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Last Updated : गुरुवार, 1 जुलाई 2021 (16:52 IST)

क्‍या होता है ‘सोरठा छन्‍द’, कैसे होता जा रहा है लुप्त?

क्‍या होता है ‘सोरठा छन्‍द’, कैसे होता जा रहा है लुप्त? - Sortha, chhand, what is sortha, what is chhand
-तृप्ति मिश्रा

हम सबने बचपन में अनेक छन्द पढ़े हैं। सबसे ज़्यादा अगर हमें याद रहता है तो वो है दोहा, या शायद छन्द के नाम पर सबसे पहले दोहा ही याद आता है। अगर दोहे को उल्टा कर दें तो सोरठा बन जायेगा। इसे ठीक से समझने के लिए पहले दोहा समझते हैं क्योंकि, दोहे की लय और मात्रा विधान हम लगातार सुनते रहते हैं तो सोरठा को समझने में आसानी होगी। रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे को देखते हैं।

रहिमन पानी राखिये
1111  22   212    13
बिन पानी सब सून
11   22   11  21    11
पानी गये न ऊबरे
22   12  1  212    13
मोती मानुस चून
22    2  11 21     11          
 आइए पहले समझते हैं दोहा 
- दोहा एक मात्रिक छन्द है
-कुल 4 चरण का यह छन्द होता है
-एक पंक्ति में कुल 24 मात्रा
-पूरे चार चरण दो पंक्तियों में लिखे जाते हैं
- पहले और तीसरे चरण में 13 मात्रा और दूसरे और चौथे चरण में 11 मात्रा होती है
-दूसरे और चौथे चरण के अंतिम शब्द में एक गुरु (बड़ी मात्रा) एवं एक लघु (छोटी मात्रा) होना आवश्यक है।
-उसी तरह 13 मात्रा वाले चरण के अंत में एक लघु व गुरु होना आवश्यक है। हालांकि कई साहित्यकार अब इस नियम पर इतना ध्यान नहीं दे रहे बस अंत के दो चरणों के गुरु-लघु से दोहा बना रहे हैं। ऊपर दिया गया रहीम दास जी का दोहा इन नियमों पर खरा उतरता है। कृपया उसे देखें और दोहे की लय में गायें भी।

सोरठा छन्द:
अब अगर हम दोहे को उल्टा कर दें तो सोरठा बन जायेगा। अर्थात अब 11 और 13 मात्रा के चरण होंगे। सबसे पहले एक उदाहरण देखते हैं फिर विधान समझते हैं।

दिखते हैं हर बार
112   2 11 21         11
जब जब देखूँ डिग्रियाँ
11  11   22  122     13
पायल कंगन हार
211   211  21          11
अम्मा के गिरवी रखे
112     2  112  12    13
(श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी)
जैसा कि, इस उदाहरण से साफ है, यह दोहा का उलट है, पर इसमें तुकांत पहले और तीसरे में मिलती है। दूसरे और चौथे में तुकांत मिले यह ज़रूरी नहीं बस, मात्रा 13 होना आवश्यक है और अंत में लघु-गुरु होना आवश्यक है।
अन्य उदाहरण
डांटे करे दुलार, हंसती है यूं भी कभी
पागल सी इक नार, माने है ये भी बुरा

(साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी द्वारा डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित कविता की पाठशाला में अर्जित ज्ञान पर आधारित)

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)
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