मुनव्वर राना
प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना से अज़ीज़ अंसारी की बातचीत
शायरी के शौकीन इंदौर के अवाम को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात भर जागकर उन्हें सुनते हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं। इंदौर में मुशायरे और कवि सम्मेलन होते ही रहते हैं। देश के कोने-कोने से शायर और कवि यहाँ आते हैं। इंदौरवासियों को इनमें जो सबसे ज़्यादा पसंद है, वह है मुनव्वर राना-* राना साहब आपने इंदौरवासियों पर ऐसा कौन-सा जादू कर दिया है कि वह रात भर जाग कर आपके शेर सुनना चाहते हैं?-
जादू वाली तो कोई बात नहीं है। हाँ, मेरी गज़लों की बातें शायद उनसे और उनकी जिंदगी से जुड़ी होती हैं और फिर मेरी शायरी की ज़ुबान भी एकदम सरल और आसान होती है, जिससे मैं उनके दिलों को गुदगुदाने में कामयाब हो जाता हूँ।* पुरानी शायरी और मौजूदा शायरी में आप क्या फर्क देखते हैं ?-
देखिए, पुरानी शायरी में ज़्यादातर प्यार-मोहब्बत, शराब, शबाब की बातें हुआ करती थीं- औरत के बदन के एक-एक हिस्से का बयान (नाखून, अंगुली, हथेली, हाथ, कमर, पाँव, बाजू, सीना, आँख, नाक, कान, गरदन, भवें, पेशानी, बाल इत्यादि) किया जाता था। परंतु आज की शायरी इस बकवास से दूर निकल आई है। अब उसने कच्चे गोश्त की इस दुकान को सदा के लिए बंद कर दिया है। शायरी के शौकीन इंदौर के अवाम को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात भर जागकर उन्हें सुनते हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं।
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आज की शायरी में इंसानियत के मुखतलिफ़ जावियों को के विभिन्न कोणों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ बज्म़ किया जाता है। प्यार-प्रसंगों के साथ ही सआशी पहलू को भी सामने रखा जाता है। उसे अनदेखा नहीं किया जाता है। इसलिए आज की शायरी लोगों को उनकी अपनी शायरी दिखाई देती है। वह उन्हें जु़बानी याद हो जाती है। लोग उससे खुद भी आनंदित होते हैं और दूसरों को सुनाकर उन्हें भी खुश कर देते हैं। शायरी में यह टर्निंग प्वाइंट आया शायद शाद आरफी और यगाना चंगेजी जैसे शायरों से।* शायरी में ज़ुबान का इस्तेमाल और लफ़्जों के चुनाव के बारे में कुछ बताइए ?-
देखिए, शायरी के अल्फ़ाज़ हैं आराइश के समान जैसे बिंदिया, लिपिस्टिक, कंघा, परफ्यूम, पावडर वगैरा जो किसी नौजवान खूबसूरत दोशीजा के ड्रेसिंग टेबल पर सजे रहते हैं। शायरी के मज़ामान होते है, उस दोशीजा का लिबास और जे़वर, जिन्हें वह अपनी पसंद, अपने मूड और मौसम के मिज़ाज़ को देखते हुए इनतिखान करती है- शायरी की ज़ुबान और लफ़्जों के इस खूबसूरत इस्तेमाल को बताया और समझाया है, मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी ने।आज की शायरी में मानवता के विभिन्न कोणों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ चित्रित किया जाता है। प्रेम-प्रसंगों के साथ ही आर्थिक पहलू को भी सामने रखा जाता है। उसे अनदेखा नहीं किया जाता है। इसलिए आज शायरी लोगों को उनकी अपनी शायरी दिखाई देती है। वह उन्हें जुबानी याद हो जाती है। लोग उससे स्वयं भी आनंदित होते हैं और दूसरों को सुनाकर उन्हें भी खुश कर देते हैं। शायरी में यह टर्निंग प्वाइंट आया शायद शाद आरफी और यगाना चंगेजी जैसे शायरों से।* शायरी में भाषा का उपयोग शब्दों के चुनाव के बारे में कुछ बताइए ?-
देखिए, शायरी के शब्द हैं बनाव-श्रृंगार की वस्तुओं के समान जैसे बिंदिया, लिप्स्टिक, कंघा, परफ्यूम, पावडर, इत्यादि, जो किसी नौजवान सुंदर स्त्री के ड्रेसिंग टेबल पर सजे रहते हैं। शायरी की विषयवस्तु होती है, उस स्त्री के वस्त्र, जिन्हें वह अपनी रुचि, अपने मूड और मौसम के स्वभाव को देखते हुए चुनती है- शायरी की भाषा और शब्दों के इस सुंदर उपयोग को बताया और समझाया है, प्रसिद्ध शायर नज़ीर अकबराबादी ने।
