प्राडा ने मिलान फैशन वीक में मंच पर उतारी 1.20 लाख की कोल्हापुरी चप्पल, ये देख क्यों भड़के भारत के लोग, जानिए पूरा मामला
kolhapuri chappal at prada milan fashion week 2025 : फैशन की दुनिया में, कुछ चीजें कालातीत होती हैं, और कोल्हापुरी चप्पल निश्चित रूप से उनमें से एक है। सदियों से महाराष्ट्र की पहचान रही इन चप्पलों को हाल ही में मिलान फैशन वीक में अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड प्राडा (Prada) ने अपने समर शो में प्रस्तुत किया। लेकिन जैसे ही भारत के लोगों ने प्राडा के मॉडल्स को इन चप्पलों के साथ देखा सोशल मीडिया पर हलचल मच गई और लोग प्राडा की इस हरकत को आड़े हाथों लेने लगे। आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला और साथ ही जानते हैं कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास:
मिलान फैशन वीक में प्राडा के समर कलेक्शन पर क्यों छिड़ी बहस
फैशन वर्ल्ड में दिलचस्पी रखने वालों के लिए, फैशन शो का बहुत इंतजार होता है। ये एक ऐसा कार्यक्रम होता है जिसमें बड़ी-बड़ी डिजाइनर कंपनियां अगले सीजन के लिए अपने डिज़ाइन लॉन्च करती हैं। वे बताती हैं कि अगले सीजन उनकी कंपनी इसी किस्म के, इसी रंग, टेक्स्चर, डिज़ाइन के कपड़े या एक्सेसरी बनाएगी। ऐसा ही एक समर शो इटली के मिलान में चल रहा था - मिलान फैशन वीक।
इस बार, लग्जरी ब्रांड प्राडा ने अपने कलेक्शन में कुछ ऐसे सैंडल पेश किए जो दिखने में काफी हद तक पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों जैसे थे। हालांकि, इन सैंडलों की कीमत आसमान छू रही थी, जो कि हजारों डॉलर में थी और यहीं से विवाद शुरू हुआ।
सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
जैसे ही प्राडा की इन चप्पलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं। मुख्य मुद्दा यह था कि प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पल के डिज़ाइन से प्रेरणा ली और उसे एक नया, महंगा रूप दिया, लेकिन इन चप्पलों के लिए भारत के कोल्हापुर के कारीगरों को कोई क्रेडिट क्यों नहीं दिया गया?
कई लोगों ने तर्क दिया कि प्राडा ने एक पारंपरिक भारतीय उत्पाद के डिज़ाइन को उठाया, उसे अपना नाम दिया, और उसे अत्यधिक कीमत पर बेचकर मुनाफा कमाया, जबकि उन कारीगरों को इसका कोई लाभ नहीं मिला जो सदियों से इन चप्पलों को बनाते आ रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि प्राडा ने संभवतः इन चप्पलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को पूरी तरह से नहीं समझा या उसका सम्मान नहीं किया। बतादें प्राडा ने इन चप्पलों की कीमत करीब 1 लाख 20 हजार रुपये रखी है।
कोल्हापुरी चप्पल: भारत की सांस्कृतिक विरासत
आइए आज हम आपको कोल्हापुरी चप्पल के इतिहास और महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं।
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कोल्हापुरी चप्पलों की जड़ें 13वीं शताब्दी में हैं, जब राजा बिज्जल और उनके मंत्री बसवन्ना के शासनकाल में इनका विकास हुआ था।
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कोल्हापुरी चप्पल पूरी तरह से हाथों से बनाई जाती हैं, जो प्रत्येक जोड़ी को अद्वितीय बनाती हैं। खास बात ये है कि दो कोल्हापुरी चप्पलें कभी एक सी नहीं होतीं।
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इनमें प्राकृतिक रूप से रंगे गए चमड़े का उपयोग होता है, जो इन्हें टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाता है।
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चप्पल के सोल में बीजों को बिछाया जाता है ताकि चलते वक्त ये आवाज कर सकें। पुराने समय में ग्रामीण और जंगल के नजदीक रहने वाले लोग इन चप्पलों की इसी आवाज की वजह से इन्हें पहनते थे ताकि जानवर इंसान की आहट से दूर चले जाएं।
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कोल्हापुरी चप्पल अपने सपाट तलवों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो पहनने में बेहद आरामदायक होते हैं।
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अपनी मजबूत बनावट के कारण कोल्हापुरी चप्पल लंबे समय तक चलती हैं।
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चप्पलों का डिज़ाइन ऐसा होता है कि ये पैरों में आसानी से फिट हो जाती हैं और घंटों चलने के बाद भी थकान नहीं होती।
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जुलाई 2019 में कोल्हापुरी चप्पल को भौगोलिक संकेत (GI टैग) मिला, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि ये चप्पलें कोल्हापुर की विशेष पहचान हैं।