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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 (18:26 IST)

समाज में लिव-इन रिलेशन को लेकर क्यों बढ़ा आकर्षण, जानिए शादी के बिना साथ रहने के फायदे, नुकसान और कानूनी पहलू

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live in relationship and indian society: आजकल की युवा पीढ़ी के बीच लिव-इन रिलेशनशिप एक आम चलन बन गया है। शादी से पहले एक-दूसरे को समझने और जानने के लिए कई युवा इस रिश्ते को अपना रहे हैं। लेकिन क्या यह वास्तव में सही रास्ता है? लिव-इन रिलेशनशिप के अपने फायदे और नुकसान हैं, साथ ही इसके कुछ कानूनी पहलू भी हैं, जिनकी जानकारी होना बेहद ज़रूरी है। आइए, इस विषय पर गहराई से बात करते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप क्यों पसंद कर रहे हैं युवा?
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के कुछ स्पष्ट लाभ हैं, जो इसे शादी का एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं:
आर्थिक स्वतंत्रता और बचत: लिव-इन में रहने वाले साथी अपने खर्चों को आपस में बाँट सकते हैं, जिससे दोनों को आर्थिक रूप से मदद मिलती है। यह खासकर उन युवाओं के लिए फ़ायदेमंद है जो अपने करियर की शुरुआत कर रहे हैं।
भावनात्मक निकटता और समझ: शादी के वादे और दबाव के बिना, कपल्स एक-दूसरे के साथ अधिक सहज हो पाते हैं। वे एक-दूसरे की आदतों, पसंद-नापसंद और व्यवहार को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं।
तलाक की जटिलताओं से बचाव: लिव-इन रिलेशनशिप में ब्रेकअप करना, शादी की तुलना में कहीं ज़्यादा आसान होता है। इसमें तलाक की लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता।

लिव-इन रिलेशनशिप के नुकसान और चुनौतियां
फ़ायदों के साथ-साथ इस रिश्ते में कुछ गंभीर चुनौतियां भी हैं:
कमिटमेंट की कमी: यह रिश्ता अक्सर शादी की तरह 'जीवन भर का साथ' वाला वादा नहीं होता। कमिटमेंट की यह कमी रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चितता का एहसास पैदा कर सकती है।
मानसिक और भावनात्मक तनाव: अगर एक साथी रिश्ते को शादी में बदलना चाहता है और दूसरा नहीं, तो इससे मानसिक तनाव पैदा हो सकता है। सामाजिक और पारिवारिक दबाव भी इस तनाव को बढ़ा सकता है।
परिवार और समाज का दबाव: भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को अभी भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है। कपल्स को अक्सर अपने परिवार और समाज से आलोचना और दबाव का सामना करना पड़ता है।

लिव-इन रिलेशनशिप और भारतीय कानून: आपके अधिकार क्या हैं?
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी रूप से मान्यता मिली हुई है, लेकिन इसके अधिकार अभी भी सीमित हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कई फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि एक लिव-इन रिलेशनशिप भी "विवाह जैसी प्रकृति" का रिश्ता हो सकता है।
घरेलू हिंसा से बचाव: यदि कोई महिला लिव-इन रिलेशनशिप में है और उसे शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत सुरक्षा की मांग कर सकती है।
बच्चों के अधिकार: लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को भी शादी से पैदा हुए बच्चों की तरह ही कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। वे अपने जैविक पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं।
भरण-पोषण का अधिकार: कुछ विशेष मामलों में, अगर लिव-इन पार्टनर लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं और उनमें शादी जैसा रिश्ता है, तो कोर्ट महिला को भरण-पोषण का अधिकार दे सकती है।
 संपत्ति और उत्तराधिकार के मामले में कानूनी सुरक्षा की कमी
यह एक सबसे बड़ा नुकसान है। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले साथी को सीधे तौर पर अपने पार्टनर की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार नहीं मिलता। अगर आप चाहते हैं कि आपके पार्टनर को आपकी संपत्ति मिले, तो आपको एक कानूनी वसीयत (will) बनानी होगी।

लिव-इन रिलेशनशिप का चुनाव करना एक व्यक्तिगत फैसला है। यह हर किसी के लिए सही हो, ऐसा ज़रूरी नहीं। इस रिश्ते में कदम रखने से पहले, इसके सभी पहलुओं—फायदे, नुकसान और कानूनी अधिकारों—को अच्छी तरह से समझना बेहद ज़रूरी है।
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