मशहूर शायर मुनव्वर राना से अज़ीज़ अंसारी की बातचीत शायरी के शौकीन इंदौर के अवाम को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात रात भर जागकर उन्हें सुनते हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं। इंदौर में मुशायरे और कवि सम्मेलन होते ही रहते हैं। मुल्क के कोने-कोने से शायर और कवि यहाँ आते हैं। इंदौरवासियों को इनमें जो सबसे अधिक पसंद है, वह है मुनव्वर राना--
राना साहब आपने इंदौरवासियों पर ऐसा कौन-सा जादू कर दिया है के वह रात रात भर जाग कर आपके शे'र सुनना और उनसे लुत्फ़ अन्दोज़ होना चाहते हैं -
जादू वाली तो कोई बात नहीं है। हाँ, मेरी गज़लों की बातें शायद उनसे और उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी होती हैं और फिर मेरी शायरी की ज़ुबान भी एकदम सरल और आसान होती है, जिससे मैं उनके दिलों को गुदगुदाने में कामयाब हो जाता हूँ। -
पुरानी शायरी और मोजूदा दौर की शायरी में आप क्या फ़र्क़ देखते हैं ?-
देखिए, पुरानी शायरी में ज़्यादातर प्यार-मोहब्बत, शराब, शबाब की बातें हुआ करती थीं - औरत के जिस्म के एक-एक हिस्से का बखान (नाखून, अंगुली, हथेली, हाथ, कमर, पाँव, बाजू, सीना, आँख, नाक, कान, गरदन, भवें, पेशानी, बाल वग़ैरा ) किया जाता था मगर आज की शायरी इस बकवास से दूर निकल आई है। अब उसने कच्चे गोश्त की इस दुकान को सदा के लिए बंद कर दिया है। शायरी के शौकीन इंदौर के लोगों को मुनव्वर राना की शायरी इतनी पसंद है कि वह मीलों दूर जाकर रात रात भर जागकर उन्हें सुनते हैं। मुनव्वर राना भी अपने इन चाहने वालों से प्यार करते हैं, उन्हें अपने ताज़ा और नए शेर सुनाते हैं और उनकी फरमाइशों को भी पूरा करते हैं। आज की शायरी में इनसानियत के मुख्नतलिफ़ ज़ावियों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ नज़्म किया जाता है। प्यार- मोह्ब्बत की बातों के साथ ही मआशी पहलू को भी सामने रखा जाता है। उसे अनदेखा नहीं किया जाता है। इसलिए आज शायरी लोगों को उनकी अपनी शायरी दिखाई देती है। वह उन्हें ज़ुबानी याद हो जाती है। लोग उससे ख्नुद भी लुत्फ़अन्दोज़ होते हैं और दूसरों को सुनाकर उन्हें भी खुश कर देते हैं। शायरी में यह टर्निंग प्वाइंट आया शायद शाद आरफ़ी और यगाना चंगेज़ी जैसे शायरों से।-
शायरी में ज़ुबान का इस्तेमाल और लफ़्ज़ों के चुनाव के बारे में कुछ बताइए?-
देखिए, शायरी के लफ़्ज़ हैं बनाव-श्रृंगार के समान जैसे बिंदिया, लिप्स्टिक, कंघा, परफ्यूम, पावडर, इत्यादि, जो किसी नौजवान ख्नूबसूरत दोशीज़ा के ड्रेसिंग टेबल पर सजे रहते हैं। शायरी का ख्न्याल होता है, उस दोशीज़ा का लिबास जिसे वह अपनी मरज़ी , अपने मूड और मौसम के मिज़ाज को देखते हुए चुनती है- शायरी के ख्न्याल और लफ़्ज़ों के इस ख्नूबसूरत इसतेमाल को बताया और समझाया है, मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी ने। उन्होंने अपनी शायरी की ज़ुबान को इतना आसान और सरल बनाया के लोग उन्हें हिन्दवी शायर कहने लगे। धीरे-धीरे उनकी मक़बूलियत इतनी बढ़ी कि दूसरे शायरों ने भी उनकी तर्ज़ को अपनाना शुरू कर दिया। मुशकिल ज़ुबान और बड़े-बड़े वज़नी लफ़्ज़ों ने हमेशा ही ज़ुबान ओ अदब को नुक़सान पहुंचाया है। आज यह समझा जाने लगा है कि अच्छा शेर वही है, जिसकी ज़ुबान इतनी आसान हो के उसका तरजुमा ही न किया जा सके। शायरी में ज़ुबान की यह सादगी भारत से ही होती हुई पाकिस्तान तक पहुँच गई है। दो शेर देखिए, एक हिदुस्तानी शायर का है और दूसरा पाकिस्तानी शायर का-कृष्ण होते तो ज़रूर इनको ज़ुबाँ दे देते मेरे आँसू है सुदामा के सवालों की तरह। -
वसी सीतापुरीं क्यूँ हवा आके उड़ा देती है आँचल मेरायूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी। -
परवीन शाकिर (पाकिस्तान) -
आप मुशायरों के कामयाबतरीन शायर हैं। मुशायरे के स्टेज पर तो कई शायर होते हैं, उन दूसरे शायरों के चुनाव और उनके मेयार के बारे में कुछ बताएँ।-
