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रामजस विवाद सोची-समझी साजिश

डॉ. ओम नागपाल की स्मृति में रामजस विवाद पर परिचर्चा

रामजस विवाद सोची-समझी साजिश - Gurmehar ramjas issue
राजधानी दिल्ली का रामजस विवाद सोची-समझी साजिश का हिस्सा हो सकता है। विश्वविद्यालय विचारधारा को प्रवाहित और प्रभावित करने का अड्‍डा बन गए हैं। देश के विरोध में जब भी बात उठती है तो सबको साथ खड़े होना चाहिए। 
शिक्षाविद, विचारक, पत्रकार स्व. ओम नागपाल की स्मृति में रामजस कॉलेज विवाद पर आयोजित परिचर्चा में विभिन्न वक्ताओं ने कुछ इसी तरह की राय जाहिर की। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने कहा कि बात जितनी सतही दिखाई दे रही है, दरअसल उतनी है नहीं। पूरा मामला सोची समझी साजिश का हिस्सा हो सकता है। गुरमेहर कौर के लिए यह सब महज एक अभियान था, उसने कहा भी था कि वह इस अभियान से अलग हो रही है। 
 
गुरमेहर के पुराने ट्‍वीट्‍स का हवाला देते हुए डॉ. हिन्दुस्तानी ने कहा कि कौर 14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर तो मुबारकवाद देती हैं, लेकिन 15 अगस्त पर वे ऐसा नहीं करतीं। राष्ट्रवाद शब्द को घृणित और गंदा बनाने की कोशिश की जा रही है। 
परिचर्चा में सूत्रधार की भूमिका निभा रहे वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने सवाल उठाया कि क्या देश में मुद्दों की कमी है, जो एक कॉलेज में होने वाला आयोजन इतना बड़ा मुद्दा बन गया और इस पर राष्ट्रीय मीडिया में लगातार बहस चल रही है। उन्होंने कहा कि यदि उमर खालिद का कार्यक्रम रद्द होने के खिलाफ आवाजें उठीं तो फिर 'तीन तलाक' के मुद्दे पर जामिया में भाजपा नेता शाजिया इल्मी का कार्यक्रम रद्द होने के विरुद्ध आवाजें क्यों नहीं उठीं?
 
लेखिका वीणा नागपाल ने सवाल उठाया कि हम कभी देशभक्ति को मुद्दा बनाएंगे या नहीं? जब भी राष्ट्रवाद की बात होती है तो उसे भगवाकरण से जोड़कर देखा जाता है। डॉ. ओम नागपाल शोध संस्थान की संचालक डॉ. दिव्या गुप्ता ने जेएनयू की गतिविधियों पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय विचारधारा को प्रवाहित और प्रभावित करने का अड्‍डा बन गए हैं। गुरमेहर मामला पूरी तरह सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति किसी भी विचारधारा से ऊपर है। पत्रकार राजेश राठौर ने कहा कि विद्यार्थियों को राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए। 
पूर्व महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा ने कहा कि राष्‍ट्रविरोधी उमर खालिद का समर्थन गलत विचार है। समाजसेवी राधेश्याम शर्मा ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में बच्चों में ऐसे विचार डाले जा रहे हैं, जो देश के लिए घातक हैं। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने ब्रेकिंग इंडिया नामक एक पुस्तक का हवाला भी दिया। पत्रकार हरीश फतेहचंदानी ने कहा कि सब कुछ एजेंडे के रूप में होता है। शंकर गर्ग ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब देश को गाली देना नहीं है। 
 
डॉ. शुभा ओझा ने कहा कि वामपंथी इतिहासकारों ने हमेशा ही राष्ट्रवाद का विरोध किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि पाकिस्तान और मुसलमानों से नफरत करने वाली गुरमेहर का विचार एकदम कैसे बदल गया? माला ठाकुर ने कहा कि यदि गुरमेहर को धमकी दी गई है तो वह गलत है, लेकिन देश के विरोध की बात आती है तो सबको इसके विरुद्ध खड़ा होना चाहिए। पत्रकार अर्जुन राठौर ने कहा कि शहीद की शहादत का कितना राष्ट्रीयकरण और कितना बाजारीकरण हो, इस पर भी बहस होनी चाहिए। सुश्री विभा ने कहा कि विद्यार्थियों को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि दुनिया में कहीं भी समानता नहीं है। 
सांसद प्रतिनिधि राजेश अग्रवाल ने कहा कि गुरमेहर की बात पर पूरे देश में भूचाल आ गया, जबकि राष्ट्रवाद पर बात होती है तो उसे भगवाकरण से जोड़ दिया जाता है। जनसंपर्क विभाग में अधिकारी रहे सुरेश तिवारी ने कहा कि आईआईटी और आईआईएम में इस तरह की घटनाएं नहीं होतीं, जेएनयू और रामजस कॉलेज में ही ऐसा क्यों होता है? दरअसल, वहां वातावरण सही नहीं है। जीडी अग्रवाल ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए। परिचर्चा के दौरान पवन चौधरी, रितेश मेहता, रवि वासुदेव आदि ने भी अपने विचार रखे।