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Written By DW
Last Updated : शनिवार, 12 नवंबर 2022 (09:14 IST)

Nature and Environment : गरीब देशों को जलवायु वार्ताओं से क्या हासिल हुआ?

Nature and Environment : गरीब देशों को जलवायु वार्ताओं से क्या हासिल हुआ? - What has climate aid achieved for poor countries?
-रिपोर्ट: जेनिफर कोलिन्स और हेथर मूर
 
मिस्र की जलवायु वार्ताओं का फोकस गरीब देशों को वित्तीय मदद देने पर है जिससे वे जलवायु परिवर्तन के लिहाज से खुद को ढाल सकें और जलवायु बर्बादी की कीमत चुका सकें। इस साल मिस्र में जलवायु वार्ताओं के केंद्र में है पैसा और इंसाफ। क्या अब हमें, औद्योगिक क्रांति की वजह से निकली ग्रीनहाउस गैसों के एवज में कीमत चुकाकर दोहरी मार झेलनी होगी?
 
कम आय वाले यानी गरीब देश, अमीर देशों से जीवाश्म ईंधनमुक्त भविष्य की ओर जाने के लिए वित्तीय मदद मांग रहे हैं और उस नुकसान की भरपाई भी चाहते हैं, जो वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से हुई जिसमें उनका कोई हाथ नहीं रहा है।
 
संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में हो रहे कॉप27 सम्मेलन में बारबाडोस के प्रधानमंत्री मिया मोटले ने विश्व नेताओं को मुखातिब होते हुए कहा कि हम लोग ही थे जिनका खून, पसीना और आंसू, औद्योगिक क्रांति में खर्च हुआ है। क्या अब हमें, औद्योगिक क्रांति की वजह से निकली ग्रीनहाउस गैसों के एवज में कीमत चुकाकर दोहरी मार झेलनी होगी?
 
जलवायु सम्मेलन के मौजूदा मेजबान मिस्र और पूर्व मेजबान ब्रिटेन की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, कम आय वाले देशों में, खासतौर पर बहुत गरीब देशों को उत्सर्जनों में कटौती, प्रचंड सूखे और अतिवृष्टि के हालातों के लिहाज से खुद को ढालने, और नतीजतन होने वाली तबाही की कीमत चुकाने के लिए सालाना खरबों डॉलर की जरूरत होगी। अभी तक जिस फंडिंग का वादा किया गया है वो उस जरूरी मात्रा के जरा भी करीब नहीं है।
 
आकलन बताते हैं कि अमीर देशों ने 2020 में जो 100 अरब प्रति साल की जलवायु मदद का वादा किया था, उसे भी वे 2023 तक पूरा नहीं कर पाएंगे। मिस्र में, प्रतिनिधि देश 2025 के लिए और बड़े वित्तीय मदद के लक्ष्य के लिए राजी होने की कोशिश करेंगे। लेकिन उसके लिए पैसा आएगा कहां से?
 
ग्रीन क्लाइमेट फंड
 
जलवायु के लिहाज से संवेदनशील, कम आय वाले देशों को 100 अरब डॉलर की वित्तीय मदद देने का एक जरिया हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड, जीसीएफ) है। इसका मकसद अक्षय ऊर्जा की ओर जाने वाले देशों की मदद करना और अधिक तपिश वाली दुनिया में अनुकूलन की मददगार परियोजनाओं को वित्तीय मदद देना है। मिसाल के लिए, किसान सूखा निरोधी बीज अपनाएं या लू से निपटने के लिए शहरों में ज्यादा ठंडक भरी हरित जगहें बनाई जाएं।
 
किसी देश में निजी कंपनियों, सार्वजनिक संस्थानों और नागरिक समाज के संगठनों को वित्तीय मदद का आवेदन करने के लिए जीसीएफ की मान्यता दी जानी चाहिए। जीसीएफ सार्वजनिक स्रोतों और कारोबारों से खुद अपना फंड जुटाता है।
 
इतनी बड़ी मात्रा में धन की जरूरत को देखते हुए, ऐसे फंडों को निजी सेक्टर में विशाल मात्रा में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल भी करना होगा। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने 120 अरब डॉलर के प्रोजेक्टों की एक सूची जारी की थी जिसमें निवेशक अपनी पूंजी लगा सकते हैं। इन प्रोजेक्टों में हरित ऊर्जा और फसल अनुकूलन स्कीमें शामिल हैं।
 
विकासशील देशों के गांवों मे गरीबी को मिटाने के लिए काम कर रहे, रोम स्थित संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष से जुड़ीं ज्योत्सना पुरी कहती हैं कि अगर सही ढंग से किया जाए तो अनुकूलन व्यापारों और उन लोगों के लिए अच्छा है जिन्हें जलवायु परिवर्तन से नुकसान हुआ है।
 
जलवायु सम्मेलन से डीडब्ल्यू से मुखातिब होते हुए ज्योत्सना कहती हैं कि कि इसका कारण ये है कि अगर आप उन्हें थोड़ा हक जताने का मौका देंगे और उन्हें उनके योगदान के बदले उचित बाजार भाव के हिसाब से भुगतान करेंगे तो उससे मदद मिलेगी।
 
स्वैच्छिक कार्बन बाजारों का क्या?
 
