गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. How Germany churches became dens of sexual abuse?

कैसे जर्मनी के चर्च बन गए यौन दुराचार के अड्डे?

Germany churches
जर्मनी के एवैंजेलिकल (प्रेटेस्टैंट) चर्च द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र शोध टीम ने 26 जनवरी को एक ऐसा अध्ययन प्रस्तुत किया, जिससे कैथलिक चर्च की अपेक्षा उदार और सुधारवादी समझे जाने वाले इस ईसाई संप्रदाय की भी चूलें हिल गई हैं। टीम को पता लगाना था कि एवैंजेलिकल संप्रदाय के गिरिजाघरों में यौन दुराचार की क्या स्थिति है। इस टीम ने पाया कि एवैंजेलिकल गिरिजाघरों में भी यौन दुराचार के उससे कहीं अधिक आपराधिक मामले होते हैं, जितने इस संप्रदाय के धर्माधिकारी पचा सकते हैं।

870 पृष्ठों के अपने अध्ययन में शोधकों ने उन ठेठ एवैंजेलिकल धारणाओं और तौर-तरीकों पर भी प्रकाश डाला है, जिनसे इस संप्रदाय के गिरजाघरों में यौन दुराचार संभव हो पाते हैं और पीड़ितों की सुनवाई या तो हो नहीं पाती या दबा दी जाती है। अध्ययनकर्ता जितनी गहराई में जाना और यौन दुराचार की शिकायतों वाली जितनी फ़ाइलें आदि पाना चाहते थे, वह संभव नहीं हो पाया।

उन्हें 16 राज्यों वाले जर्मनी के केवल 20 स्थानीय एवैंजेलिकल गिर्जाघरों और 'डियाकोनिया' (जर्मन भाषा में डियोकनी) कहलाने वाली उसकी समाज सेवी संस्था को मिली कुल मिलाकर केवल 2225 पीड़ितों की फ़ाइलें दी गईं। इन फ़ाइलों में दर्ज शिकायतों के अनुसार जिन 1259 सामान्य कर्चारियों और धर्मधिकारियों को दोषी ठहराया जा सकता है, उनमें से 511 पादरी (पुरोहित) थे।

सबसे अधिक य़ौनशोषण बच्चों काः 2020 में शुरू हुए इस अध्ययन से पहले जर्मन एवैंजेलिकल चर्च के उच्च धर्मधिकारी, यौन दुराचार से पीड़ितों की संख्या कुल करीब 900 तक ही मान कर चल रहे थे। अध्ययन टीम के प्रमुख, मार्टिन वात्सलाविक का किंतु कहना था कि पीड़ितों की असली संख्या इससे कहीं अधिक होनी चाहिए। अकेले एक ज़िले की फ़ाइलों में मिले नामों की सरसरी तौर पर गणना के आधार पर वे कहेंगे कि पूरे जर्मनी के एवैंजेलिकल चर्चों में, यौन दुराचार झेल चुके लोगों की संख्या 9000 से कहीं अधिक, और उनके साथ दुराचार करने वालों की संख्या भी 3400 से कहीं अधिक होनी चाहिए।

सबसे अधिक य़ौनशोषण बच्चों का हुआ है। दूसरे शब्दों में, यह अनुमान भी पानी पैर तैर रहे उस बर्फीले हिमशैल (आइसबर्ग) के समान है, जिसका पानी से ऊपर दिख रहा सिरा, उस हिस्से से कई गुना छोटा होता है जो पानी में डूबा होने के कारण दिखई नहीं पड़ता।

