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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 9 सितम्बर 2020 (12:12 IST)

खास खबर: कोरोनाकाल में तेजी से बढ़ रहे आत्महत्या के केस,पीएम मोदी से आत्महत्या रोकथाम नीति बनाने की मांग

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर #SuicidePreventionPolicy कैंपेन

खास खबर: कोरोनाकाल में तेजी से बढ़ रहे आत्महत्या के केस,पीएम मोदी से आत्महत्या रोकथाम नीति बनाने की मांग - Horror picture of suicidal cases in the Covid-19 Period,Demand for a fastened suicide prevention policy
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रवेंशन द्धारा आयोजित होने वाले इस दिवस का उद्धेश्य लोगों को आत्महत्या से रोकने के तत्थों से जागरूक करना है। कोरोनाकाल में जब अचानक से आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयास के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है, तब इस साल विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस काफी चर्चा के केंद्र में है।    
 
अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की 2019 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 2.3 लाख आत्महत्या कर रहे है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने हाल में ही पिछले साल (2019) के जो आंकड़े जारी किए है उसके मुताबिक देश में हर दिन औसतन 381 लोगों ने आत्महत्या की है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में देश में 1,39,123 लोगों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की। 
 
साल 2020 को कोरोना के काले साल के रूप में इतिहास में याद किया जाएगा। मौजूदा दौर  में स्वास्थ्य के मोर्च पर हम कई चुनौतियों से जूझ रहे है। देश में कोरोना के साथ–साथ उसके डर, डिप्रेशन और उससे जुड़े अन्य कारणों से एकाएक आत्महत्या के मामलों में इजाफा हुआ है। कोरोनाकाल में एक संगठन के एक ऑनलाइन सर्वे में इस बात का चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि कोरोना के बाद देश में आत्महत्या, आत्महत्या के प्रयास के मामलों में कई गुना बढोत्तरी हुई है। 
कोरोनाकाल में पिछले छह महीनों के दौरान कोरोना के डर,डिप्रेशन और लॉकडाउन और उसके बाद नौकरी खोने की वजह से लगातार आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे है। कोरोना ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर इस कदर असर डाला है कि मानसिक रोगियों की एक तरह से सुनामी आ गई है।

कोरोना काल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 65 फीसदी से अधिक लोगों में आत्महत्या से जुड़े विचार आए जो कि आने वाले समय में बहुत डरावने परिदृथ्य की ओर इशारा कर रहे है। ऐस में सरकार के सामने आत्महत्या के मामले रोकने के लिए एक विस्तृत नीति बनाना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है। 
 
एक शोध के अनुसार भारत में एक आत्महत्या की घटना के साथ ऐसे 200 लोग होते हैं जो इसके बारे में सोच रहे होते हैं और 15 लोग इसका प्रयास कर चुके होते है। कई देशों में उत्पादक आयु वर्ग की मृत्यु का ये दूसरा और कई देशों में तीसरा सबसे बड़ा कारण है। वर्ष 2015 का शोध बताता है कि देश में लगभग 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के 30 मिलियन लोगों ने अपना जीवन समाप्त करने के बारे में सोचा, जबकि 2.5 मिलियन ने आत्महत्या का प्रयास किया। इन आंकड़ों से हम समझ सकते हैं कि हम कितनी सारी मौतों को रोका जा सकता है। 
 
मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि हालांकि आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं होता है,यह बेहद जटिल घटना है जिसके पीछे बहुत से कारक होते हैं। जब कोई व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुचने के उद्देश्य से कोई कदम उठाता है तो उसे आत्महत्या का प्रयास (सुसाइड अटेम्प्ट ) कहते हैं और यदि उसका परिणाम मृत्यु  होता है तो इसे हम आत्महत्या कहते है। 
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं आत्महत्या का सीधा कनेक्शन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। ऐसे में कोरोना ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित किया है तब अचानक से आत्महत्या के मामलों में इजाफा देखा जा रहा है। 
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि आज जरूरी है कि सरकार तत्काल आत्महत्या रोकथाम नीति बनाए। इस ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान दिलाने लिए वह 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर लोगों #SuicidePreventionPolicy कैंपेन के समर्थन में ट्वीट करने के लिए आगे आने को कहते है। 
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि समग्र रूप से मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता में लाने की सोच से आगे की दिशा निर्धारित हो पायेगी। कई छोटे देश भी अपने नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर हमसे ज्यादा खर्चा करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य किसी भी देश की उत्पादकता को सीधे प्रभावित करता है जरुरत है कि देश में आत्महत्या पर एक सार्थक चर्चा हो और नीति निर्माता आत्महत्या रोकथाम नीति बनायें। मनोचिकित्सक काफी लम्बे समय से इस हेतु प्रयासरत हैं,कई देशों में इस पर सकारात्मक कार्य हो रहा है। 
 
-आत्महत्या रोकथाम नीति पर इन पर हो फोकस –
आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से देखें तो लगभग सबके मन में जीवन के प्रति नैराश्य या असंतोष का भाव पाया जाता है। निम्नांकित बिंदु इन घटनाओं को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
*हाई रिस्क ग्रुप (स्कूल,कॉलेज,प्रतियोगी परीक्षार्थी,बेरोजगार,किसान) का समय समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि मानसिक रोगों जैसे डिप्रेशन की पकड़ पहले से ही की जा सके और उचित इलाज़ से आत्महत्या के खतरे  को समय रहते समाप्त  किया जा सके।
 
*परिवार नामक इकाई को मज़बूत किये जाने के बारे समाज को जिम्मेदारी उठानी ही होगी जिससे सपोर्ट सिस्टम मज़बूत हों. लोग संवेदनशील बने ताकि अप्रिय घटना होने पर और खराब मानसिक स्वास्थ्य में संबल प्रदान कर सकें।
 
*स्कूली पाठ्यक्रम में शुरू से मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी अध्याय जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा,जीवन प्रबंधन,साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड को शामिल किया जाना चाहिए ताकि हमारी नयी पीढ़ी बचपन से ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बन सकें और जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना बखूबी कर सकें और मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता के साथ कलंक का भाव भी न रहे.शिक्षकों को भी मानसिक रोगों के प्रति जानकारी होना आवश्यक है।
 
*नशे की रोकथाम सम्बन्धी कार्यक्रम, अधिक से अधिक काउन्सलिंग सेंटर,मानसिक रोग विशेषज्ञ की उपलब्धता को बढ़ाने हेतु नीति निर्माताओं को ध्यान देना आवश्यक है।
 
*दूरस्थ स्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने हेतु टेली साइकाइट्री शुरू करना भी महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
 
*मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता लाने हेतु व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है, संक्रामक रोगों के प्रति जागरूकता लाने सबंधी मॉडल का अनुसरण करते हुए सेलेब्रेटिज़ का भी सहयोग लिया जाना चाहिये।
 
*मीडिया द्वारा ऐसे तनाव प्रबंधन और जीवन प्रबंधन सम्बन्धी विषयों पर आलेख प्रकाशित किये जाने चाहिए.,आत्महत्या सम्बन्धी खबरों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए।