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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 12 नवंबर 2022 (08:28 IST)

चीन की किसके ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी, क्या भारत को रहना चाहिए सतर्क?

चीन की किसके ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी, क्या भारत को रहना चाहिए सतर्क? - should india be alert from china
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
भारत एक शांति प्रिय देश है जिसने कभी किसी देश को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं की, लेकिन अगर देश के अमन-चैन को भंग करने की कोई कोशिश की जाती है तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने ये बातें दिल्ली में सैन्य कमांडर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहीं।
 
7-11 नवंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में बुधवार को रक्षा मंत्री ने कहा कि सीमाओं पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है और देश सभी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है।
 
भारतीय मीडिया में राजनाथ सिंह के इस बयान की ख़ूब चर्चा है। ख़ासतौर पर इसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दिए उस बयान से जोड़कर देखा जा रहा है, जो उन्होंने बीते 8 नवंबर को सीएमसी (सेंट्रल मिलिट्री कमीशन) के संयुक्त अभियान कमान मुख्यालय में दिया था।
 
युद्ध की तैयारी का आह्वान
चीन के राष्ट्रपति के तौर पर तीसरी बार चुने जाने के बाद शी जिनपिंग बीते मंगलवार को देश की सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के संयुक्त अभियान कमान मुख्यालय की निगरानी करने पहुंचे थे।
 
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़, यहां सैन्यकर्मियों को संबोधित करते हुए जिनपिंग ने कहा कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ती अस्थिरता और अनिश्चितता का सामना कर रही है। ऐसे में हमें युद्ध लड़ने और जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
 
जिनपिंग ने इस दौरान चीनी सेना (पीपुल लिबरेशन आर्मी) से "सैन्य प्रशिक्षण और युद्ध की तैयारियों को बढ़ाने" का आह्वान किया है।
 
लेकिन चीन किसके ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी कर रहा है और क्या भारत को सतर्क रहने की ज़रूरत है? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बयान से चीन को एक जवाबी संदेश देने की कोशिश की है या ये महज़ एक इत्तेफ़ाक़ है।
 
दोनों नेताओं के बयान को जोड़कर न देखा जाए
इस सवाल के जवाब में जेएनयू में चाइनीज़ स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर अलका आचार्य कहती हैं, "2020 के गलवान हिंसा के बाद भारत को सतर्क रहने की तो ज़रूरत है ही, लेकिन हर बार चीन के नेतागण या राष्ट्रपति शी अपनी सेना से बातचीत करते हैं या संबोधित करते हैं तो उसमें प्रतिक्रिया देने या ये मान लेने की ज़रूरत नहीं है कि ये हमें ध्यान में रखते हुए कहा गया है। किसी भी नेता का अपनी सेना से बातें करना या उत्साह बढ़ाना स्वाभाविक है।"
 
''दुनिया के सभी देशों के सामने फ़िलहाल सुरक्षा की चुनौती है इसलिए सेना को तैयार रहने की प्रेरणा देना एक सामान्य-सी बात है, चाहे आप चीन के परिप्रेक्ष्य से इसे देखें या भारत के।''
 
प्रोफ़ेसर अलका आचार्य नहीं मानतीं कि भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के राष्ट्रपति के बयान को जोड़कर देखना चाहिए। वो कहती हैं कि जिनपिंग तीसरी बार देश की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद महज़ हर विभाग के लोगों से मुलाक़ात कर रहे हैं, उन्हें संबोधित कर रहे हैं और अपनी मज़बूत छवि और नेतृत्व को दुनिया के सामने पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
 
भारत को है सचेत रहने की ज़रूरत
भारत-चीन संघर्ष पर हाल ही में प्रकाशित किताब 'द लास्ट वॉर' के लेखक प्रवीण साहनी का भी यही मानना है कि दोनों नेताओं के बयान को जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
 
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान को जहां वे चुनावी हथकंडा का हिस्सा बताते हैं वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बयान को बेहद महत्वपूर्ण।
 
प्रवीण साहनी कहते हैं कि जिनपिंग के बयान को एक साधारण बयान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
 
वे कहते हैं, "हमें समझने की ज़रूरत है कि जिनपिंग ने ये बयान ज्वाइंट ऑपरेशन सेंटर में दिया है। इस मौके पर उन्होंने सेना की वर्दी पहनी हुई थी और उनका ज़ोर इस बात पर था कि 2027 तक पीएलए को एक वर्ल्ड क्लास फ़ौज बन जाना चाहिए।"
 
"इसके अलावा उन्होंने यूनीफ़िकेशन और रीजनल वॉर के ऊपर भी ज़ोर दिया है। इसलिए भारत को सतर्क रहने की ज़रूरत है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति हर ज़रूरी मंच से अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के साथ ही साथ मज़बूत होने की बात दोहरा रहे हैं।"
 
हालांकि भारत के अलावा ऐसे कई देश हैं जिनके साथ चीन के रिश्ते तनावपूर्ण हैं, ऐसे में चिंता के बादल क्या उनके ऊपर भी मंडरा रहे हैं?
 
इस सवाल के जवाब में साहनी कहते हैं कि ''चीन जब भी रियूनीफ़िकेशन की बात करता है तो ख़ासतौर पर तिब्बत और ताइवान उसके निशाने पर होते हैं, लेकिन साथ ही इस गुंजाइश को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि बाकी देशों को भी सतर्क रहने की ज़रूरत है।
 
भारत के अलावा इन देशों के साथ चीन के तनावपूर्ण रिश्ते
ऐसे कुल 17 पड़ोसी देश हैं जिनके साथ चीन का कोई न कोई क्षेत्रीय विवाद है। भारत के अलावा इनमें फ़िलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम, जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, नेपाल, भूटान, म्यांमार, मलेशिया, ब्रुनेई, लाओस, मंगोलिया और तिब्बत शामिल हैं।
 
इसमें ताइवान भी है (जो ख़ुद को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए)।
 
भारत, नेपाल, भूटान, लाओस, मंगोलिया, म्यांमार और तिब्बत के साथ जहां चीन का भूमि विवाद है, वहीं बाकी देशों के साथ समुद्री (साउथ चाइना सी)।
 
दक्षिण चीन सागर में क़रीब 250 छोटे-बड़े द्वीप हैं। ये इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और फ़िलीपीन्स से घिरा है।
 
इस इलाक़े को चीन अपना कहता है और एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वो यहां कृत्रिम द्वीप बना रहा है। वहीं अमूमन सभी अन्य देश इसके किसी न किसी हिस्से को अपना कहते हैं।
 
अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी चीन के रिश्ते तल्ख़ हुए हैं। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों ही देश चीन को बड़ा ख़तरा बता चुके हैं।
 
कैसे हैं भारत-चीन के रिश्ते?
हाल ही गुजरात के मोरबी में सस्पेंशन ब्रिज गिरने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को शोक संदेश भेजा था।
 
लेकिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जब तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी का नेता चुना गया था, तो प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ कर दुनिया भर के नेताओं ने उन्हें बधाई दी।
 
सितंबर महीने में समरकंद में आयोजित हुए एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक में पीएम मोदी और शी जिनपिंग गलवान संघर्ष के बाद पहली बार आमने-सामने थे, कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों के बीच बातचीत हो सकती है, पर दोनों नेताओं की नज़रें तक नहीं मिलीं।
 
अक्तूबर महीने में चीन के शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मुद्दे पर बहस का एक प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन भारत ने इस मुद्दे पर चीन के ख़िलाफ़ नहीं जाने का फ़ैसला किया।
 
नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के व़क्त भी भारत ने चीन के रुख़ का विरोध नहीं किया। भारत की तरफ़ से इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन बीते मार्च महीने में पाकिस्तान में इस्लामिक सहयोग संगठन के उद्धघाटन समारोह में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कश्मीर का मुद्दा उठाया।
 
'सबसे मुश्किल दौर में भारत-चीन संबंध'
फ़रवरी 2022 में म्यूनिख़ सुरक्षा सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि चीन के सीमा समझौतों के उल्लंघन के बाद भारत और चीन के संबंध सबसे मुश्किल दौर से ग़ुज़र रहे हैं।
 
हालांकि सितंबर महीने की शुरुआत में दोनों देशों के कमांडरों के बीच 16वें दौर की बातचीत के बाद दोनों देशों की सेनाएं जियनान दबान (गोगरा हॉटस्प्रिंग) से पीछे हटने को राज़ी हो गई थीं, लेकिन गतिरोध पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ।
 
वर्तमान में दोनों देशों के रिश्ते पर टिप्पणी करते हुए प्रवीण साहनी कहते हैं, "अभी रिश्ते बेहतर होने का कोई अंदेशा नहीं दिख रहा है क्योंकि भारत ने बार-बार ये साफ़ किया है कि चीन जब तक सीमा को सामान्य नहीं करता, तब तक रिश्ते ठीक नहीं हो सकते।
 
जबकि चीन का ये कहना है कि सीमा विवाद अब नॉर्मल हो गए हैं और ये केवल एक मुद्दा है, हमें बाकी दूसरे मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए। यही कारण है कि एससीओ की बैठक में प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति को नज़रअंदाज़ किया।"
 
वहीं प्रोफ़ेसर अलका आचार्य का मानना है कि भारत-चीन के रिश्ते अभी एक ऐसे ठहराव पर हैं जहां से कोई मूवमेंट नहीं हो रहा।
 
पहले डोकलाम विवाद और फिर गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों की हिंसक झड़प के बाद से भारत और चीन के रिश्ते तल्ख़ बने हुए हैं।
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