ऐसा देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति जब श्वास लेते हैं तो उनकी श्वास आधी-अधूरी या उखड़ी-उखड़ी सी होती है। श्वास लेते वक्त कुछ लोगों का पेट अंदर की ओर जाता है, लेकिन यह योग की दृष्टि से गलत माना गया है।
श्वास-प्रश्वास की स्थिति लयपूर्ण या सामान्य होनी चाहिए। श्वास लेने के तरीके सिखने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शहरी प्रदूषण और शोर के कारण व्यक्ति अपनी स्वाभाविक श्वास प्रक्रिया भूल गया है जिसके कारण दिमाग में अशांति, बैचेनी और अनावश्यक भय बढ़ गया है। इसका शरीर पर भी बुरा प्रभाव होता है।
सही श्वास की क्रिया : यह विधि या क्रिया श्वास को पुन: पटरी पर लाने के लिए है। सबसे पहले दोनों हथेलियों को अपने घुटनों पर रखकर किसी भी सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ। रीढ़ की हड्डी, कमर और गर्दन को सीधा रखते हुए अपनी आँखें बंद कर लें और अपना पूरा ध्यान श्वास की गति पर दें।
इसके बाद अपनी दाहिनी हथेली को नाभि पर रखें। फिर पेट को बाहर की ओर लाते हुए श्वास भरें, अर्थात इसमें पेट फुलेगा। महसूस करें कि श्वास भरते समय हथेली बाहर की ओर आ रही है।
इसी प्रकार फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए पेट को हथेली के सहारे अंदर की ओर ले जाएँ। इस तरह श्वास की गति को नाभि से लेकर नासापुटों तक महसूस करें। अगर श्वास भरते हुए पेट अंदर की ओर जाए तो इस विधि से श्वास-प्रश्वास को ठीक कर सकते हैं। याने हथेली के सहारे हम इसका अभ्यास कर सकते हैं।
ध्यान रखें कि उपरोक्त प्रक्रिया में श्वास-प्रश्वास हमेशा नाक से ही लें। मुँह से श्वास भरते हुए सिर्फ पेट फूले, छाती नहीं। शुरू में इसका अभ्यास 10-12 बार करें। कुछ दिन तक श्वास की इस सामान्य विधि को करें उसके बाद श्वास भरते हुए पेट फुलाएँ फिर छाती और अंत में कंधे तक श्वास भरें, अर्थात भरपूर हवा भर लें।
अब श्वास छोड़ते वक्त सबसे पहले आपके कंधे ढीले करें फिर फेफड़ों से श्वास बाहर निकाल दें और अंत में श्वास छोड़ते हुए नाभि को अंदर की ओर ले जाएँ। यथाशक्ति अनुसार इसका अभ्यास पाँच से दस मिनट तक कर सकते हैं। एक माह नियिमित अभ्यास करते रहने से आपकी श्वास लेने की प्रक्रिया में सुधार हो जाएगा।
इसका लाभ : मन शांत होगा। मस्तिष्क से तनाव हट जाएगा। रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होगा। फेंफड़े मजबूत हो जाएँगे तथा पाचन क्रिया में भी सुधार हो जाएगा। आँखों की थकान में लाभ मिलेगा और शरीर में स्पूर्ति बनी रहेगी।