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Written By मनीष शर्मा

प्रतिकूल है तो लाल बत्ती अनुकूल है तो हरी बत्ती

प्रतिकूल है तो लाल बत्ती अनुकूल है तो हरी बत्ती -
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एक बार कौशल नरेश मल्लिक रथ पर सवार होकर एक सँकरे पुल से गुजर रहे थे। तभी सामने से एक और रथ आ गया। इस पर सामने वाले रथ का सारथी बोला- वाराणसी नरेश ब्रह्मदत्त के रास्ते में आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। इस पर मल्लिक का सारथी बोला- यह कौशल नरेश की सवारी है। मैं किसी के लिए रास्ता नहीं छोड़ने वाला।

उन दिनों यह प्रथा थी कि ऐसी स्थिति में बड़ी पदवी वाले के लिए छोटी पदवी वाला रास्ता छोड़ देता था। लेकिन यहाँ तो दोनों राजा थे। इसलिए समस्या खड़ी हो गई कि कौन अपना रथ पीछे करे। प्रथा अनुसार श्रेष्ठता के निर्धारण के लिए आयु, राज्य का आकार आदि पर विचार हुआ। उसमें भी दोनों समान थे। अंततः बात गुणों पर आई।

मल्लिक का सारथी बोला- मेरे स्वामी बुराई का बदला बुराई और भलाई का बदला भलाई से देते हैं। इस पर दूसरा बोला- मेरे स्वामी बुराई हो या भलाई, दोनों का ही बदला भलाई से देते हैं। यह सुनकर सारथी कुछ बोलता, इसके पहले ही मल्लिक बोल पड़े- निश्चित ही वाराणसी नरेश मुझसे श्रेष्ठ हैं। सारथी, उनके रथ को रास्ता दो।
श्रेष्ठ तो वही कहलाएगा न जो बुरा करने वाले के साथ भी भलाई करे। हालाँकि हर कोई यह राह नहीं पकड़ सकता क्योंकि यह बहुत कठिन डगर है। मगर ऐसा न होता तो इस पर चलने वाले को श्रेष्ठता का खिताब क्यों मिलता। इसलिए जो इस राह को चुनते हैं,वे बहुत दूर तक जाते हैं।


दोस्तो, सही तो है। श्रेष्ठ तो वही कहलाएगा न जो बुरा करने वाले के साथ भी भलाई करे। हालाँकि हर कोई यह राह नहीं पकड़ सकता क्योंकि यह बहुत कठिन डगर है। मगर ऐसा न होता तो इस पर चलने वाले को श्रेष्ठता का खिताब क्यों मिलता। इसलिए जो इस राह को चुनते हैं, वे बहुत दूर तक जाते हैं, बिना रुके, बिना थमे, निर्बाध। क्योंकि जो सही राह पकड़ते हैं, उनकी हर चाह, हर सपना पूरा होता है।

वैसे भी उनके जीवन के लक्ष्य इतने बड़े होते हैं कि उन्हें अपने गंतव्य के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता। फिर चाहे इनके रास्ते में कोई कितने ही काँटे बो दे, बिछा दे, ये तो उसके लिए अच्छा ही सोचते हैं। कहा गया है कि जो दूसरों के लिए काँटे बोता है, उसे जिंदगी में काँटे ही मिलते हैं। कबीर के अनुसार- जो तोको काँटा बुबै, ताहि बोय तू फूल। तोको फूल के फूल हैं, बाको है तिरसूल।
वैसे भी प्रतियोगिता के इस दौर में कोई मूर्ख ही होगा जो दूसरे के रास्ते में जाकर काँटे बोएगा, कीलें बिछाएगा ताकि सामने वाले की गाड़ी पंचर हो जाए और जब तक वह पंचर बनवाए, खुद उससे आगे निकल जाए। ऐसा करने वाला हर तरह से नुकसान में ही रहता है। वह यह नहीं जानता कि जब वह दूसरे की गाड़ी पंचर करने के लिए रुकेगा तब वे लोग उससे आगे निकल जाएँगे जो कामयाबी के रास्ते पर उससे पीछे आ रहे हैं। अधिकतर होता यह है कि दूसरों के लिए फैलाई गईं कीलों से खुद की गाड़ी ही पंचर हो जाती है। इस तरह दूसरे की बजाय खुद की गाड़ी ही बीच रास्ते में खड़ी हो जाती है। तब आगे बढ़ने की खुशी के बजाय मिलते हैं कान फोड़ने वाले हार्न यानी दूसरों के ताने।

यदि आप भी ऐसा ही कुछ करके आगे बढ़ने की सोच रहे हैं तो ऐसा करके आप कभी आगे नहीं बढ़ पाएँगे। बेहतर यही है कि आप अपने रास्ते चलें और दूसरे को उसके रास्ते जाने दें। यदि कोई आपको ओवरटेक करने की कोशिश करे, तो भी उसे बेहिचक रास्ता दे दें, क्योंकि ऐसा करके भी वह आपके हिस्से की कामयाबी हासिल नहीं कर पाएगा।

और अंत में, आज 'ट्रेफिक लाइट डे' है। ट्रेफिक पांइट की तरह आपके जीवन में भी तीन बत्तियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। जब लाल बत्ती हो यानी समय प्रतिकूल हो तो आगे बढ़ने के अपने प्रयासों को विराम दे दें और इंतजार के समय को आगे बढ़ने की तैयारियों में लगाएँ। पीली बत्ती का मतलब है समय अनुकूल हो चला है, आगे बढ़ने के लिए तैयार रहो। इसी तरह हरी बत्ती बताती है कि अनुकूल समय हो चुका है। आप बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ सकते हैं।

यदि आपने जीवन की हर राह में इन तीन लाइटों का सही-सही उपयोग करना सीख लिया, कर लिया तो आपको कम फाइट यानी कम संघर्ष करना पड़ेगा और आपकी प्रगति के रास्ते खुद-ब-खुद खुलते चले जाएँगे। अरे, मेरे दिमाग में लाल बत्ती क्यों जल गई। अच्छा, कलम को ब्रेक लगाना है।