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सरिस्का एवं रणथम्भौर राष्ट्रीय अभयारण्य राजस्थान, घूमेंगे तो आनंद आ जाएगा

Forest Park | सरिस्का एवं रणथम्भौर राष्ट्रीय अभयारण्य राजस्थान, घूमेंगे को आनंद आ जाएगा
भारत के जंगलों में शानदार हाथी की चिंघाड़, मोर का नाच, ऊंट की सैर, शेरों की दहाड़, लाखों पक्षियों की चहचहाहट सुनने और देखने को मिलेगी। भारत में जंगली जीवों की बहुत बड़ी संख्या है। यहां जंगली जीवों को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। भारत में 70 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 500 से अधिक जंगली जीवों के अभयारण्य हैं इसके अतिरिक्त पक्षी अभयारण्य भी हैं। आओ इस बार जानते हैं राजस्थान के सरिस्का एवं रणथम्भौर के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
1. राजस्थान में दो नेशनल पार्क और एक दर्जन से अधिक अभयारण्य तथा दो संरक्षित क्षेत्र हैं। 
 
2. पुरानी अरावली पर्वतमाला के सूखे जंगलों में सरिस्का नेशनल पार्क एवं टाइगर रिजर्व स्थित है तो दूसरी ओर रणथम्भौर के जंगल। 
 
3. सरिस्का नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व : सरिस्का को वर्ष 1955 में एक अभयारण्य घोषित किया गया था और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत टाइगर रिजर्व बनाया गया था। 
 
4. यह पार्क जयपुर से मात्र 110 किमी और दिल्ली से 200 किमी की दूरी पर है। 
 
5. जंगल से भरी घाटी को उजाड़ पर्वतमालाओं ने घेर रखा है। पार्क 800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, जबकि 498 वर्ग किमी इसका मुख्य भाग है।
 
6. रणथम्भौर : रणथम्भौर राष्ट्रीय वन्यजीव उद्यान ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जहां पहले आबादी से भरपूर मजबूत रणथम्भौर किला था। 
 
7. रणथम्भौर किला समुद्र की सतह से 401 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है। इस किले के कारण ही इस जंगल को रणथम्भौर का जंगल कहा जाता है।
 
8. यहां बाघ के अलावा तेंदुआ, हिरण, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर और कई तरह के पक्षी बड़ी संख्या में हैं।
 
9. सन्‌ 1192 में पृथ्वीराज चौहान के पोते गोविंदा ने इस पर राज किया था। बाद में उसके बेटे बागभट्ट ने किले में बसे शहर को खूबसूरत बनाया। सन्‌ 1282 में चौहान वंशीय राजा हमीर यहां सत्तारूढ़ थे। सन्‌ 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने 3 बार आक्रमण कर इसे जीतने का प्रयास किया। बाद में 1 वर्ष तक घेरा डालकर 1301 में इसे जीता। हमीर की मौत के बाद चौहानों का राज खत्म हो गया। मुस्लिम विजेताओं ने किले की मजबूत दीवार को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
 
10. मालवा के शासकों ने 16वीं शताब्दी में अपना राज जमाया। राणा सांगा ने यहां रहकर अपनी फौज को मजबूत किया। राणा सांगा को हराने के लिए मुगलों ने यहां कई बार आक्रमण किए जिनमें कई बार राणा सांगा घायल हुए। उनकी पराजय के बाद यह किला मुगलों के अधीन हो गया।
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