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Last Modified: मंगलवार, 6 जुलाई 2021 (07:36 IST)

मोदी सरकार इन तरीक़ों से लगा सकती है महंगाई पर लगाम

मोदी सरकार इन तरीक़ों से लगा सकती है महंगाई पर लगाम - Modi government and inflation
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
अर्थशास्त्र जिसने पढ़ा है और जिसने ना भी पढ़ा हो - इतनी सी बात सब जानते हैं कि बाज़ार में मांग होगी, तभी महंगाई बढ़ेगी। लेकिन भारत के बाज़ार में अभी चीज़ों की मांग भी कम है, फिर भी महँगाई आसमान छू रही है। आख़िर ऐसा क्यों है?
 
कोरोना काल में बाज़ार में लोगों के हाथ में पैसा कम है, कइयों की नौकरी चली गई है, कइयों का ख़र्च स्वास्थ्य पर ज़्यादा हो गया है, कई लोग केवल रोज़मर्रा के सामान जुटने भर कमा- खा रहे हैं। इन सब वजहों से ग़रीब, ग़रीब हो गए लोग और मिडिल क्लास की कमर बढ़ती महँगाई और स्वास्थ्य ख़र्च की वजह से टूटती चली गई।
 
जब लोगों के हाथ में पैसा नहीं होगा, तो चीज़ें ख़रीदने की माँग नहीं होगी और माँग नहीं होगी, तो महंगाई नहीं होनी चाहिए। इसलिए ये जानने से पहले कि सरकार महँगाई पर लगाम कैसे लगाए, ये जानना ज़रूरी है कि महंगाई बढ़ क्यों रही है?
 
 
 
महंगाई बढ़ने के कारण
सप्लाई चेन बाधित होना
 
जेएनयू में प्रोफ़ेसर रह चुके वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार महंगाई बढ़ने के कुछ महत्वपूर्ण कारण इस तरह से गिनाते हैं -
 
"पहला - लॉकडाउन की वजह से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई बाधित हुई है। मसलन खाद्यान्न की रिकॉर्ड उपज के बावजूद शायद माल गोदाम से दुकानों तक नहीं पहुँच पा रहे। कभी कभी इसका फ़ायदा दुकानदार और थोक विक्रेता उठाते हैं और चीज़ें महंगी बेचने लगते हैं।
 
पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम
दूसरा - इस समय पेट्रोल-डीज़ल के दाम में रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखी जा रही है। एक तरफ़ तो सरकार का खज़ाना इससे भर रहा है, लेकिन इन क़ीमतों का सीधा असर महँगाई पर पड़ता है। सामान लाने-ले जाने पर ख़र्च सीधा बढ़ जाता है। दुकानदार जेब से तो ये ख़र्च करता नहीं हैं। सामान की क़ीमतों में वो जुड़ जाता है और लोगों का बजट गड़बड़ हो रहा है।
 
कच्चे माल के दाम में बढ़ोतरी
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों की अर्थव्यवस्था सुधर रही है, तो वहां महंगाई बढ़ रही है। कई संगठित क्षेत्रों में कच्चा माल उन्हीं अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों से आता है। संगठित क्षेत्र ने इस वजह से अपने लाभ को ना कम करते हुए चीज़ों के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए। जबकि सच तो ये है कि बेरोज़गारी बढ़ने की वजह उनको सस्ता श्रम मिल रहा है। इसका कुछ असर एफ़एमसीजी गुड्स पर भी पड़ा है।

महंगाई बढ़ने के पीछे ये भी एक कारण है।
 
नोट छापना
 
जबकि वरिष्ठ बिजनेस पत्रकार पूजा मेहरा प्रो. अरुण कुमार के सप्लाई चेन बाधित होने वाले तर्क से इत्तेफ़ाक नहीं रखतीं।
 
वो कहती हैं, "सरकार और आरबीआई दोनों ही महंगाई का ग़लत आँकलन कर रही है। आज की महंगाई चीज़ों की सप्लाई बाधित होने की वजह से नहीं हैं। ये बात कई अर्थशास्त्रियों ने डेटा के ज़रिए साबित की है। साथ ही ये बताया है कि आरबीआई ने पिछले कुछ समय में बहुत अधिक रुपया छापा है, जिसकी वजह से ये महंगाई बढ़ी है। इसलिए महँगाई कम करने के लिए सरकार को इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। "
 