देखिए, अब मुशायरे सिर्फ़ शौक के लिए नहीं पढ़े जाते। अब इसमें ग्लैमर, दौलत, शोहरत वग़ैरा बातें भी शामिल हो गई हैं। दौलत कमाने के लिए और जल्दी से शोहरत हासिल करने के लिए कई ग़ैर शायर इसमें शामिल हो गए हैं। किसी ने अपनी सुरीली और मीठी आवाज़ का सहारा लिया है। किसी ने उस्तादों और बुज़ुर्ग शायरों को पैसे देकर ग़ज़ल लिखवाकर मुशायरों में शामिल होने का रास्ता खोज निकाला है। यह बीमारी इतनी बढ़ गई है के पांच फ़ीसद भी अच्छे और सच्चे शायर मुशायरों में शामिल नहीं होते। पचास फ़ीसद ऐसे शायर होते हैं, जो शायरी समझते ही नहीं। अब सिर्फ़ टेबलेट से इस बीमारी को दूर नहीं किया जा सकता। अब तो ऑपरेशन ही इस बीमारी को दूर कर सकता है। यह ऑपरेशन कर सकते हैं मुशायरों को मुनअक़िद करने वाले, बुज़ुर्ग और उस्ताद शायर वह अपनी गजलों को बेचना बंद कर दें। मुशायरा, जो हमारी तज़ीब का एक मज़बूत सुतून है, उसे मुशायरा माफियाओं से बचाएँ।-
अब हम बात करना चाहेंगे आपकी शायरी की। ऐसा कहा जाता है कि आप 'माँ' के शायर हैं। आपकी ग़ज़लों में कहीं न कहीं माँ ज़रूर होती है।-
यह सच है कि मेरी ग़ज़लों में माँ अक्सर मिल जाती है या यह कहिए कि शायरी में मेरी महबूबा मेरी माँ है। देखिए, ग़ज़ल का मतलब होता है, महबूब से बातें करना। शायर तो ऐसी औरतों को भी अपना महबूब बना लेते हैं, जिनका कोई मेयार नहीं होता। कोठे पर बैठने वाली, मुजरा करने वाली जब महबूबा बन सकती है तो 'माँ' क्यूँ नहीं? 'माँ' तो खुदा की पार्टनर होती है। खुदा को भी इंसान की पेदाइश के लिए माँ का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए 'माँ' की दुआओं में असर होता है। जब माँ इतनी पाक और अज़ीम है तो उसे महबूबा बनाने में क्या बुराई है। मैं तो शान से कहता हूँ के हाँ, मेरी महबूबा मेरी 'माँ' है।सिरफिरे लोग हमें दुश्मने जाँ कहते हैं हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैंमुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती हैकि ये भी माँ की तरह खुशग्वार लगती हैमैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसूमुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपनालबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होतीबस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होतीकिसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आईमैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आईइस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देतीये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकतामैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती हैखाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव सेबासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रहीबरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगरमाँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में हैलिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती हैमैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती हैइसी तरह के अनेक शेर माँ के लिए मैंने लिखे हैं। परंतु इसका यह मतलब नहीं कि मैंने दूसरे रिश्तों पर कुछ नहीं लिखा। मेरी शायरी में आपको बेटी, बहन, भौजाई और बचपन भी मिलेगा।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देतीये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकतामैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती हैखाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव सेबासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रहीबरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगरमाँ सबसे कह रही है के बेटा मज़े में है लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है इसी तरह के अनेक शेर माँ के लिए मैंने लिखे हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि मैंने दूसरे रिश्तों पर कुछ नहीं लिखा। मेरी शायरी में आपको बेटी, बहन, भौजाई और बचपन भी मिलेगा।