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आखि‍र क्‍या होती है लुप्त होती जा रही काव्य विधा ‘कह मुकरी’?

आखि‍र क्‍या होती है लुप्त होती जा रही काव्य विधा ‘कह मुकरी’? - Kah mukari, kavya, chhand, Kavita,
हो सकता है आज के कई युवा साहित्यकारों ने "कह मुकरी" विधा का नाम ही पहली बार सुना हो। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, जैसे कोई लड़की किसी बात को कहकर मुकर गई तो "कह मुकरी"

अमीर खुसरो ने इस विधा पर बहुत काम किया। उनकी कई कह-मुकरियां बहुत प्रसिद्ध हैं। पर समय के साथ अन्य शास्त्रीय छंदों एवं नई कविता के आ जाने से इसका सृजन कम होने लगा और अब तो अनेक नए कवि इस सुंदर विधा का नाम तक नहीं जानते।

विधान:
-यह एक वार्णिक छन्द है। जिसमें चार पंक्तियां होती हैं।
-हर पंक्ति में करीब 15 या 16 मात्रा होती हैं।
-यह छन्द दो सखियों के बीच के संवाद को दर्शाता है।
-प्रथम तीन पंक्ति में किसी वस्तु के लिए एक पहेली सी होती है एवं चौथी पंक्ति में उसका जवाब छुपा होता है।
-आखिरी पंक्ति "ए सखि साजन" या "क्यों सखि साजन" से ही शुरू होती है।
अमीर खुसरों की एक प्रसिद्ध कह मुकरी से समझते हैं।

जब मांगू तब जल भरी लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ए सखि साजन? ना सखि लोटा

आइए इसमें मात्रा विधान समझते हैं

जब मांगू तब जल भरि लावे
11   22  11 11  11 22 = 16
मेरे मन की तपन बुझावे
22  11 2  111  122 =16
मन का भारी तन का छोटा
11 2  22 11 2  22 = 16
ए सखि साजन? ना सखि लोटा
2  11  211  2  11  22 = 16

इसी तरह लय के अनुसार किसी पंक्ति में 15 या 17 मात्रा भी हो सकती हैं।

यह भी ज़रूरी नहीं कि किसी छन्द की हर पंक्ति में समान मात्राभार हो। अगर पहली में 15 मात्राएं हैं तो दूसरी में 16 भी हो सकती हैं। फिर चूंकि यह लोकभाषा का छन्द है तो लय के हिसाब से मात्रा में भी हेर-फेर किया जा सकता है। किसी पहेली को बूझता यह एक अत्यंत आसान छन्द है।

उदाहरण के लिए

परिवर्तन जीवन में लाए
इक अच्छा इंसान बनाए
अपनी संस्कृति का आधार
क्यों सखि साजन नहिं संस्कार
(लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी)

ढेरों खुशियां लेकर आए
मन में नयी उमंग जगाए
रचता एक नया संसार
क्यों सखि साजन नहिं.. त्योहार
(लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी)

अब मेरी दो अन्य कह मुक़री पर नज़र डालते हैं।

कागज़ कागज़ पर ये चलता
सदियों तक ये नहीं है मरता
करवाता प्रमाण उपलब्ध
ए सखि साजन न सखि शब्द

दूसरी एक आज के कोरोना काल के हिसाब से मेरी सामायिक कह मुकरी

नाक और मुंह बंद कराए
कोरोना से हमें बचाये
आदत में डालो ये टास्क
क्यों सखि साजन न सखि मास्क

(साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी द्वारा डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित कविता की पाठशाला में अर्जित ज्ञान पर आधारित)
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