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Written By ND

सलाम अब्दुल कलाम!!

सलाम
सुधा मूर्ति
NDND
अब तक मैं कई अखबारों तथा पत्रिकाओं में स्तंभ लिख रही थी। उनमें से एक थी 'द वीक' । एक बार मैंने 'द वीक' में एक स्तंभ लिखा था कि जिंदगी में सूचना प्रौद्योगिकी आम जनता के लिए क्या भूमिका निभा रही है। विषय का नाम था 'आईटी' यह विषय मेरे जीवन में घटित एक सत्य कहानी के ऊपर आधारित है।

जब यह कॉलम पत्रिका के माध्यम से पाठकों के समक्ष आया तब एक दिन सुबह के समय मुझे दिल्ली से किसी ने फोन किया। ऑपरेटर ने फोन पर कहा कि श्री अब्दुल कलाम आपसे बात करना चाहते हैं। उस समय अब्दुल कलाम भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सचिव थे। पहले कभी उनसे मुलाकात नहीं हुई थी। मैंने उनके बारे में केवल अखबारों में पढ़ा था या टीवी में देखा था।

फोन कॉल के बाद मैं सोच-विचार में पड़ गई कि क्यों ऐसा प्रतिष्ठित तथा महत्वपूर्ण व्यक्ति मुझ साधारण व्यक्ति के साथ बात करना चाहता है। हम दोनों के बीच कोई ऐसा माध्यम नहीं, जिसके आधार पर हम एक-दूसरे को जान सकते थे। हमारी बातचीत की कल्पना ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे हिमालय चोटी की मुलाकात नन्हे पहाड़ के साथ हो रही हो।

श्री कलाम ने कहा कि 'मैं आपके कॉलम को नियमित रूप से पढ़ता हूँ। हाँ, पर आप अपने सपने तथा संघर्ष के विषयों पर लिखती हैं। मैंने आपका,'आईटी' के बारे में लिखा पढ़ा। आपने इस कठिन विषय को एक हास्यपूर्ण रचना में कितनी सरलता से लिखा है।'

मैंने कलाम से पहली मुलाकात बंगलोर में की थी। काम में व्यस्त होने के बावजूद वे मुझसे मिले थे। उन्होंने मुझसे पूछा- तुम्हें इतनी अच्छी तमिल कैसे आती है। मैंने कहा- मैं तमिल नहीं जानती हूँ। आनंद निकेतन में अनुवादक ने ही इसे तमिल में लिखा है।

उस मुलाकात के बाद जब भी मैं अकेली होती तब अन्ना विश्वविद्यालय, जहाँ वे पढ़ाया करते थे, मुलाकात करती थी। उनके साथ मैं विभिन्न विषयों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा पर चर्चा करती। एक बार मैं उड़ीसा के चाँदीपुर में कम उम्र के मछली पकड़ने वाले लड़के के साथ बिताए समय के अनुभवों को उनके साथ बाँट रही थी।

  वह बहुत ही गरीब घर का लड़का था। लाल केकड़ा बेचकर अपनी माँ की सहायता करता था। पूरा दिन काम करने के बाद उसे केवल पाँच रुपए मिलते थे, परंतु वह इस दरिद्रता में भी बहुत खुश था। कलाम ने उन बातों को तुरंत ही एक कागज पर लिख लिया।      
वह बहुत ही गरीब घर का लड़का था। लाल केकड़ा बेचकर अपनी माँ की सहायता करता था। पूरा दिन काम करने के बाद उसे केवल पाँच रुपए मिलते थे, परंतु वह इस दरिद्रता में भी बहुत खुश था। कलाम ने उन बातों को तुरंत ही एक कागज पर लिख लिया। उड़ीसा में उन्होंने कई साल बिताए थे तथा कई प्रकार के परमाणु परीक्षण किए थे। यही वजह थी कि उन्हें उड़ीसा बहुत ही प्रिय था।

मैंने कहा कि 'अगर उड़ीसा में मैं कुछ कार्यक्रम कर रही होऊँगी तो आपसे जरूर मिलने आऊँगी। मैं जानती नहीं थी कि आपने कई साल तक वहाँ पर काम किया और वह आपके हृदय के बहुत करीब है।'

एक दिन मैंने योजना बनाई कि मैं अपनी सहलियों के साथ रामेश्वरम जाऊँगी। कलाम का यह जन्म स्थान था, जब उन्हें पता चला तब वे हमारे साथ आने के लिए व्याकुल हो गए। मदुरै रेलवे स्टेशन पर उनसे मुलाकात करने का फैसला किया था। उन्होंने सारी व्यवस्था कर ली थी तब भारत के राष्ट्रपति पद के लिए उन्हें चुना गया था।
उन्होंने दूसरे दिन के लिए रामेश्वरम जाने की योजना रखी थी। अब तक मुझे यकीन था कि चुनावों के परिणाम के बगैर ही वे भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिए जाएँगे। सुरक्षा कारणों से समस्या होने के कारण हम उन्हें हमारे साथ आने के लिए नहीं कह पा रहे थे। दुःखी होकर मैंने कहा कि सर आप मत आइए हम अपने आप ही चले जाएँगे।

