Miyazaki Mango : आप सुनकर हैरत में पड़ जायेंगे कि आम की एक ऐसी वैरायटी है, जिसकी प्रतिकिलो कीमत एक अच्छे आईफोन के बराबर है। यह आम ग्लोबल मार्केट में 2.5 से 3 लाख रुपए प्रतिकिलो तक बिक रहा है। उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले के शाहजहांपुर का किठौर क्षेत्र आम के बागों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर तरह-तरह के आमों की वैरायटी देखने के लिए मिलेगी, इसी में एक विशेष वैरायटी है 'मियाजाकी'।
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यह आम जापान के मियाजाकी यूनिवर्सिटी में विकसित हुआ है जिसके चलते इसका नाम मियाजाकी रखा गया है। जबकि जापान में इस आम को 'टाइयो नो टमैटो' के नाम से पुकारा जाता है, जिसका मतलब 'सूर्य का अंडा' होता है।
गौरतलब है कि मियाजाकी शहर जापान के दक्षिण भाग में है और यह अपनी गर्मी और धूप वाली जलवायु के लिए पहचाना जाता है। मियाजाकी आम के लिए यहां का मौसम अनुकूल है, इसलिए प्रचुरमात्रा में इसकी यही पैदावार होती है।
'सूर्य का अंडा' (Miyazaki Mango) के पैदावार के लिए तीव्र धूप और बारिश की जरूरत होती है, जिसमे मियाजाकी आम का रंग बैंगनी होकर पक जाता है। इसका स्वाद और सुगंध लाजवाब होने के कारण विश्व में विशेष पहचान बना ली है और सबसे मंहगा बिकने वाला फल है।
मियाजाकी आम के पेड़ 3 फीट के होते ही फल आने लगते हैं और इसकी लंबाई 5 फुट से ज्यादा नही होती है, यह साल में तीन बार फल देता है, जापान से क्लोन मंगा कर अब भारत में भी इसकी खेती होने लगी है।
भारत में बिहार, राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान भी मियाजाकी आम को पैदा कर रहा है, बौने पेड़ पर बैंगनी रंग का आम देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
मेरठ के शाहजहांपुर में और सहारनपुर जिले में भी इस आम की पैदावार हो रही है। आम के काश्तकार आमिर उल्लाह खां बताते हैं कि इस पौधे को जापान से मंगाया गया है, चार महीने में इसका फल मिल जाता है, मियाजाकी को ग्रीन हाउस में पालना-पोसना पड़ता है।
मियाजाकी आम की कीमत ग्लोबल मार्केट में 2.5 लाख से 3 लाख रूपये प्रति किलो है। फल मंहगा होने के कारण इसकी विशेष सुरक्षा और देखभाल करनी पड़ती है, जिसके चलते आम बागान मालिकों ने पेड़ पर सीसीटीवी कैमरे फीट कर रखें है, ताकि लाखों रूपये प्रतिकिलो में बिकने वाला आम चोरी नही हो जायें।
मियाजाकी आम की चयन गुणवत्ता के अनुरूप उसका मूल्य तय किया जाता है। इसकी शुरूआती कीमत लगभग 80 हजार रुपये से शुरू होती है। रंग-रूप और नस्ल की कसौटी पर खरा उतरने और बहुत कम उत्पादन होने के चलते बहुत कम हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच पाता है। इसलिए यह मुंह मांगे दाम 3 लाख रूपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है।