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Last Modified: रविवार, 18 अक्टूबर 2020 (12:03 IST)

कोरोना वायरस: बुज़ुर्गों का टीकाकरण क्यों नहीं आसान?

कोरोना वायरस: बुज़ुर्गों का टीकाकरण क्यों नहीं आसान? - Why CoronaVirus vaccine is not easy for old age people
विलियम पार्क,  बीबीसी फ़्यूचर
यदि हम एक काल्पनिक दुनिया की बात करें जहां हमारे पास कोरोना की वैक्सीन पहले से ही उपलब्ध है, तो ऐसे में दुनिया के नेताओं के सामने बड़ा सवाल ये है कि इतनी बड़ी आबादी तक ये वैक्सीन कैसे पहुंचाई जाए।
 
बीमारी का सबसे ज़्यादा ख़तरा डॉक्टर, नर्स और दूसरे हेल्थकेयर वर्कर्स को है, इसलिए उन्हें सबसे पहले सुरक्षा देनी होगी। लेकिन ये इतना आसान नहीं है। बूढ़े लोगों को भी कोरोना के संक्रमण का सबसे ज़्यादा ख़तरा है।
 
कनाडा के ग्यूलेफ़ विश्वविद्यालय में वैक्सीनोलॉजी के प्रोफ़ेसर श्यान शरीफ़ कहते हैं, "हमारे पास बूढ़े लोगों के लिए डिज़ाइन की गई वैक्सीन की संख्या बहुत कम है। पिछले 100 सालों मे ज़्यादातर वैक्सीन बच्चों को ध्यान में रख कर बनाई गई हैं।"
 
वो कहते हैं कि दाद की वैक्सीन ऐसी है जिसे 70 साल के अधिक उम्र के लोगों के लिए बनाया गया है। मेनिन्जाइटिस और पैपिलोमावायरस जैसी कुछ बीमारियों की वैक्सीन जवान लोगों के लिए बनाई गई है। इनके अलावा ज़यादातर वैक्सीन का इजाद बच्चों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
 
वृद्धों के शरीर के रक्षा तंत्र का असर
शरीफ़ के मुताबिक, "बच्चों से जुड़ी बीमारियों के बारे में हमारे पास बहुत ज़्यादा जानकारियां हैं। लेकिन जब जवान या बूढ़े लोगों की बात आती है तो इस मामले में हमारे पास बहुत अनुभव नहीं है"
 
वो कहते हैं कि वृद्धों को वैक्सीन देना मुश्किल क्यों है, इसके लिए हमें उनके शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को समझना होगा। वो समजाते हैं बूढ़े लोगों को इम्यूनोसेनेसेंस- यानी इम्यून सिस्टम के बूढ़े हो जाना का ख़तरा रहता है। हमारे शरीर के किसी भी दूसरे अंग की तरह हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली में भी बुढ़ापे के लक्षण देखे जा सकते हैं। उम्र के साथ कई कोशिकाएं अपना काम सही तरीके से नहीं कर पातीं।
 
प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत जटिल होती है, इसमें कई कोशिकाएं एक दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। अगर इस सिस्टम में कहीं पर कुछ काम नहीं कर रहा, तो इसका असर पूरे सिस्टम के लड़ने की प्रक्रिया पर पड़ता है।
 
एक वक़्त था, जब कोरोना से निपटने के लिए केरल की तारीफ़ हो रही थी। अगर आपको कोई कीटाणु या विषाणु संक्रमित करता हैं, तो रोग प्रतिरक्षा प्रणाली की पहली लेयर उस पर हमला करना शुरू करती है। सांस की बीमारी के लिए ये काम फेफड़े, श्वास की नली या नाक की मदद से किया जा सकता है।
 
व्हाइट ब्लड सेल या मैक्रोफेजेस, विषाणु पर हमला करते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। जब मैक्रोफेजेस इन्हें तोड़ देते हैं उसके बाद वो इन्हें दूसरे इम्यून सेल को देते हैं, जिन्हें टी-सेल कहते हैं। ये प्रतिरक्षा प्रणाली की 'याददाश्त' की तरह काम करते हैं।
 
टी-सेल खुद विषाणु को नहीं देख सकते लेकिन ये उसे पहचान कर याद रखने का काम करते हैं ताकि अगली बार वही विषाणु हमला करे तो वो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सचेत कर सकें। ये अगले लेयर को सक्रिय करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाते हैं।
 
कैसे काम करती है रोग प्रतिरक्षा प्रणाली?
टी-सेल्स कई तरह के होते हैं। किलर टी-सेल या साइटोटॉक्सिन हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाओं पर हमला करते हैं ताकि उन कोशिकाओं को निकाला जा सके, जो विषाणु से संक्रमित हैं। ये उनके फैलने की गति को कम करते हैं। हेल्पर टी-सेल, बी-सेल की मदद करते हैं, जो दूसरे तरह की प्रतिरक्षा प्रणाली हैं।
 
