• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. करंट अफेयर्स
  4. What is the reason behind the riots in Manipur, what is the problem?
Written By WD Feature Desk
Last Modified: सोमवार, 9 जून 2025 (18:09 IST)

मणिपुर में हो रहे दंगों का क्या है कारण, क्या है समस्या?

Hindu King Meitei Maharaja Pamheiba
मणिपुर के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में राजा पाखंगबा से शुरू होता है। 1819 से 1825 तक यहां बर्मी लोगों ने शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध के बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र संभाल रहे थे। 21 सितंबर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बन गया।
 
मणिपुर पहले हिंदू बहुल राज्य हुआ करता था और यहां पर महान हिंदू राजा पम्हीबा का 40 वर्षों तक राज रहा था। उन्होंने ही मणिपुर का नाम कांग्लेईपाक से बदलकर मणिपुर रखा था पामहेयीबा यानी पम्हीबा ने 1709 से 1751 तक मणिपुर पर शासन किया था। इन्हें गरीबों का मसीहा ने नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि साल 1717 में हिंदू धर्म, खासकर रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव मत को मणिपुर में स्थापित करने का श्रेय पम्हीबा को ही जाता है। साल 1724 में पम्हीबा ने ही अपने प्रांत को संस्कृतनिष्ठ नाम 'मणिपुर' दिया था।
 
मैतेई और कुकी समुदाय के बीच है तनाव: भारत का एक राज्य है मणिपुर जो अब जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर के 16 जिलों की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों के रूप में बंटी हुई है। मणिपुर की धरती पर विविध जातियों और संस्कृतियों का मिश्रण है, जैसे मैतेई, कुकी, नागा, तिब्बती, खासी और असमिया आदि। मैतेई यहां के मूलनिवासी हैं। इंफाल घाटी में मैतेई समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, जबकि पहाड़ी जिलों में नगा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है।
 
झगड़े का पहला कारण: मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष चल रहा है। दरअसल, मणिपुर में नगा और कुकी लोगों ने ईसाई धर्म को अपना रखा है। इसके बाद से ही दोनों समुदायों के बीच दूरियां बढ़ती गई। मणिपुर का प्राचीन इतिहास मैतेई समुदाय और इसके राजवंशों से जुड़ा हुई है। 1500 ईसा पूर्व से ही यह समुदाय यहां रहता आया है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मणिपुर की 41.39% आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है।
 
कुछ वर्षों से मैतेई और कुकी समुदाय में कई बातों को लेकर मतभेद के चलते छिटपुट घटनाएं होती रहती है। मई 2023 में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से पल रहा मतभेद हिंसा की शक्ल में सामने आया था। इसके बाद से ही वहां पर हिंसा बढ़ती ही गई। हाल ही के वर्षों में इस हिंसा में आग में घी डालने का काम चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई ईसाई मिशनरियों ने भी किया है। इसके बाद से अब तक जारी हिंसा में सैंकड़ों लोग मारे गए हैं और 50 हजार से ज्यादा लोग अब तक विस्थापित हुए हैं। 
 
झगड़े का दूसरा कारण: यह हिंसा मैतेई लोगों की ओर से जनजातीय दर्जा दिए जाने की मांग किए जाने के बाद फिर से भड़की थी। जिससे नौकरियों में कोटा और जमीन के अधिकार जैसे विशेषाधिकार जुड़े होते हैं। कुकी लोगों को डर है कि अगर मैतेई लोगों को जनजातीय दर्जा मिल जाता है तो वे हाशिए पर चले जाएंगे, जबकि सरकार दोनों को समान रूप से दर्जा देती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक संसाधनों का समान बंटवारा या केंद्रीय व्यवस्था नहीं स्थापित होती, समस्या खत्म नहीं होगी और समाधान की प्रक्रिया जटिल बनी रहेगी।
 
सबसे ज्यादा हिंसा कुकी लोगों की ओर से हो रही है। कुकी लोग अपने इलाके से अब दूसरे लोगों की हर तरह की गतिविधियों का हिंसक विरोध करने लगे हैं जिसके चलते समस्या और बढ़ गई है। दोनों ही समुदाय ने अपने उग्रवादी संगठन भी बना रखे हैं जिसके चलते हिंसा को और ज्यादा बढ़ावा मिल रहा है।
 
संगठन: मैतेई समुदाय की ओर से आल मणिपुर यूनाइटेड क्लब्स ऑर्गेनाइजेशन (एएमयूसीओ) और फेडरेशन ऑफ सिविल सोसाइटी (एफओसीएस) के साथ ही कुकी समुदाय की ओर से कुकी-जो कौंसिल (केजेडसी) औऱ कमिटी आन ट्राइबल यूनिटी (सीओटीयू) के अलावा कुछ अन्य संगठनों द्वारा सरकार से वार्ता की जाती रही है। ये ही संगठन सभी कुछ तय करते हैं।  
 
कुकियों की मांग: कुकी समुदाय अब विदेशी शक्तियों की शह पर अलग स्वायत्त क्षेत्र की मांग करने लगा है जिसके चलते समस्या और बढ़ गई है। वह बार-बार कहता रहा है कि अब मैतेई लोगों के साथ रहना संभव नहीं है, लेकिन सरकार के लिए इस मांग को मानना या इस पर चर्चा करना बेहद मुश्किल है। ऐसी स्थिति में पूर्वोत्तर के कई राज्यों में ऐसी मांग उठने लगेगी। तब मणिपुर की आग को पूरे पूर्वोत्तर में फैलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। वह स्थिति काफी विस्फोटक होगी। बांग्लादेश और चीन के द्वारा इस आग को और हवा दी जा रही है।
 
साथ रहना चाहते हैं दोनों समुदाय: राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2 साल से हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर में शांति बहाल करने में काफी समय लग सकता है। हालांकि दोनों ही समुदाय के आम लोग मिलजुलकर साथ रहना चाहते हैं लेकिन उनके बीच उनके संगठन, राजनीति के साथ ही विदेशी ताकतों की मंशा के चलते यह संघर्ष बना हुआ है।