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Last Updated : शुक्रवार, 20 जून 2025 (17:12 IST)

सितारे ज़मीन पर रिव्यू: आमिर खान ने नहीं, इन 10 बच्चों ने लूटी फिल्म की महफिल

Sitaare Zameen Par Movie Review in Hindi
आमिर खान की बतौर प्रोड्यूसर बनाई गई फिल्मों लगान, दंगल, तारे जमीं पर, सीक्रेट सुपरस्टार, सितारे ज़मीन पर यदि गौर फरमाया जाए तो कुछ थ्रेड्स इनमें कॉमन मिलते हैं। किसी में स्पोर्ट्स के बैकड्रॉप में अंडरडॉग्स की कहानी है, तो किसी में संगीत के बैकड्रॉप में। कहीं पर बच्चे अन्य से अलग होकर दुनिया में संघर्ष करते हैं। कुछ में आमिर के अतरंगी किरदार हैं। सितारे ज़मीन में भी स्पोर्ट्स, अतरंगी किरदार, अंडरडॉग्स और बच्चों वाला कॉमन फैक्टर है, लेकिन फिल्म बिलकुल नई और अनोखी है। 
 
2018 की स्पैनिश ‍फिल्म ‘चैंपियंस’ का ‘सितारे ज़मीन पर’ हिंदी रीमेक है। कभी ये फिल्म आमिर ने सलमान खान के साथ प्लान की थी, लेकिन बाद में उन्होंने ही इसमें अभिनय ‍किया। 
 
फिल्म की कहानी एक गुस्सैल, सिर्फ खुद के बारे में सोचने वाले बास्केटबॉल कोच गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) के इर्द-गिर्द घूमती है। वह अपने सीनियर से नाखुश होकर थप्पड़ मार देता है और उसी रात नशे में कार को पुलिस की गाड़ी से ठोंक देता है। जज सज़ा के रूप में गुलशन को एक ऐसी बास्केटबॉल टीम को कोच करने का जवाबदारी सौंपती है, जिसमें 10 न्यूरोडाइवर्स या डाउनसिंड्रोम वाले खिलाड़ी होते हैं।
 
शुरुआत में गुलशन इस जवाबदारी को बोझ की तरह देखता हैं। खिलाड़ियों से चिढ़ता है। उसे यह अपना अपमान लगता है। लेकिन समय के साथ जब गुलशन इन खिलाड़ियों की जिजीविषा, संघर्ष, सदा खुश रहने की भावना और दिल की पवित्रता को महसूस करता है, तो उसके भीतर भी परिवर्तन आने शुरू होते हैं। ये परिवर्तन उसे न केवल एक बेहतर कोच बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनाता है। 
 
फिल्म में इसके अलावा कुछ ट्रैक और हैं। गुलशन का पत्नी सुनीता (जेनेलिया देशमुख) से विवाद चल रहा है क्योंकि वह जिम्मेदारियों से भाग रहा है। गुलशन और उसकी मां का ट्रैक जो बेहद मजेदार है। इसके अलावा स्पोर्ट्स भी है। 

Sitaare Zameen Par Movie Review in Hindi
 
कहानी भारी-भरकम लगती है, लेकिन फिल्म का टोन ‘फील गुड सिनेमा’ वाला है। कहीं भी भावुकता का मेलोड्रामा या परिस्थितियों पर रोने वाला अंदाज नहीं है, बल्कि कहानी को हंसते-हंसाते-खिलखिलाते हुए मनोरंजक तरीके से आगे बढ़ाया गया है।
 
न्यूरोडाइवर्जेंस क्यों होता है? ऐसे बच्चों के परिवार पर क्या बीतती है? दुनिया उन्हें किस निगाह से देखती है? ये फिल्मों में बातों-बातों में ही बता दिया गया है और फिल्म को ‘सामाजिक संदेश’ वाले लेबल से चतुराई से बचा लिया है। जो दर्शक फिल्म में सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं, उनके लिए फिल्म में हंसने वाले कई दृश्य हैं और जो फिल्म में कुछ ‘हटके’ खोजते हैं उनके लिए भी कुछ फिल्म में है। 
 
फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जिन्हें बहुत अच्छे से लिखा और दिखाया गया है। गुलशन का अपनी नई टीम से मिलना, उसकी टीम के हर किरदार का अपने आप में अनोखा होना, टीम का बस में सफर करना जैसे कई दृश्य हंसाते हैं और दिल को छूते हैं। इसके अलावा भी कई छोटे और उम्दा दृश्य हैं जो लगातार मनोरंजन करते रहते हैं और पौने तीन घंटे की इस फिल्म में समय कैसे कट जाता है, पता ही नहीं चलता। 
 