बी-सेल खुद ही विषाणु से लड़ सकते हैं लेकिन सही तरीके से काम करने के लिए उन्हें टी-सेल की ज़रूरत होती है। बी-सेल एंटीबॉडी पैदा करते हैं। लेकिन सबसे कारगर एंटीबॉडी पैदा करने के लिए उन्हें टी-सेल के साथ एक जटिल प्रक्रिया से ग़ुज़रना पड़ता है।
 
टीकाकरण का लक्ष्य कीटाणु या विषाणु के संपर्क में आने से पहले हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावी एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए प्रेरित करना है। वैक्सीनोलॉजिस्ट के लिए समस्या यह है कि बुजुर्गों में उम्र अधिक होने के कारण इन सभी कोशिकाओं के बीच का नाजुक संतुलन बाधित हो जाता है।
 
कैसी होती है वृद्ध व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली?
इन्सब्रुक विश्वविद्यालय के बिरट्ज वेनबर्गर कहते हैं, "वे साइटोकाइन्स (प्रोटीन जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के बीच संचार में सहायता करते हैं) के एक अलग सेट का उत्पादन करते हैं। मुझे लगता है कि एक महत्वपूर्ण मुद्दा, जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है, वो ये है कि कोशिकाओं में से कोई भी अपने दम पर कार्य नहीं करता है।"
 
यदि मैक्रोफेजेस ठीक से नहीं काम नहीं कर रहा है, तो इससे टी-सेल भी ठीक से सक्रिय नहीं होगा। बी-सेल से कोशिकाओं को कम मदद मिलेगी और कम एंटीबॉडी का असर प्रतिक्रिया पर हो सकता है।
 
वेनबर्गर कहते हैं, "इस बात को ध्यान में रखना होगा कि प्रतिरक्षा प्रणाली के सभी अलग-अलग हिस्सों को कैसे एक साथ काम करने के लिए तैयार करना है।"
 
शरीफ़ कहते हैं, "हमारे पास हमारे अनुकूल प्रतिरक्षा प्रणाली में बी-सेल और टी-सेल की एक सीमित संख्या है, और हम समय के साथ उनमें से कुछ को खो देते हैं, जो बाद के जीवन में समस्याएं पैदा कर सकता है।" "जब हम एक नए कीटाणु या विषाणु का सामना करते हैं तो हमारी प्रतिक्रिया की क्षमता सीमित हो जाती है।"
 
जानकार कहते हैं कि इम्यूनोसेनेसेंस सभी लोगों को समान रूप से प्रभावित नहीं करता है। शरीर के अन्य कुछ अंगों की तरह, कुछ लोग दूसरों की तुलना में बेहतर होते हैं। या तो वो खुद की देखभाल सही तरीके से करते हैं या भाग्यशाली होते हैं और उनका जेनेटिक मेकअप सही होता है। लेकिन उम्र से जुड़ी कुछ चीज़ें अच्छी भी हैं। हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली में उम्र के साथ कुछ सुधार होता है।
 
शरीफ़ कहते हैं, "अगर हम अपने जीवन में कई प्रकार के कीटाणुओं और विषाणुों का सामना कर चुके होते हैं, तो हमारे पास एक इम्यून मेमोरी होती है। यानी हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को उनकी पहचान होती है। ऐसे में नए कीटाणुओं से लड़ना हमारे शरीर के लिए इतना मुश्किल नहीं रह जाता।"
 
लेकिन sars-cov-2 एक ऐसा वायरस है जिसका हमने कभी सामना नहीं किया, इसलिए हमारे शरीर के पास इससे जुड़ी कोई मेमोरी नहीं है। पुराने लोगों के पास उन पैथोजन के लिए बेहतर इम्यून मेमोरी होती है जिनका वो पहले सामना कर चुके होते हैं, लेकिन नए रोगों का जवाब देने की ताकत कम होती है।
 
यही वजह है कि वर्तमान में कोविड -19 के उपचार के लिए सैकड़ों दवाओं पर भी शोध किया जा रहा है। इस समय, सबसे ज़्यादा उम्मीद डेक्सामेथासोन नाम की दवा से है। ये एक तरह का स्टेरॉयड है जो ऑक्सीजन ले रहे लोगों की मौत की दर को कम करता है। इसे ब्रिटेन और जापान में उपयोग के लिए इजाज़त दे दी गई है। इसे अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी दिया गया था।
 
फिलहाल, अमेरिका में "आपातकालीन उपयोग" के लिए पांच दवाओं को स्वीकृति दी गई है। इनमें से किसी को भी अभी तक क्लिनिकल ट्रायल के बाद एफ़डीए की मंजूरी नहीं मिली है, इसलिए इनका इस्तेमाल डॉक्टरों की सलाह पर केवल गंभीर मामलों में किया जाता है।
 
कोविड -19 के कारण अस्पताल में भर्ती वृद्ध लोगों को वैक्सीन से पहले इस उपचार रिसर्च से फ़ायदा हो सकता है। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि वैक्सीन आने में लंबा समय लग सकता है, लेकिन उम्मीद की किरणें अभी दिख रही हैं।
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