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Last Modified: बुधवार, 21 जून 2023 (11:55 IST)

Iinternational Day of Yoga : प्राचीन भारत के योग गुरु, जिन्होंने दुनिया को सिखाया योग

Iinternational Day of Yoga : प्राचीन भारत के योग गुरु, जिन्होंने दुनिया को सिखाया योग - Ancient yoga guru in india
दुनिया की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ई.पू. सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मोहरों और मूर्तियों में मिलता है। योग का प्रामाणिक ग्रंथ 'योगसूत्र' 200 ई.पू. योग पर लिखा गया पहला व्यवस्थित ग्रंथ है। आओ विश्‍व योग दिवस पर जानें भारत के प्राचीन योग गुरुओं के बारे में जिन्होंने दिया योग को जन्म।
 
1.भगवान शंकर-
माता पार्वती के पति देवों के देव महादेव को ही योग का प्रथम गुरु माना जाता है। उन्होंने इसकी शिक्षा अपने 7 शिष्यों को दी थी। प्रथम जो सप्त ऋषि हैं वहीं उनके 7 शिष्य हैं। उनके बाद हर काल में अलग-अलग सप्तऋषि हुए हैं। संभवत: ये प्रथम सप्तऋषि थे- बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे। कुछ विद्वान वशिष्ठ ऋषि और अगस्त्य मुनि को उनका महान शिष्य मानते हैं।
 
2.ऋषि वशिष्ठ-
ऋषि वशिष्ठ भी बहुत हो गए हैं, लेकिन हम बात कर रहे हैं उनकी जो सप्तर्षियों में से एक और ब्रह्मा के मानसपुत्र थे। वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति थी। ऋग्वेद में वशिष्ठ ऋषि को मित्रवरुण और उर्वशी का पुत्र बताया गया है। उनके पास कामधेनु गाय और उसकी बछड़ी नंदिनी थी। वाल्मीकि ने उन्हीं के नाम पर एक ग्रंथ लिखा था जिसे 'योग वशिष्ठ' कहते हैं। यह महाभारत के बाद संस्कृत के सबसे लंबे ग्रंथों में से एक और योग का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें करीब 32,000 श्लोक हैं और विषय को समझाने के लिए बहुत सी लघु कहानियां और किस्से इसमें शामिल किए गए हैं।
 
3.भगवान श्रीकृष्ण-
भगान श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है। वे योग से सबसे बढ़े गुरु थे। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में योग की ही चर्चा की है। योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रह कर हासिल की थी। वह योग में पारंगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियां होती है वह स्वत: ही उन्हें प्राप्य थी। सिद्धियों से पार भी जगत है वह उस जगत की चर्चा गीता में करते हैं। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है।
 
श्रीकृष्ण के ही काल में वेदव्यास और पाराशर ऋषि का नाम भी योग के शिक्षकों में लिया जाता है। इससे पूर्व राम के काल में ऋषि अष्‍टावक्र हुए थे जिन्हें महान योगी माना गया है।
4.महावीर स्वामी-
भगवान श्रीकृष्ण के बाद यदि कोई महायोगी हुआ है तो वह है महावीर स्वामी। उन्होंने योग के यम, नियम आदि को विस्तार देकर पंच महाव्रत का प्रचार किया। उन्होंने ही योग के ज्ञान को नया रूप दिया। वर्धमान महावीर ने साढ़े बारह साल तक मौन तपस्या की और तरह-तरह के कष्ट झेले। अंत में उन्हें 'केवल ज्ञान' प्राप्त हुआ। योग का ही दूसरे अंग नियम का ही एक अंग है तप। महावीर स्वामी पहले से चली आ रही परंपरा के अंतिम तीर्थंकर थे। उनके पूर्व कई महान योगी हुए हैं जिनमें से पहले ऋषभनाथ को आदिनाथ कहा जाता है।
 
5.गौतम बुद्ध-
गौतम बुद्ध को कुछ लोग विष्णु का अवतार तो कुछ भगवान शिव का अवतार मानते हैं। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद्‌ तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता था। गृह त्याग के बाद उन्होंने अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि कई मुनियों से योग, ध्यान और तप की शिक्षा ली थी। इसके बाद उन्होंने अपना एक नया मार्ग बनाया और चल पड़े सत्य की खोज में। जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तो उन्होंने अपना एक अलग दर्शन और धर्म गढ़ा। उन्होंने योग के आधार पर ही आष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी थी। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं।
 
6.महर्षि पतंजलि-
महर्षि पतंजलि ऐसे पहले योगी थे जिन्होंने योग को अच्छे से श्रेणिबद्ध कर उसको बहुत ही संक्षिप्त तरीके से समझाया। उन्होंने योग पर कई किताबें लिखी जिसमें 'योग सूत्र' सबसे ज्यादा प्रचलित है। योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चर्चा में थे। इनका जन्म गोनारद्य (गोनिया) में हुआ था लेकिन कहते हैं कि ये काशी में नागकूप में बस गए थे। यह भी माना जाता है कि वे व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे। भारतीय दर्शन साहित्य में पातंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रन्थ मिलते है- योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ।
7.आदि शंकराचार्य-
शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को व्यवस्थित करने का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने हिंदुओं की सभी जातियों को इकट्ठा करके 'दसनामी संप्रदाय' बनाया और साधु समाज की अनादिकाल से चली आ रही धारा को पुनर्जीवित कर चार धाम की चार पीठ का गठन किया जिस पर चार शंकराचार्यों की परम्परा की शुरुआत हुई। शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूदरी ब्राह्मण के यहां हुआ। मात्र 32 वर्ष की उम्र में वे निर्वाण प्राप्त कर ब्रह्मलोक चले गए। उनके साधु सभी योग की ही साधना करते हैं और सभी आदि योग गुरु भगवान शंकर के अनुयायी हैं।
 
8.गुरु गोरखनाथ-
सिद्धों की भोग-प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) तथा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) माने जाते हैं। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं।
 
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे। जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठिन (आड़े-तिरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अ‍चम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि 'यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।' गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं:- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि।
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