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Written By Author गिरीश पांडेय

योग दिवस पर विशेष : योग से लोक को जोड़ने का श्रेय गुरु गोरक्षनाथ को

योग दिवस पर विशेष : योग से लोक को जोड़ने का श्रेय गुरु गोरक्षनाथ को - The credit goes to Guru Gorakshanath for connecting people with yoga
Guru Gorakshanath: भारतीय परंपरा में रचे-बसे योग को एक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है, पर योग को लोक से जोड़ने का श्रेय नाथ पंथ के आदि गुरु गोरखनाथ को जाता है। उनके बाद के नाथ योगियों के सिद्धों एवं साधकों ने शरीर को स्वस्थ, मन स्थिर एवं आत्मा को परमात्मा में प्रतिष्ठित करने वाली इस विधा को लोक तक पहुंचाया।
 
फिर तो योग जाति, धर्म, मजहब, लिंग और भौगोलिक सीमाओं से परे सबके लिए उपयोगी होता गया। आज पूरी दुनिया योग को इसी रूप में स्वीकार भी कर रही है। 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' इसका प्रमाण है।
 
उल्लेखनीय है कि हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना से जुड़े संप्रदायों में नाथ पंथ का महत्वपूर्ण स्थान है। बृहत्तर भारत समेत देश के हर क्षेत्र में नाथ योगियों/ सिद्धों की उपस्थिति इस संप्रदाय की व्यापकता और इसी अनुरूप इसके प्रभाव का सबूत है।
 
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति आदिनाथ भगवान शिव से मानी जाती है। आदिनाथ शिव से मिले तत्वज्ञान को मत्स्येन्द्रनाथ ने अपने शिष्य गोरक्षनाथ को दिया। माना जाता है कि गुरु गोरक्षनाथ शिव के ही अवतार थे। गुरु गोरक्षनाथ का अपने समय में भारतवर्ष समेत एशिया के बड़े भू-भाग (तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफगानिस्तान, श्रीलंका) व्यापक प्रभाव था। उन्होंने अपने योग ज्ञान से इन सारी जगहों को कृतार्थ किया।
 
योग ही श्रेष्ठ पथ : जॉर्ज गियर्सन
 
जॉर्ज गियर्सन के अनुसार गोरखनाथ ने लोक जीवन का पारमार्थिक स्तर पर उत्तरोत्तर उन्नयन और समृद्ध कर निष्पक्ष, आध्यात्मिक क्रांति का बीजारोपण कर योगरूपी कल्पतरु की शीतल छाया में त्रयताप से पीड़ित मानवता को सुरक्षित कर जो महनीयता प्राप्त की, वह उनकी अलौकिक सिद्धि का परिचायक है।
 
गोरक्षनाथ का योग मार्ग शुष्क विचारात्मक नहीं, साधनापरक है। उनका जोर निर्विकार चिंतन और अंतरंग साधना पर है। इस बाबत उनका कहना है कि ज्ञान सबसे बड़ा गुरु और चित्त सबसे बड़ा चेला है। इन दोनों का योग सिद्ध कर जीव को जगत में पारमार्थिक स्वरूप शिव में प्रतिष्ठित रहना चाहिए। यही श्रेष्ठ पथ है।
 
गुरु गोरक्षनाथ द्वारा प्रतिपादित योग का इसलिए भी महत्व है, क्योंकि उन्होंने योग को वामाचार से निकालकर इसे सात्विक, सदाचार और सद्विचार के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने योग के संबंध में अब तक की अतियों से बचने पर जोर दिया।
 
सर्वजनीनता, गोरक्षनाथ के योग की सबसे बड़ी खूबी : एलपी टेशीटरी
 
एलपी टेशीटरी के मुताबिक गोरख नाथ के योग की खूबी इसकी सार्वजनीनता है, मसलन उनके योग का द्वार सबके लिए खुला है।
 
ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ नाथ के मुताबिक योग साधना संपर्ण मानवता के कल्याण के लिए हमारे ऋषियों, महर्षियों और महान योगियों द्वारा प्रचारित खास किस्म के रसायन हैं। इनका सेवन हर देश, काल, जाति, लिंग, वर्ण, समुदाय, संप्रदाय और पंथ के लोगों के लिए सुलभ और उपयोगी है। उनके मुताबिक अपनी इस परंपरा और सांस्कृतिक थाती को सुरक्षित एवं समृद्ध करते हुए देश और समाज की सेवा लिए पीठ प्रतिबद्ध है।
 
इसी उद्देश्य से गुरु गोरक्षनाथ ने योग को लोक कल्याण से जोड़ा। योग मानवता के कल्याण का जरिया बने, हर कोई इसकी उपयोगिता को जाने, इसके जरिए तन को स्वस्थ, मन को स्थिर करे इसके लिए गुरु गोरखनाथ ने संस्कृत और लोकभाषा दोनों में साहित्य की रचना की। गोरक्ष कल्प, गोरख संहिता, गोरक्ष शतक, गोरख गीता, गोरक्षशास्त्र, ज्ञानप्रकाश शतक, ज्ञानामृत योग, योग चिंतामणि, योग मार्तंड, योग सिद्धांत पद्धति, अमनस्क योग, श्रीनाथ सूत्र, सिद्ध सिद्धांत पद्धति, हठयोग संहिता जैसी रचनाएं इसका सबूत हैं।
 
योग की परंपरा को आगे बढ़ाने में गोरक्षपीठ को महत्वपूर्ण भूमिका
 
गोरखपीठ इस परंपरा को लगातार आगे बढ़ा रही है। वहां महायोगी गुरु गोरक्षनाथ संस्थान द्वारा प्रशिक्षित योग गुरुओं के सान्निध्य और मार्ग-निर्देशन में इच्छुक लोगों को योग के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष की जानकारी दी जाती है। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ और अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि समारोह और अब 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर भी यह सिलसिला चलता है।
 
करीब हफ्तेभर चलने वाले पुण्यतिथि समारोह के दौरान देश के ज्वलंत मुद्दों पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के एक दिन का विषय योग ही होता है। यही नहीं, संस्थान के प्रशिक्षु इसका जीवंत प्रदर्शन भी करते हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने 'हठयोग, स्वरूप एवं साधना' नाम से खुद योग पर एक सारगर्भित किताब लिखी है। इसके अलग-अलग अध्यायों में योग, हठयोग, खट कर्म, आसन मुद्रा, प्रत्याहार, योग निद्रा, प्राणायाम, ध्यान, समाधि, नाद विंदु साधना और अजपा जप के बारे में उपयोगी जानकारियां हैं।
 
भारतीय संस्कृति जितनी ही पुरानी है योग की हमारी थाती
 
'योग' भारत की थाती है। यह उतना ही प्राचीन है जितनी भारतीय संस्कृति। हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गीता, रामायण, महाभारत, शिव संहिता, गोरक्ष संहिता, घेरण्ड संहिता, हठ योग प्रदीपिका, सिद्ध सिद्धांत और जैन, सांख्य वैशेषिक आदि दर्शनों में भी योग का जिक्र मिलता है। यहां तक कि दुनिया की प्राचीनतम संस्कृतियों में शुमार मोहन जोदड़ो एवं मध्यप्रदेश के नर्मदा नदी पर बसे प्राचीन माहिष्मति के पुरावशेषों में भी योग के प्रमाण मिलते हैं।

Edited by: Ravindra Gupta
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