यात्रा से लौटने पर, मेरे अनुमान के अनुसार उन्हें राष्ट्रपति के लिए चुन लिया गया था। उन्होंने हमें अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था। समारोह से बाहर निकलते समय मैं कलाम के प्रति लोगों के स्नेह को देखकर बहुत अभिभूत हो गई थी।

कुछ महीने गुजर जाने के बाद मैंने अपने नौजवान पुत्र से कहा कि उसे श्री कलाम से मुलाकात करना चाहिए। मेरे पुत्र ने कहा कि अम्मा वे भारत के राष्ट्रपति हैं तथा बहुत ही शिक्षित एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं। वे बहुत ही व्यस्त व्यक्ति हैं, मुझ जैसे व्यक्ति के साथ क्या बात करेंगे।

''ऐसी बात नहीं है बेटा, समझने की कोशिश करो। मैं उन्हें राष्ट्रपति होने से पहले जानती हूँ एवं राष्ट्रपति बनने के बाद भी मेरी मुलाकात उनसे हुई थी। उनमें कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। उन्हें कम उम्र लोगों के साथ बात करना बहुत पसंद है। वे बच्चों से ई-मेल और चेटिंग के जरिए संपर्क में रहते हैं। यही एक कारण है कि मैं उनसे मिलना चाहती हूँ।''

''उनकी योग्यताओं से हम सीख सकते हैं। जो किसी विश्वविद्यालय से कभी नहीं सीखा जा सकता।'' मेरा बेटा किसी भी तरह राजी नहीं हो रहा था। वह फुसफुसाया- वे मेरे लिए बहुत बड़े आदमी हैं।
अंततः वह डीनर में कलाम साहब के साथ था।

मूर्ति और मैं सिर्फ बैठे और सुन रहे थे। वे कम्प्यूटर के बेहतरीन ऑपरेटिंग सिस्टम पर बात कर रहे थे। महान तमिल संत तिरुवल्लवर और उनकी शिक्षा के बारे में, भारत के बच्चों के भविष्य के बारे में, अमेरिका की शिक्षा प्रणाली के बारे में बता रहे थे। जब हम वहाँ से निकले तो मेरे बेटे ने कहा- 'अम्मा, मुझे बिलकुल नहीं लगा कि मैं भारत के राष्ट्रपति से बात कर रहा था। वे बिलकुल ऐसी बात कर रहे थे जैसे मेरे दादा हों।

एक बार कलाम बिहार की किसी यात्रा पर ट्रेन से गए थे। उन्होंने मुझे साथ चलने के लिए आमंत्रित किया। उनके साथ पाँच और मित्र थे। वहाँ मैंने कलाम का एक अलग ही चेहरा देखा। वे हम लोगों से कई गुना ज्यादा काम करते थे। उनकी दिनचर्या सुबह साढ़े 6 बजे से शुरू होती और रात 11 बजे तक चलती।

71 वर्ष की उम्र में भी वे हमारी टीम में सबसे ज्यादा उत्साही थे और हम सबसे कई गुना ज्यादा युवा। हमने अक्सर देखा कि विद्यार्थियों के समूहों को वे लंबे समय तक संबोधित कर सकते थे।

प्रश्नोत्तर के सत्र में भी उतने ही शांत और संतुलित नजर आते थे। उसके बाद वे बच्चों से कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियाँ दोहराने को कहते। वे बार-बार मुझे याद दिलाते थे किसी स्कूल के प्यारे टीचर की, सहृदय दादाजी की या फिर किसी शानदार दोस्त की। बंगलोर के आईटी डॉट कॉम मीटिंग के दौरान मैंने उन्हें हजारों विद्यार्थियों की इंटरनेट की क्लास लेते देखा। वे अपनी क्लास पर पूरा ध्यान देते और प्रभावी रूप से तैयार होकर आते थे।

जब हमने भुवनेश्वर (उड़ीसा) में गरीब बच्चों के लिए अस्पताल बनवाया तब मुझे बिलकुल नहीं लगा कि वे आ सकते हैं। मुझे उनका वह वादा याद आया, जो उन्होंने चेन्नई मुलाकात के दौरान किया था। उन्होंने कहा था कि उन्हें अगर मैं आमंत्रित करूँ तो वे उड़ीसा जरूर आएँगे, पर अब तो वे भारत के राष्ट्रपति थे और ऐसे हमारी तरह कई लोग होंगे, जिन्होंने उन्हें इस तरह के कार्यक्रमों में आमंत्रित किया होगा।

अब वे अन्ना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तो नहीं थे कि मैं उनसे टेलीफोन या ई-मेल के जरिए संपर्क कर सकती। फिर भी उन्हें अपना वादा याद दिलाने के लिए मैंने एक मेल किया और सोचा वह उन तक नहीं पहुँचा होगा, लेकिन कुछ ही दिनों में मुझे उनके सचिव से यह जवाब मिला कि डॉ. कलाम अस्पताल के उदघाटन के लिए तैयार हो गए हैं।

संयोग से उस दिन (15 मई 2003) बुद्ध पूर्णिमा थी। मैंने बुद्ध की कई कहानियाँ सुन रखी थीं, जो कई हजार वर्ष पूर्व जन्मे थे। मैं सौभाग्यशाली थी कि वह महान व्यक्ति, महान शिक्षक और बच्चों के चहेते डॉ. कलाम उस पवित्र दिन उदघाटन के लिए आए और उन्होंने हमारे प्रयास की सराहना की।