बहुत से गरीब देश कार्बन क्रेडिट मार्केट के जरिए भी फंड जुटाने की उम्मीद कर रहे हैं। जलवायु सम्मेलन में केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने कहा कि कार्बन क्रेडिट उनक देश का अगला बड़ा निर्यात होगा। कंपनियां या देश जो ग्रीनहाउस गैस निकालते हैं, उसकी एवज कार्बन क्रेडिट खरीद सकते हैं। वो पैसा सौर या पवन ऊर्जा के प्रोजेक्टों में खर्च होता है या कार्बन सिंक की तरह काम करने वाले दलदली इलाकों (पीटलैंड) या जंगलों को बचाने में।
 
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट कहती है कि कार्बन क्रेडिट की मदद से गरीब देश अपनी जलवायु नकदी में इजाफा कर सकते हैं। लेकिन खरीदारों को स्रोत से ही उत्सर्जन कटौती पर किसी कार्रवाई से बचने के लिए, उन क्रेडिट्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। लेकिन ये भी कोई अचूक दवा नहीं है।
 
एक स्वैच्छिक कार्बन मार्केट संगठन, द गोल्ड स्टैंडर्ड फाउंडेशन में चीफ टेक्निकल ऑफिसर ओवेन ह्वुलेट कहते हैं कि कॉप 27 में किसी अन्य वित्तीय प्रविधि की तरह ही स्वैच्छिक कार्बन बाजार कोई ऐसी चीज नहीं है जो अनुकूलन को जादुई ढंग से दुरुस्त कर दे और तमाम वित्तीय जरूरतें मुहैया करा दे।
 
डैमेज फंड से जलवायु क्षतिपूर्ति
 
अचानक आई बाढ़ से किसी समुदाय की बर्बादी या फसल खराब होने से रोजीरोटी छिन जाने जैसे गंभीर मामलों में, गरीब और असहाय देश लंबे समय से जलवायु से जुड़ी तबाही की कीमत चुकाने में बतौर मदद एक विशेष हानि और नुकसान फंड (लॉस ऐंड डैमेज फंड) की मांग करते रहे हैं।
 
जलवायु सम्मेलन में केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने कहा कि हानि और नुकसान अंतहीन संवाद का कोई अमूर्त विषय नहीं है। ये हमारा रोज का अनुभव है और केन्या के लाखों लोगों और करोड़ों अफ्रीकियों का एक दुःस्वप्न है।
 
अमीर, औद्योगिक देश हानि और नुकसान के लिए किसी विशिष्ट कोष की स्थापना के विचार का विरोध करते आए हैं। क्योंकि उन्हें डर है कि इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी मात्रा में पैसा निकालना होगा। लेकिन ये मुद्दा इस साल पहली बार आधिकारिक रूप से कॉप के एजेंडा में शामिल कर लिया गया है।
 
कुछ लोग इस फंड को उन देशों से आए मुआवजे के रूप में देखते है जिन्होंने अपनी अर्थव्यवस्थाएं जीवाश्म ईंधनों को वर्षों तक जलाए रख कर विकसित की हैं और ऐसा उन देशों की कीमत पर किया है जिनका ऐतिहासिक उत्सर्जनों से जरा भी लेनादेना नहीं रहा है। नाइजीरिया में एक गैर लाभकारी क्षमता निर्माण समूह, केबेटकाशे वीमन डेवलपमेंट एंड रिसोर्स सेंटर की कार्यकारी निदेशक एमम ओकोन कहती हैं, इसे मदद की तरह नहीं देखना चाहिए।
 
जलवायु सम्मेलन से ओकोन ने डीडब्लू को बताया कि संपन्न देशों को वो सब लौटाना होगा जो उन्होंने अफ्रीका से, यहां के समुदायों से छीना है।
 
कम आय वाले देशों के लिए जलवायु वित्तीय मदद कर्ज के रूप में उपलब्ध है ना कि सहायता या ग्रांट के रूप में। स्वीडन स्थित थिंकटैंक स्टॉकहोम एन्वायर्नमेंट इन्स्टीट्यूट (एसईआई) के मुताबिक इसकी वजह से पहले से कर्जदार बने देश और गहरे कर्ज में डूब रहे हैं।
 
अफ्रीकी और प्रशांत द्वीप के राज्यों समेत, एसईआई उन तमाम आवाजों में शामिल है जो किसी न किसी रूप में कर्ज में राहत की मांग कर रहे हैं। कुदरत के लिए कर्ज या कर्ज के बदले जलवायु की अदलाबदली एक समाधान हो सकता है। इसमें किसी देश के कर्ज के एक हिस्से को माफ करना शामिल है और उसका इस्तेमाल अहम प्राकृतिक संसाधनों जैसे वर्षावन या मूंगों को बचाने से जुड़ी योजनाओं में निवेश करने से जुड़ा है।
 
जलवायु परिवर्तन पर कैरेबियाई इलाके की प्रतिक्रिया का समन्वय करने वाले संगठन, कैरेबियन कम्युनिटी क्लाइमेट चेंज सेंटर से जुड़े पर्यावरण अर्थशास्त्री मार्क बायनी कहते हैं कि अगर देश किसी किस्म की राहत के लिए राजी नहीं हुए तो जलवायु नाइंसाफी और गहरी होती जाएगी। हमारे देश पहले ही इतने सारे कर्ज में डूबे हैं कि अगर उन्होंने और कर्ज लिया तो मामला डगमगा जाएगा। वो टिकाऊ नहीं होगा।

Edited by: Ravindra Gupta
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