि एक सख्त मिजाज नेता की रही है और विवादों से भी उनका नाता जुड़ा रहा है। पाकिस्तान के लाहौर में 23 सितंबर 1951 को जन्मे शहबाज शरीफ का पूरा नाम मियां मुहम्मद शहबाज शरीफ है। वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ के भाई हैं और 3 भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता मुहम्मद शरीफ व्यापारी थे।
शहबाज का पैतृक स्थान अमृतसर के पास जाति उमरा गांव था, लेकिन 1947 में भारत का बंटवारा होने पर उनके पिता परिवार के साथ लाहौर में आकर बस गए। पिता की तरह ही शहबाज ने भी अपने करियर की शुरुआत व्यापारी के तौर पर थी। लाहौर की एक सरकारी विश्वविद्यालय के स्नातक करने के बाद शहबाज ने अपना पारिवारिक व्यापार इत्तेफाक ग्रुप संभालने लगे। बताया जाता है कि शहबाज अपने भाई नवाज से ज्यादा अमीर हैं।
शहबाज ने राजनीतिक सफर की शुरुआत 80 के दशक में की थी। वर्ष 1988 में शहबाज शरीफ ने पहली बार पंजाब प्रांत की लाहौर विधानसभा से चुनाव जीता, लेकिन 1990 में विधानसभा भंग हो गई। इसके बाद 1990 में उन्होंने नेशनल असेंबली की चुनाव में जीत हासिल की, लेकिन 1993 में नेशनल असेंबली भी भंग हो गई और शहबाज की सदस्यता चली गई, लेकिन उसी साल उन्होंने फिर लाहौर विधानसभा और नेशनल असेंबली का चुनाव जीत लिया। बाद में उन्होंने नेशनल असेंबली की सीट छोड़ दी।
वर्ष 1997 में शहबाज ने पीएमएल (एन) की टिकट पर पंजाब प्रांत का चुनाव लड़ा और वहां के मुख्यमंत्री बने। 2 साल बाद 1999 में पाकिस्तान में सेना ने तख्तापलट कर दिया और शहबाज की मुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई। इसके बाद उन्हें परिवार के साथ देश छोड़कर दुबई जाना पड़ा। वे 2007 में पाकिस्तान लौटे और जून 2008 में फिर से पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए। वे तीसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे। उनके नाम सबसे ज्यादा लंबे समय तक पाकिस्तान वाले पंजाब के मुख्यमंत्री रहने वाले नेताओं में शुमार है।
शहबाज ने इससे पहले 2018 में भी प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ा था जिसमें खान को 176 वोट मिले थे और उस समय शरीफ को केवल 96 मत ही हासिल हो सके थे। शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई हैं, जो इस समय लंदन में एक तरह से राजनीतिक निर्वासन की जिंदगी बिता रहे हैं। इमरान खान प्रधानमंत्री बन गए और शहबाज विपक्ष के नेता। मौजूदा समय तक वे नेशनल असेंबली में ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। वे अपनी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। शहबाज मशहूर शायर मुहम्मद इकबाल को अपनी प्रेरणा मानते हैं। उन्हें नई भाषाएं सीखना भी पसंद है। वे कई भाषाएं बोल भी लेते हैं जिनमें उर्दू, पंजाबी, सिन्धी, पश्तो, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच और अरबी हैं।
शहबाज का विवादों से भी दामन अछूता नहीं रहा है। वर्ष 2020 के सितंबर महीने में शहबाज की हवाला कारोबार के एक मामले में गिरफ्तारी हो चुकी है। उनके ऊपर अरबों रुपए के धन के मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लग गया था। उस समय उनकी पार्टी ने इमरान सरकार पर विपक्षियों को दबाने के लिए निराधार इस तरह की कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। शहबाज को अप्रैल 2021 में लाहौर उच्च न्यायालय से जमानत मिल गई थी, पर उनके खिलाफ अब भी मामले अदालतों में लंबित हैं।