चेतन भगत के ख्याल पर हिन्दी प्रेमियों के विचार
लेखक चेतन भगत का मानना है कि हिन्दी को आगे बढ़ाना है तो देवनागरी के स्थान पर रोमन को अपना लिया जाना चाहिए। हमने हिन्दी प्रेमियों से बात की और जानना चाहा कि वे क्या मानते हैं क्या यह भाषा की हत्या की साजिश है?
>
हिन्दी भाषा में अंगरेजी शब्दों का समावेश तो मान्य हो चुका है मगर लिपि को ही नकार देना क्या भाषा को समूल नष्ट करने की चेष्टा नहीं है? क्या आपको भी लगता है कि हिन्दी अब रोमन में लिखना आंरभ कर देना चाहिए। >

चेन्नई से पांडिचेरी के दौरान मैंने जो भी बोर्ड देखे वे तमिल और अंग्रेजी में तो थे, लेकिन वहां हिन्दी कहीं नहीं दिखाई दे रही थी। यह दुखद है। आज जिस भाषा को 55 करोड़ लोग बोलते हैं साथ दुनिया की बड़ी-बड़ी हिन्दी में बाजार ढूंढ रही है, आज दुनिया हिन्दी पढ़ना चाहती है, ऐसे में चेतन भगत द्वारा रोमन अपनाने की बात कहना बिलकुल भी उचित नहीं है।
आमतौर पर हिन्दी की कमजोरियों की बात की जाती है, लेकिन कमियां किस भाषा में नहीं हैं? कुछ कमजोरियों का यह मतलब तो नहीं कि हम पूरी भाषा या लिपि को ही नकार दें। महाश्वेता देवी ने भी कहा था कि वे हिन्दी की कृतज्ञ हैं क्योंकि उन्हें हिन्दी से ही ज्यादा लोकप्रियता मिली थी। हेमा मालिनी, रेखा जैसी दक्षिण की अभिनेत्रियों को भी हिन्दी फिल्मों में आने के बाद ही देशव्यापी पहचान मिली थी।
प्रकाश हिन्दुस्तानी, बालेन्दु दाधीच के विचार के लिए क्लिक करें
सुधा अरोड़ा, किसलय पंचोली, स्वरांगी साने के विचार के लिए क्लिक करें
सुधा अरोड़ा, किसलय पंचोली, स्वरांगी साने के विचार के लिए क्लिक करें


लेकिन विडम्बना यह है कि हमें अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराएं और अब अपनी भाषा से भी विमुख करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। इतनी समृद्ध भाषा को कठिन कह कर उसे हाशिए पर डालने का षडयंत्र।
इसी के चलते मेरे कॉलेज के विद्यार्थी हिन्दी बारहखड़ी का क ख तक नहीं जानते। आज टेक्नोलॉजी इतनी उन्नत हो गई है कि देवनागरी को आराम से लिखा जा सकता है। बशर्ते आपकी नीयत हो।

आप स्वयं और आपके बच्चे और आपके आसपास के युवा एक लम्बे अर्से से... कम से कम 15 वर्षों से अपने मोबाइल और लैपटॉप पर केवल रोमन लिपि में हिन्दी लिख रहे हैं। जब कम्प्यूटर में हिन्दी फ़ाण्ट की अराजकता फैली हुई थी तो हम सब को रोमन लिपि ही एक विकल्प के रूप में दिखाई दे रही थी और हम सबने उसे स्वीकार भी कर लिया था। बोलचाल की हिन्दी जैसे साहित्यिक हिन्दी से अलग है, ठीक वैसे ही हमारी युवा पीढ़ी के मन में हिन्दी को एक बोली के रूप में बचाए रखने के लिये यदि इस विकल्प के बारे में सोचा जाए तो क्या हर्ज है। अभी बात केवल सोचने तक सीमित है।
वर्ना आप सब और हम सब प्रण लें कि आज के बाद कभी भी अपने एस.एम.एस. आदि रोमन लिपि में नहीं भेजेंगे।
जनक पलटा / समाज सेविका : किसी भाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए उसकी लिपि का इस्तेमाल उस भाषा और व्याकरण के अनुसार उचित होना चाहिए परंतु अगर किसी को उस भाषा को लिखना नहीं आता और अगर कोई व्यक्ति रोमन लिपि में उस भाषा को आसानी से लिख पाता है तो इसे अपराध की तरह से नहीं देखा जाना चाहिए।
यूं किसी लिपि को खत्म कर देने के पक्ष में मैं भी नहीं हूं पर प्रयोग के स्तर पर अगर कोई रोमन में ही सहज महसूस करें तो हर्ज ही क्या है?

यूं किसी लिपि को खत्म कर देने के पक्ष में मैं भी नहीं हूं पर प्रयोग के स्तर पर अगर कोई रोमन में ही सहज महसूस करें तो हर्ज ही क्या है?