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कभी महत्वपूर्ण नीतिगत का काम करने वाली बैंक दर वर्ष से एक तरह से नुमाइश का सामान बन कर रह गई थी और इसका कोई प्रयोग नहीं हो रहा था। यह वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को लम्बे समय का वाणिज्यिक कर्ज देता है।
फिलहाल आरबीआई ने एक अधिसूचना में कहा कि बैंक दर में बदलाव को मौद्रिक नीति में बदलाव की बजाय नकदी की सीमांत स्थाई सुविधा (एमएसएफ) दर के अनुकूल बनाने के लिए एक बार में किए गए तकनीकी समायोजन के तौर पर देखा और समझा जाना चाहिए।
एमएसएफ वह स्थायी सुविधा है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को नकदी की कमी पूरा करने के लिए अतिरिक्त रूप से देता है। इस फौरी उधार (रेपो) की दर से एक प्रतिशत ऊंचा ब्याज वसूलता है।
बैंक दर का महत्व मौद्रिक नीति के उपाय के तौर पर खत्म हो गया है क्योंकि अब रेपो को ही मुख्य नीतिगत ब्याज दर बना दिया गया है। रिवर्स रेपो और एमएसएफ अब इस दर से क्रमश: एक प्रतिशत कम और एक प्रतिशत उपर रखे जाते हैं।
आरबीआई ने अप्रैल 2003 से बैंक दर स्थिर रखी थी। (भाषा)