चर्च के लिए चपत के समानः जर्मनी के एवैंजेलिकल चर्च की सर्वोच्च धर्माधिकारी एक महिला बिशप हैं। नाम है किर्सटन फ़ेअर्स। कैथलिक संप्रदाय में तो कोई महिला पादरी या बिशप बन ही नहीं सकती। सारे पद केवल ब्रह्मचारी पुरुषों के लिए आरक्षित हैं। एक महिला होते हुए भी किर्सटन फ़ेअर्स ने अपने संप्रदाय के गिरिजाघरों में चल रहे यौन दुराचार के गोरखधंधों को जानने-समझने और उन पर विराम लगाने के प्रति, लगता है वह दिलचस्पी नहीं दिखाई, जो दिखाई जाना चाहिए थी। 870 पृष्ठों वाले अध्ययन को स्वीकार करते समय वे केवल यही कह पाईं कि 'मैं एकदम से विचलित हूं।' अन्य उपस्थित धर्माधिकारियों ने भी माना कि यह तो उनके चर्च के लिए एक संस्थागत, और स्वयं उनके लिए भी व्यक्तिगत चपत के समान है।

अध्ययन टीम के सदस्य टोमास ग्रोसब्यौल्टिंग ने, जो अध्ययन का सहलेखक होने के साथ-साथ एक इतिहासकार भी हैं, एक अख़बार से इस पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पोंगापंथी समझे जाने वाले कैथलिक चर्च और प्रगतिशील समझे जाने वाले एवैंजेलिकल चर्च में कितनी सारी समानताएं हैं। अध्ययन से दोनों की अलग-अलग पंथिक और सांस्कृतिक पहचान का दावा भी झूठा साबित हो गया। 'लोकतंत्र, सहभागिता और संघात्मक ढांचों की चिकनी-चुपड़ी बातों द्वारा अपने आप को दोषमुक्त करने वाला एवैंजेलिकल विमर्श भी अब धवस्त हो गया!'

सच्चाई उजागर करने में रुचि नहीं : जर्मनी के एवैंजेलिकल चर्च ने चार वर्षों तक चले इस अध्ययन के लिए 36 लाख यूरो (1यूरो=90 रुपए) ख़र्च किए हैं। अध्ययन कर्ताओं को तब भी शिकायत थी कि उन्हें चर्च के उन कर्मचारियों के काम करने के तौर-तरीकों से संबंधित फ़ाइलें नहीं दी गईं,जिन्हें गिरिजाघरों में होने वाले यौन दुराचार के मामलों को दर्ज करने और आवश्यक कार्रवाई करने का कार्यभार सौंपा गया था।

शिकायत यह भी थी कि क्षेत्रीय चर्चों को और समाज सेवक संस्था ‘डायकोनिया’ को भी अपने आप से पूछना चाहिए कि ‘इवेंजेलिकल चर्च में होने वाले दुर्व्यवहार से बड़े पैमाने पर क्या वे वास्तव में निपटना चाहते भी हैं?’
यदि चाहते हैं तो इसके लिए बाहरी विशेषज्ञों और शिकायत निकायों की आवश्यकता है। क्षेत्रीय चर्चों में इस क्षमता की कमी है। यौन दुराचार के मामलों को ‘वास्तव में उजागर करने में उनकी रुचि संभवतः है ही नहीं।‘

सबसे धनी ईसाई संप्रदायः बात जर्मनी के चाहे कैथलिक चर्च की हो या एवैंजेलिकल (प्रोटेस्टैंट) चर्च की, दोनों दुनिया के दो सबसे धनी और प्रभावशाली ईसाई संप्रदाय हैं। दोनों के पास अरबों यूरो के बराबर चल-अचल संपत्तियां हैं। ज़मीन-जायदाद है। कार्यालय भवन और रिहायशी बिल्डिंगें हैं। स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं। अस्पताल और वृद्धावस्था आश्रम हैं। पुस्तकालय और प्रकाशन गृह हैं। दोनों बहुत बड़ी धनी-मानी व्यावसायिक कंपनियों के समान हैं।

ऐसा शायद ही कोई कार्यक्षेत्र होगा, जिसमें जर्मन चर्चों का दखल न हो। उनकी आय का सबसे बड़ा स्रोत है, अपने भक्तजनों से मिलने वाला चर्च टैक्स। कैथलिक या एवैंजेलिकल चर्च की सदस्यता वाला हर व्यक्ति सरकार को जितना आयकर देता है, उसके 6 से 8 प्रतिशत के बराबर उसे अलग से चर्च टैक्स भी देना पड़ता है। तथाकथित सेक्युलर जर्मनी का सरकारी आयकर विभाग ही नैकरी-पेशा लोगों के वेतनों और अन्य लोगों की कारोबारी आय से यह चर्च-टैक्स काट कर संबद्ध संप्रदाय वाले चर्च के बैंक खाते में जमा कर देता है। जर्मनी के कैथलिक संप्रदाय वाले चर्चों को 2022 में इस प्रकार 6 अरब 85 करोड़ यूरो की और एवैंजेलिकल संप्रदाय वाले चर्चों को 6 अरब 24 करोड़ यूरो की आय हुई।

सरकार से भी करोड़ों यूरो मिलते हैः एक पुराने समझौते के अधीन जर्मनी की राज्य सरकारें भी दोनों संप्रदायों के गिरिजाघरों के रखरखाव के नाम पर हर साल उनकी मुट्ठी गरम करती हैं। कैथलिक संप्रदाय को 2022 में 35 करोड़ 50 लाख यूरो और एवैंजेलिकल संप्रदाय को 24 करोड़ 80 लाख यूरो मिले। क़ानून के आगे सिद्धांततः एक सामान्य नागरिक और चर्च का कोई धर्माधिकारी एकबराबर है। पर व्यवहारतः धर्माधिकारी, सामान्य नागरिक से कहीं ऊपर है। किसी अपराध के प्रसंग में जर्मन पुलिस किसी पादरी, बिशप या कार्डिनल को हाथ नहीं लगाएगी।
जर्मनी के ही राष्ट्रीय रेडियो प्रसारक ‘डोएचलांड फुंक’ के अनुसार, आरोप चाहे जितना गंभीर रहा हो, वर्तमान संघीय जर्मनी के इतिहास में ‘2023 तक किसी भी बिशप के घर की कभी तलाशी नहीं ली गई। यौन दुराचार के पीड़ितों और उन के परिजनों को डरा-धमका कर या पैसे आदि का प्रलोभन देकर कोई क़ानूनी क़दम उठाने से रोका गया। कोई कार्रवाई तब तक नहीं होने दी गई, जब तक इतना समय बीत नहीं गया कि उसके बाद क़ानूनी कार्रवाई हो ही नहीं सकती’

ईसाई चर्चों की है अपनी न्याय व्यवस्थाः जर्मनी के दोनों ईसाई संप्रदायों के अपने क़ानून और अपनी न्याय व्यवस्था है। वे राष्ट्रीय न्याय प्रणाली से ऊपर नहीं हैं, पर अपने आंतरिक मामलों में अपने नियमों पर चलने के लिए स्वतंत्र हैं। अपने नियमों के अनुसार वे अधिक से अधिक किसी पादरी को सज़ा के तौर पर केवल सेवामुक्त कर देंगे, बस। जेल की सज़ा देने का प्रावधान है ही नहीं। यौन दुराचार पीड़ितों और उनके परिजनों से यही कहा जाता है कि वे सबसे पहले इस प्रकार के मामलों की सुनवाई करने वाले अपने बिशप-क्षेत्र के प्रभारी से मिलें। वहीं उनकी शिकायत सुनी जायेगी। शिकायत की विश्वसनीयता आंकी जाएगी। सारी बातचीत का संलेख (प्रोटोकोल) तैयार किया जायेगा। बाद में आरोपित से पूछताछ होगी। यह सब किंतु देर करने और कोई क़दम उठाने से बचने का हथकंडा है।

कैथलिक चर्च के प्रसंग में 2002 से यौन दुराचार के मामले वैटिकन में कैथलिक धर्मसभा के पास भेजने का भी नियम है, पर इसका हमेशा पालन नहीं किया जाता। कैथलिक चर्च से संबंधित किसी व्यक्ति पर लगाया गया आरोप यदि विश्वसनीय है और वह ऐसा है कि उसे देश की क़ानून-व्यस्था के हाथों में दिया जाना चाहिए, शिकायतकर्ता भी यदि यही चाहता है, तो उसे पुलिस के पास आगे बढ़ा दिया जाएगा, अन्यथा नहीं। लेकिन, देखने में यही आता है कि कैथलिक बिशप अपनी ही बनाई इस प्रक्रिया की ख़ास परवाह नहीं करते।

