मातृ दिवस के मौके पर न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में मां के नाम आयोजन हुए। इन आयोजनों के बहाने मां को याद किया गया और मां होने के अहसास को महसूस किया गया।
इसी सिलसिले में अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट के मियामी शहर में अनहद कृति -ई पत्रिका के सौजन्य से मातृ-दिवस पर हिंदी काव्य-संध्या आज की शाम मां के नाम का आयोजन किया गया। यह आयोजन यहां के लोकप्रिय मैथिसन हैमक्स पार्क में हुआ।
कार्यक्रम की संचालिका डॉ विभा चसवाल ने मातृ शक्ति मां शारदा के समक्ष दीप प्रज्जवलन व पुष्पांजलि के लिए कुसुम मिश्रा जी को आमंत्रित कर शुभारंभ किया। डॉ प्रेमलता ने सरस्वती वंदना और त्विशा ने संस्कृत के श्लोक का पाठ कर से मां शारदा की स्तुति की।
इस मौके पर अनहद कृति ई-पत्रिका एवं सम्पादक-द्वय चसवाल-दम्पति के साहित्यिक सफ़र के विवरण के बाद काव्य-गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। प्रतिभागी हिंदी प्रेमियों में कात्यायनी भटनागर, अम्बर भटनागर, लीना शर्मा, डॉ विवेक मिश्रा, अंजना मिश्रा, डॉ रंजिनी तोल्कानाहल्ली, राजेश मुरली, वेरोनिका, वरिष्ठ प्रतिभागियों में विवेक के माता-पिता कुसुम मिश्रा एवं धनञ्जय मिश्रा, और बच्चों में त्विशा, तन्वी, आन्या एवं फ़ावियाना शामिल थे।
कविता से मां को समर्पित की शाम
मातृ-भाषा हिंदी, सृष्टि व्याप्त सृजन की मातृ-शक्ति, शिरकत कर रहे प्रतिभागियों में शामिल माएं, और सभी उपस्थित जनों की माताओं को समर्पित इस शाम में कविताओं ने रूह के कोर-कोर को छुआ। पेड़ों के सान्निध्य में मां-प्रकृति की स्नेहिल गोद का आनंद लेते हुए, सुंदर हिंदी भाषा में दिल के अंतर्तम कोने में बसी 'मां' पर लिखी कविताओं ने वो समा बांधा कि जितना सुंदर वातावरण बाहर का था, उतना ही सुंदर वातावरण मन के भीतर बनता हुआ सा प्रतीत हुआ।
जब उपस्थितगण को भी भायी हिन्दी
चसवाल परिवार द्वारा आयोजित इस हिंदी कार्यक्रम की यह एक विशेष उपलब्धि रही कि इस पार्क में घूमने आई मेक्सिकन मूल की वैरोनिका और उनकी बेटी फ़ैवीयाना ने, हिंदी का एक शब्द न जानते हुए भी, इस कार्यक्रम की भारतीय सज्जा से आकर्षित हो इसमें शामिल होने की न केवल उत्सुकता ज़ाहिर की अपितु पूरी काव्यगोष्ठी में कविताओं और गीतों का आनंद भी लिया, जाने से पहले उन्होंने हिंदी के स्वाभाविक माधुर्य और पोयट्री के द्वारा मातृ-दिवस मनाने की पहल की खुल कर सराहना की।
बौने है हम सब कविता का पाठ
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वेबदुनिया से जुड़ी रहीं और इंदौर की रहने वाली लीना शर्मा ने अपनी मां और नानी की जीवन के दुश्वारियों और अपने बच्चों के प्रति त्याग पर रचित कविता से गोष्ठी का आगाज़ किया। भारतीय मौसम विभाग से सेवनिवृत एवं अब स्थायी रूप से अमेरीका में रह रहे, धनंजय कुमार मिश्रा ने गिरिजाकुमार माथुर से मिलने का अपना संस्मरण साझा करते हुए उनकी कालजयी कविता
बौने है हम सब की सशक्त एवं प्रभावी प्रस्तुति की जो आज के सन्दर्भों में सार्थक जान पड़ी।
मां याद आई तो साझा किया दर्द
इस कार्यक्रम में कुसुम मिश्रा ऐसी वरिष्ठ मां रहीं जिनका अपने समय में कला से सीधा नाता रहा है, थोड़ी देर की बातचीत में ही बताया कि उन्होंने आल इंडिया रेडियो नाटकों में निर्देशन कार्य किया है। मियामी की उभरती अदाकारा, फ़ैशन-मॉडल कात्यायनी भटनागर ने अपनी बहुत संवेदनशील कविता प्रस्तुत की जिसमें जन-जन में मां के स्वरूप को देखने का बयान था, उन्होंने बताया की छः वर्ष की आयु में ही इन्होंने अपनी मां को खो दिया था और पिता व बड़ी बहनों में बचपन से मां के प्यार को देखती कात्यायनी को जीवन में जहां भी प्यार मिला या अच्छाई मिली वहीं मां की छवि ही झलकती दिखाई दी, ये कविता सच में मां के व्यापकता रूप को दर्शाती दिखी।
कन्नड़ में बयां की मां की महिमा
डॉ रंजिनी ने इस अवसर पर अपनी मातृभाषा कन्नड़ में मधुर स्वर में मां की महिमा का बखान करता, अपनी मां का एक पसंदीदा गीत प्रस्तुत किया, जिसे कन्नड़-भाषी राजेश मुरली ने हिंदी में अनुवादित कर पंक्ति-दर-पंक्ति भावार्थ समझाया।
सिर्फ एक देह नहीं होती मां
अम्बर भटनागर ने प्रसिद्ध हिंदी फ़िल्मी गीत
इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल की सुरीली प्रस्तुति कर प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी स्वर लहरियों से गुंजायमान कर दिया। पुष्पराज चसवाल ने अपना गीत
मां और मैं सुनाया जिसमें मां के पग-पग पल-पल साथ का अद्भुत वर्णन था और एक कविता
मां और भगवान सुनायी, जिसका भरपूर स्वागत हुआ। विभा ने मातृ-तत्व नामक अपनी कविता सुनाई जिसमें पांच तत्वों में मां के समाहित स्वरूप का बखान रहा और इसे सुनाते हुए इस कारण से भाव-विह्वल भी हो उठीं कि आज विदेश की धरती पर मां डॉ. प्रेमलता के साथ मातृ-दिवस मनाने का बड़ा अनमोल अवसर मिला है।
इसके बाद
मां पर अपनी कविताओं के लिए मशहूर डॉ. प्रेमलता ने कात्यायनी की कविता के प्रत्युत्तर में अपनी कविता सुनायी जिसमें मां को हर एक पल का अहसास बताया,
हाड़ और मांस की एक देह नहीं होती मां पंक्ति से शुरू कर। इसके बाद उनकी एक और कविता में मां और भारत माता की एकरूपता के सुंदर बखान ने सबका मन मोह लिया।
इस काव्य-संध्या में डॉ. प्रेमलता चसवाल ने सभी आगंतुक काव्य-रसिक हिंदी प्रेमियों का धन्यवाद किया, जिन्होंने यहां सुदूर अपनी भाषा एवं संस्कृति के प्रति समर्पित भाव से एकत्रित होकर काव्य-गोष्ठी को सफल बनाया और आभार व्यक्त किया।