बढ़ती महंगाई पर लगाम
पेट्रोल डीज़ल से टैक्स उगाही पर कम हो निर्भरता
 
दूसरे उपाए के तहत पूजा मेहरा बताती हैं कि सरकार को पेट्रोल-डीज़ल के टैक्स पर अपनी निर्भरता कम करना चाहिए। वो कहती हैं, "पेट्रोल- डीज़ल के बढ़ते दाम का सीधा संबंध बढ़ती महंगाई से होता है। सरकार ने इन पर कई तरह के टैक्स लगा रखें है, जिससे उनका खज़ाना भरता है।
 
सरकार पेट्रोल-डीज़ल के टैक्स से कमाई करती है और इस वजह से इनके दाम कम नहीं हो रहे। सरकार को इन दोनों से होने वाली कमाई पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी, तभी महंगाई पर लगाम लगाई जा सकती है।
 
सोमवार को ममता बनर्जी ने पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स कम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने भी महंगाई से इसे सीधे जोड़ा है।
 
शेयर बाजार से लेन-देन पर टैक्स वसूली
 
प्रो. अरुण कुमार, पूजा मेहरा की इस बात से सहमत हैं। पेट्रोल-डीजल के मिले टैक्स पर निर्भरता कम करने का वो उपाय भी सुझाते हैं।
 
वो कहते हैं, "मान लीजिए शेयर बाज़ार में रोज़ाना 10 हज़ार करोड़ का लेन-देन होता है, उस पर एक छोटा सा टैक्स 0.1 फ़ीसदी का सरकार लगा दे तो 10 करोड़ रुपए रोज़ाना सरकार के पास जमा होंगे। ऐसे करने से शेयर बाज़ार की अस्थिरता भी कम होगी और सरकार की जेब भी भरेगी।"
 
कोविड बॉन्ड्स
 
सरकार के खज़ाने में ज़्यादा पैसा लाने का दूसरा उपाए प्रो. अरुण कुमार कोविड बॉन्ड्स के रूप में सुझाते हैं। उनका कहना है कि भारतीय बैंकों के पास तकरीबन 4 लाख करोड़ का फ़ंड है, जो वो इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और आरबीआई के पास सुरक्षित रख देते हैं।
 
आरबीआई, छोटे बैंकों को इस पैसे के इस्तेमाल करने के लिए लगातार कहती है, लेकिन वो कई वजहों से ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। मसलन कोरोना की वजह से लोग ना तो लोन लेने आ रहे हैं। दूसरी वजह है एनपीए वालों को बैंक लोन देना नहीं चाहती। ऐसे में, जिन-जिन क्षेत्रों में तरलता है, वहाँ कोविड बॉन्ड्स फ़्लोट करके सरकार चाहे तो पैसा जुटा सकती है।
 
ये एक तरीके का उधार लेने जैसा ही होगा, लेकिन देश के ग़रीबों के हाथ में पैसे देने के लिए सरकार ऐसे उपाय आज़मा सकती है।
 
लोगों के हाथ में सीधा पैसा
 
वो आगे कहते हैं, "सरकार इस तरह से हासिल पैसे (शेयर बाज़ार पर टैक्स और कोविड बॉन्ड से आया पैसा) का इस्तेमाल लोगों के अकाउंट में सीधा पैसा जमा कर भी कर सकती है। या फिर स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल कर सकती है।"
 
आम जनता की भलाई के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में पैसा ख़र्च करने को वो 'पब्लिक गुड' कहते हैं।
 
"मसलन अगर वैक्सीन, कोरोना टेस्ट और कोरोना का इलाज सरकार फ़्री कर दे, तो लोगों के पास पैसे की बचत होने लगेगी, तब वो ख़र्च बाज़ार में होने लगेगा और माँग बढ़ेगी।
 
उसी तरह से हाल ही में रिपोर्ट आई है कि हरियाणा में 12 लाख बच्चे हैं, जो स्कूल सिस्टम से कोरोना महामारी के दौरान बाहर हो गए हैं। अब ये बच्चे ना तो सरकारी स्कूलों में है ना ही प्राइवेट स्कूलों में। इनका स्कूल से निकलना आगे चल कर अर्थव्यवस्था पर ही असर डालेगा।
 
सरकार अगर ऐसे बच्चों का स्कूल का ख़र्चा उठाएगी, तो अभिभावकों का वो पैसा तो सीधे बाज़ार में ख़र्च होगा। आने वाले वक़्त में देखना होगा, सरकार महँगाई को काबू में करने के लिए कौन सा तरीक़ा अपनाती है।
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