फैसला कम, ढकोसला अधिकः कोई मामला प्रायः न तो वैटिकन पहुंचता है और न ही पुलिस के पास। कैथलिक चर्च के अपने ही नए नियमों के अनुसार, 2019 से वह उन बिशपों को स्वयं दंडित कर सकता है, जो यौन दुराचार की उचित शिकायतों पर अमल करने की प्रक्रिया का पालन नहीं करते दिखेंगे। ऐसा कोई उदाहरण हालांकि अभी तक सामने नहीं आया है। 2019 से पहले बिशपों का कोई बाल बांका नहीं हो सकता था।

जहां तक देश के क़ानून-व्यवस्था की बात है, तो पुलिस को यदि किसी एवैंजेलिकल या कैथलिक चर्च में यौन दुराचार की किसी घटना का कहीं से पता चला भी, तो या तो वह बगलें झांकने की या फिर चर्च के पुरोहितों के साथ नरमाई बरतने की फ़िराक में रहती है। राष्ट्रीय रेडियो प्रसारक ‘डोएचलांड फुंक’ के अनुसार, ऐसे प्रकरण भी हो चुके हैं कि सरकारी अभियोक्ता के पास बिशप के कार्यालय से फ़ोन आता है और सारी जांच-पड़ताल रोक दी जाती है।

हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के औरः यही कारण है कि जर्मनी में उन लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो देश के कैथलिक और एवैंजेलिकल चर्च से नाता तोड़ रहे हैं। कई बार लगता है, जैसे भगदड़-सी मच गई है। अकेले 2022 में दोनों संप्रदायों के कुल 9 लाख से अधिक लोगों ने अपने चर्च से मुंह मोड़ लिया और चर्च टैक्स देना बंद कर दिया। 2022 में ऐसे कैथलिकों की संख्या 5,22,821 थी और एवैंजेलिकों (प्रोटेसेटैंटों) की क़रीब 3,80,000 थी। 2023 के आंकड़े अभी आए नहीं हैं।

ईसाई चर्चों से मुंह फेरने वाले 81 प्रतिशत जर्मन यही कहते हैं कि वहां होने वाले यौन अपराधों से वे ऊब गए हैं। 1950 वाले दशक में जर्मनी की 90 प्रतिशत से अधिक जनता कैथलिक या एवैंजेलिकल चर्च की सदस्य होती थी। अब यह अनुपात क्रमशः केवल 24.8 और 22.7 प्रतिशत ही रह गया है, यानी लगभग आधा हो गया है। जो जर्मन नागरिक चर्च से पलायन करते हैं, वे प्रायः किसी नए रिलिजन को नहीं अपनाते।

ईसाई चर्चों से मुंह मोड़ने का यह रुझान जर्मनी में ही नहीं, पश्चिमी यूरोप के सभी देशों में और अमेरिका में भी है और बढ़ता ही जा रहा है। किंतु जो ईसाई धर्मप्रचारक अपने यहां की पहले से ही ईसाई रही जनता को ईसाइयत से दूर जाने से रोक नहीं पा रहे हैं, वे अब भारत जैसे ग़ैर ईसाई देशों की भोली-भाली जनता को ईसाई बनाने के चक्कर में हैं। उनके अपने देशों में तो लोग उनकी चिकनी-चुपड़ी बातें सुनना चाहते नहीं, इसलिए वे भारत जैसे देशों के लोगों को पट्टी पढ़ाने पर ही अपने लिए स्वर्ग में जगह सुनिश्चित समझते हैं।
Edited by Navin Rangiyal
ये भी पढ़ें
भाजपा का केजरीवाल से सवाल, कब तक खेलेंगे विक्टिमहुड कार्ड?