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Last Modified: सोमवार, 23 दिसंबर 2024 (15:00 IST)

मणिपुर का मैतेई राजा पामहेयीबा जिससे खौफ खाता था बर्मा, 40 साल तक किया राज

मणिपुर का मैतेई राजा पामहेयीबा जिससे खौफ खाता था बर्मा, 40 साल तक किया राज - Hindu King Meitei Maharaja Pamheyiba
History of Manipur: भारत के एक राज्य है मणिपुर जो अब जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर की धरती पर विविध जातियों और संस्कृतियों का मिश्रण है, जैसे मैतेई, कुकी, नागा, तिब्बती, खासी और असमिया आदि। मैतेई यहां के मूलनिवासी हैं। इंफाल घाटी में मैतेई समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, जबकि पहाड़ी जिलों में नगा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। नगा और कुकी लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म अपना रखा है। समस्या की यही जड़ है। मणिपुर पहले हिंदू बहुल राज्य हुआ करता था और यहां पर महान हिंदू राजा पम्हीबा का 40 वर्षों तक राज रहा था। उन्होंने ही मणिपुर का नाम कांग्लेईपाक से बदलकर मणिपुर रखा था पामहेयीबा यानी पम्हीबा ने 1709 से 1751 तक मणिपुर पर शासन किया था। इन्हें गरीबों का मसीहा ने नाम से जाना जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मणिपुर की 41.39% आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है।
 
1. महाभारत काल में मणिपुर : द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं। महाभारत आदिपर्व, आश्वमेधिक पर्व के अनुसार वनवास के दौरान अर्जुन जब मणिपुर में थे तो उन्होंने मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा को देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित होकर उससे विवाह कर लिया। दोनों के पुत्र का नाम 'बभ्रुवाहन' था। मणिपुर को उस काल में नागलोक भी कहते थे। भीम की पत्नी हिडिम्बा आसाम के जनजाति समुदाय की लड़की थी।
 
2. प्राचीन काल में मणिपुर : इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन काल में मणिपुर को कलैपाक या कांग्लेईपाक नाम से जाना जाता था। पौराणिक तथ्य के अनुसार यह विष्णुपुर था। बीच में मैत्रबक, कंलैपुं, कथै, मोगली, मिक्ली और पोथोंकल्म नाम से भी जाना जाने लगा था। प्रारंभ में जब यह काब्रा नदी के बास बसने लगा तो इसे मानस के नाम से भी जाना जाने लगा था।
 
3. पखंगबा राजा : मणिपुर में पखंगबा नामक राजा का करीब 120 वर्षों तक शासन रहा है। बीच में पम्हीबा नामक प्रसिद्ध हिन्दू राजा हुआ। आधुनिक मणिपुर राज्य की स्थापना का श्रेय 18वीं सदी में जन्में चक्रवर्ती सम्राट बोधचन्द्र सिंह नामक राजा को जाता हैं। मणिपुर में प्राचीन कंगला फोर्ट स्थित हैं जो राजा-महाराजाओं का निवास स्थान हुआ करता था। मणिपुर के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में राजा पाखंगबा से शुरू होता है। 1819 से 1825 तक यहां बर्मी लोगों ने शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध के बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र संभाल रहे थे। 21 सितंबर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बन गया।
 
4. राजा पामहेयीबा : मणिपुर का प्राचीन इतिहास मैतेई समुदाय और इसके राजवंशों से जुड़ा हुई है। 1500 ईसा पूर्व से ही यह समुदाय यहां रहता आया है। मणिपुर को मणियों की भूमि और आभूषणों की धरती भी कहते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती, कला और परंपराओं से समृद्ध मणिपुर को पूर्व का स्विट्जरलैंड भी कहा गया। 1724 तक इस राज्य को ‘कांगलेइपाक’ के नाम से जाना जाता था। राजा पामहेयीबा ने नाम बदल कर जो मणिपुर रखा।
 
इतिहासकार और लेखक विक्रम संपत पेंगुइन की किताब शौर्यगाथाएं: भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा' के अनुसार मणिपुर में पहले बर्बर परंपराएं थीं। इसके अनुसार बड़ी रानी के अलावा दूसरी रानियों के बेटों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, ताकि बड़े बेटे के उत्तराधिकार की राह में कोई दूसरा बेटा ना आए। पम्हीबा, राजा चराइरोंग्बा की छोटी रानी नंगशेल छाइबी बेटे थे। चूंकि पम्हीबा का जन्म छोटी रानी के यहां हुआ था, ऐसे में जन्म लेते ही मार दिया जाना था। हालांकि पम्हीबा की मां और रानी नंगशेल छाइबी ने अपने बेटे को बचाने के लिए पैदा होते ही एक नागा कबीले के प्रमुख के यहां भिजवा दिया।
 
बाद में जब बड़ी रानी को पता चला कि छोटी रानी का बेटा जिंदा है, तो वह पम्हीबा की हत्या करवाने के प्रयास करती रही। लेकिन हर बार पम्हीबा बच जाता था। फिर एक दिन राजा चराइरोंग्बा को कोई और बेटा नहीं हुआ और आखिरकार वे उत्तराधिकारी की तलाश करने लगे। एक दिन वह एक गांव से गुजर रहे थे और उनकी नजर एक होशियार बालक पर पड़ी। संयोगवश वह उनका बेटा पम्हीबा ही निकला। उसे लेकर वे पस राजभवन पहुंचे। पिता की मौत के बाद पम्हीबा गद्दी पर बैठा।
 
पम्हीबा जब गद्दी पर बैठे तब मणिपुर और बर्मा के बीच रिश्ते ठीक नहीं थे। बर्मा की सेना आए दिन मणिपुर पर हमला और लूटपाट करती रहती थी। 1562 में तो बर्मा के तोंगू वंश के शासक बाइनोंग ने मणिपुर को करीब करीब अपने कब्जे में ही ले रखा था। लेकिन राजा जैसे-जैसे ताकत हासिल, अपनी स्वतंत्रता भी हासिल कर ली थी। हालांकि तब हालत कमजोर ही थी। साल 1725 में पम्हीबा ने पहली बार बर्मा पर हमला कर उसकी सेना को बुरी तरह हराया। इसके बाद बर्मा ने सैनिकों ने कभी मणिपुर में घुसने की हिम्मत नहीं की।
 
बर्मा के राजा तानिंगान्वे लड़ाई में हार गए। पम्हीबा ने उन्हें शांति वार्ता के लिए बुलाया। बातचीत की टेबल पर तानिंगान्वे ने दंभपूर्ण रवैया अपनाते हुए पम्हीबा की बेटी सत्यमाला से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। यह बात पम्हीबा के आत्म सम्मान के खिलाफ थी। इसके बावजूद उन्होंने शादी की हामी भर दी। शादी वाले दिन जब बारात आई तो पम्हीबा मणिपुर के सैनिकों के साथ वेष बदलकर बारात वाली जगह पहुंचे और वहां पर उन्होंने कत्लेआम मचा दिया। बर्मा के सैनिकों को चुन- चुनकर मारा। इसके बाद बर्मा के सैनिकों और लोगों में राजा पम्हीबा का खौफ फैल गया।
 
उल्लेखनीय है कि साल 1717 में हिंदू धर्म, खासकर रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव मत को मणिपुर में स्थापित करने का श्रेय पम्हीबा को ही जाता है। साल 1724 में पम्हीबा ने ही अपने प्रांत को संस्कृतनिष्ठ नाम 'मणिपुर' दिया था।