बांसुरी-सी बज रही है सुन जरा
गजल
ओम प्रभाकर तू अभी से सो रही है, सुन जरारातरानी महकती है सुन जरा। सुन जरा मेरे लबों की तिश्नगी
तिश्नगी भी चीखती है सुन जरा। कुछ दिनों से क्यूं हमारे दरम्यांबांसुरी-सी बज रही है सुन जरा।हदे-शोरो-गुल ये मेरी खामुशीबेनवा कुछ कह रही है सुन जरा।हां, अभी भी गोशा-ए-दिल में कहींएक नागिन रेंगती है, सुन जरा।