छोटी बहन ढेर से सवाल पूछती मुझसे मेरे देर से घर लौटने पर सवाल अक्सर इतने हुआ करते कि उसे शब्दों और आँखों दोनों का सहारा लेना पड़ता अपने तर्कों और बताये जाने वाले कारणों से उसे संतुष्ट कर पाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता मगर असंभव नहीं कभी-कभी बहुत प्यार आता मुझे उस पर मातृवत स्नेह से भर जाता मन जब कोई हठ कर बैठती मुझसे रूठी हुई छोटी बहन को मनाते हुए बहुत भला लगता मुझको हर हठ जो पूरी हो जाती और जो अधूरी रह जाती सोच में कैद होकर हो जाती हमेशा के लिए कितने ही क्षण ऐसे आये जिनमें मेरा ही नहीं उसका भी मन भर गया किसी कसैले स्वाद से लगता था उन क्षणों में यह प्रत्यंचा जाने कितनी और तनेगी लेकिन बस एक प्यारी हँसी जो गलबहियाँ डालकर भेंट करती मुझे बस सब कुछ भुला देती मेरी छोटी बहन