Hariyali Amavasya: हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार इस साल हरियाली अमावस्या 24 जुलाई 2025, दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन स्नान, दान और वृक्षारोपण का विशेष महत्व है। इसी के साथ पितृ तर्पण और नंदी श्राद्ध करने का भी महत्व माना गया है। फिलहाल देव सोए हुए हैं। देव उठनी एकादशी से मंगल कार्य प्रारंभ होंगे। इसके पहले नांदीमुख श्राद्ध करने का विधान है। यह श्राद्ध किसी भी अमावस्या को या शुभ अवसरों पर कर सकते हैं।
नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं तथैव च। पार्वणं चेति मनुना श्राद्धं पञ्चविधं स्मृतं॥
विश्वामित्र ने श्राद्ध के 12 प्रकार बताए हैं लेकिन यमस्मृति में और मनु महाराज ने 5 प्रकार के श्राद्ध बताए हैं– नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण।
नांदीमुख श्राद्ध क्या है?
नंदी का अर्थ है सुख या आनंद, और मुख का अर्थ है मुख या आरंभ। यानी सुखद कार्यों के आरंभ से पहले पितरों का स्मरण और तर्पण। नांदीमुख श्राद्ध यह 'प्रेत श्राद्ध' नहीं होता, बल्कि यह एक शुभता के लिए किया जाने वाला श्राद्ध होता है। जब किसी की मृत्यु के बाद पहली बार श्राद्ध किया जाता है, तब भी यह नांदीमुख कहलाता है।
हालांकि इसमें पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले कर्म तर्पण, सपिंडक, पिंडदान आदि कर्म करने का एक विधान भी है। हरियाली अमावस्या पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए एक बहुत ही शुभ और शक्तिशाली दिन माना जाता है। इस दिन नंदी श्राद्ध करने का भी विधान हैं। नंदी श्राद्ध की विधि शिव पुराण में विस्तार से बताई गई है। वैदिक मंत्रों के साथ इस श्राद्ध को करना एक लंबी प्रक्रिया है। पंडितों के माध्यम से इस श्राद्ध को कराया जाता है।
कैसे करते हैं नांदी श्राद्धा?
मातृकापूजन और वसोर्द्धारा विधि सहित नान्दीमुख श्राद्ध की संपूर्ण विधि होती है। वृद्धि श्राद्ध अथवा आभ्युदयिक श्राद्ध भी नान्दी श्राद्ध को ही कहा जाता है। नान्दीमुख श्राद्ध के प्रमुख प्रकार होते हैं- वाजसनेयी और छन्दोगी। इसी के साथ ही नांदीमुखश्राद्ध 4 प्रकार का होता है:- सपिण्ड, पिण्डरहित, आमान्न और हेमश्राद्ध। विवाहादि मांगलिक कार्यों, वृद्धि के अवसरों पर भी वृद्धि श्राद्ध किया जाता है।
इस श्राद्ध को करने में प्रारंभ से रेकर कई तरह के कर्मकांड किए जाते हैं। षोडश मातृका पूजन, सप्तघृत मातृका, वसोर्धारा के अंतर्गत पवित्रिकरण, पवित्रीधारण, आचमन, आसनशुद्धि, शिखाबंधन, प्राणायाम, पंचगव्य निर्माण, संकल्प, आवाहन, तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, आशीर्वाद ग्रहण आदि अनेक कर्म करते हैं।
क्या होगा नांदी श्राद्ध करने से?
यह श्राद्ध उन अवसरों से पहले भी किया जाता है जो किसी व्यक्ति के जीवन में शुभ और महत्वपूर्ण माने जाते हैं- जैसे विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश, आदि। इसका उद्देश्य यह होता है कि पितरों को आमंत्रित कर उनके आशीर्वाद से वह शुभ कार्य बिना विघ्न के संपन्न हो। इसके अलावा श्राद्ध को करने से पितृदोष हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है और पितरों को शांति मिलती है। उन्हें दूसरा जन्म लेने या मोक्ष लेने में मार्ग में आ रही रुकावटें दूर हो जाती है। इसकी के साथ आपके सभी मांगलिक कार्यों में पितृ आपकी सहायता करते हैं। इसलिए नांदी श्राद्ध में सात पीढ़ियों तक का श्राद्ध हो जाता है।
लेपभाजश्चतुर्थाद्याः पित्त्राद्याः पिण्डभागिनः। पिण्डदः सप्तमस्तेषां सापिण्डयं साप्तपौरुषम्॥
सात पीढ़ियां सप्तपुरुष से ही सापिण्ड्य निर्धारित होता है या कहलाता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि 7 पीढ़ियां 84 कलाओं (गुणों व संस्कारों) द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक व्यक्ति को पूर्व की 6 पीढ़ियों से गुण, कला, प्राणात्मक ऊर्जा प्राप्त होते हैं और अगली 6 पीढ़ियों में उसके गुण, कला, प्राणात्मक ऊर्जा वितरित होते रहते हैं। पुरुष कूटस्थ होता है। अपने पिता, पितामह, प्रपितामह, वृद्ध प्रपितामह, अतिवृद्ध प्रपितामह, परमातिवृद्ध प्रपितामहों का सापिण्ड्य होता है एवं कूटस्थ के सापिण्ड्य पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, वृद्ध प्रपौत्र, अतिवृद्ध प्रपौत्र, परमातिवृद्ध प्रपौत्र होते हैं।