फिल्म के क्लाइमैक्स के बारे में ज्यादा बात नहीं करते हुए सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि यह अनोखा है और दर्शकों की सोच पर असर डालता है। 
 
दिव्य निधि शर्मा ने बतौर लेखक ड्रामे का भारतीयकरण बहुत अच्छे से किया है। स्क्रीनप्ले में गजब की तेजी है और पूरा ड्रामा एंटरटेनिंग है। दिव्य के लिखे संवाद गहराई लिए हुए हैं।
 
आरएस प्रसन्ना ने बतौर निर्देशक, इमोशन और मनोरंजन में बेहतर संतुलन बनाया है। बच्चों से उन्होंने बेहतरीन काम लिया है। उन्होंने एक संवेदनशील विषय को मेलोड्रामा में डुबोने की बजाय उसे गरिमा और सादगी से पेश किया। भावनाएं कभी नकली नहीं लगती। फिल्म को उन्होंने हल्का-फुल्का रखा है और यह उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। 
Sitaare Zameen Par Movie Review in Hindi
आमिर खान ने गुलशन के रूप में अपने किरदार को बखूबी जिया है। छोटा कद और बॉस्केटबॉल खिलाड़ी? इसको लेकर फिल्म में उन्होंने खुद का खूब मजाक उड़वाया है। उनके कॉमिक सीन देखने लायक हैं। फिल्म के अंतिम 15-20 मिनटों में उन्होंने अपनी एक्टिंग से फिल्म को नई ऊंचाइयां दी हैं। फाइनल के बाद वे अपनी टीम से आखिरी बार मिलने जाते हैं इस सीक्वेंस में उन्होंने कमाल की एक्टिंग की है। 
 
आमिर की इसलिए भी तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने हर सीन में हावी होने की कोशिश नहीं की है। अपने स्टारडम से उन्होंने फिल्म को दूर रखा है और हर किरदार को फिल्म में निखरने का अवसर दिया है। 
 
जेनेलिया डिसूजा ने एक मंझी हुए अभिनेत्री की तरह अपना किरदार निभाया है। डॉली अहलूवालिया तिवारी, गुरपाल सिंह, ब्रजेन्द्र काला जैसे दमदार एक्टर्स ने फिल्म को गहराई दी है। इस फिल्म के सच्चे हीरो हैं वो दस स्पेशल बच्चे, जो एकदम नैचुरल लगे हैं। ये वास्तविक जीवन में न्यूरोडाइवर्सिटी से जूझ रहे हैं। आयुष भंसाली (रंगीन बाल वाला लड़का), सिमरन मंगेशकर (चिढ़ने वाली लड़की), आशीष पेंडसे (हरदम हेलमेट पहने वाला लड़का), गोपीकृष्ण वर्मा (नहाने से डरने वाला) सहित अन्य बच्चे अपने अभिनय से दिल जीतते हैं। 
 
फिल्म तकनीकी रूप से बेहद सशक्त है। एडिटिंग टाइट है। मैच वाले सीन अच्छे फिल्माए हैं। राम संपत का बैकग्राउंड म्यूजिक सीन के मूड के अनुरूप है। 
 
आमिर खान ने साबित किया है कि कभी-कभी बैकफुट पर खेल कर भी मैच जीता जा सकता है और उनके दस असली खिलाड़ियों ने ये कमाल कर दिखाया है। फिल्म हंसाती है, रुलाती है और उम्मीद भी देती है। 
  • निर्देशक: आरएस प्रसन्ना 
  • फिल्म : SITAARE ZAMEEN PAR (2025)
  • गीत: अमिताभ भट्टाचार्य
  • संगीतकार: शंकर-एहसान-लॉय
  • कलाकार: आमिर खान, जेनेलिया देशमुख, डॉली अहलूवालिया, गुरपाल सिंह, आशीष पेंडसे, आरुष दत्ता, आयुष भंसाली, ऋषि साहनी, गोपीकृष्णन वर्मा, सिमरन मंगेशकर 
  • सेंसर सर्टिफिकेट: यूए * 2 घंटे 38 मिनट 46 सेकंड   
  • रेटिंग : 3.5/5 
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