उछलते-खेलते बचपन में बेटा ढूँढ़ती होगी तभी तो देख के पोते को दादी मुस्कुराती हैओढ़े हुए बदन पे गरीबी चले गएबहनों को रोता छोड़ के भाई चले गएइन्हें फ़िकरापरस्ती मत सिखा देना के ये बच्चेज़मीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैंकसम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता हैकम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की खातिरऐसी मिट्टी में मिलाना के खिलौना हो जाऊँ मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैंमैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँग़ज़ल वो सिनफ़े नाजुक है जिसे अपनी रफ़ाक़त सेवो मेहबूबा बना लेता है बैं बेटी बनाता हूँ हम सायादार पेड़ जमाने के काम आएजब सूखने लगे तो जलाने के काम आएकोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता हैअपने गाँव में सब कुछ भैय्या अच्छा लगता हैनए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता हैपरिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता हैये चिड़िया मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती हैकहीं भी शाखे गुलदेखे ये झूला डाल देती हैतो फिर जाकर कहीं बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल के घर आ के बेटी मुस्कुराती हैखुदा मेहफूज़ रक्खे मुल्क को गंदी सियासत सेशराबी देवरों के बीच में भोजाई रहती हैहमारे और उसके बीच/इक धागे का रिश्ता हैहमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती है ये देखकर पतंगे भी हैरान हो गईअब छतें भी हिन्दू मुसलमान हो गईं।* अदब के ज़रिये यक जेहती और भाईचारे का पैगाम क्या सरहदों से बाहर जाकर भी दिया जा सकता है? -
जरूर दिया जा सकता है और दिया जा रहा है। आप देख नहीं रहे हैं कि पड़ोसी मुल्कों के फ़नकार भारत आते हैं और कितनी इज़्जत पाते हैं। इसी तरह जब हम सरहद पार जाते हैं तो हमें भी सर-आँखों पर बिठाया जाता है।
मगर एक कड़वा सच यह है कि एक शायर के लिए भी सरहद पार जाना आसान नहीं है। वीज़ा बड़ी मुश्किल से मिलता है, जबकि शायर को अदबा प्रोग्रामों में हिस्सा लेने के लिए वीज़ा इतनी देर में मिल जाना चाहिए, जितनी देर में गर्म चाय ठंडी होती है।फ़नकारों में एकता और भाईचारा हमेशा से रहा है और आज भी है। हम लोग विदेशों में जाकर इसी ज़जबे को फैलाते हैं। नफ़रत की दीवारें तो राजनेताओं द्वारा खड़ी की जाती हैं। फ़नकार बरनी ममालिक से सिर्फ फ़नकार नहीं होता। वह अपने मुल्क का नुमाइंदा होता है, जो बाहर जाकर एम्बेसेडर (राजदूत) का काम करता है। सियासत नफरतों का जख्म भरने ही नहीं देती जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है।जख्म को न भरने देने वाली यह मक्खी है सियासतलेकिन हमने भी नफरत को मोहब्बत से मिटाने का हुनर सीख लिया है।जो मुझको साँप कहता है उससे में इक रोज़जाकर लिपट गया, उसे चंदन बना दियापरिंदों ने कभी रोका नहीं रस्ता परिंदों का खुदा दुनिया को चिड़ियाघर बना देता तो अच्छा थाहज़ारों सरहदों की बेड़ियाँ लिपटी हैं पैरों से हमारे गाँव को भी पर बना देता तो अच्छा था-
भारत और पाकिस्तान में कुछ अच्छी शायरी करने वाले युवा शायरों के नाम बताने की तकलीफ़ करें-
पाकिस्तान में - इफ़्तिख़ार आरिफ़, अहमद फ़राज़ (नौजवान नहीं हैं), नसीर तुराबी, शहजाद अहमद, असलम कोलसरी, अजीम बे़हजाद अच्छा लिख रहे हैं। इसी तरह भारत में नौशाद- मोमिन, तारिक़ क़मर, मोइन शादाब, शाहिद अंजुम, खुरशीद अकबर अच्छा लिख रहे हैं। औरतों में पाकिस्तान की रेहान रूही, क़मर, फ़हमीदा, रियाज और किश्वर नाहीद अच्छा लिख रही हैं। अदब में शायर के मेयार का अंदाजा उसकी शायरी से लगाया जाना चाहिए। दीगर मुआलिक में मुशायरा पढ़ने से नहीं। ऐसा सोचा गया तो मीर, ग़ालिब तो कभी बाहर गए नहीं। दौरे हाजि़र में मुशायरे उर्दू अदब को नुकसान पहुँचा रहे हैं। मुशायरों में पुरानी तहजी़ब और िरवायतों को का़यम किया जाना चाहिए।-
भारत में उर्दू के भविष्य के बारे में आप क्या सोचते हैं ?-
भारत में उर्दू को बचाना है तो सबसे पहले उर्दू अकादमियों को ख़त्म कर देना चाहिए। इनसे सरकारी रुपया बर्बाद हो रहा है। दावतें उड़ाई जा रही हैं। हवाई जहाजों से सफ़र किए जा रहे हैं और उनमें बैठकर अँग्रेजी़ के अखबार पढ़े जा रहे हैं। मैंने अकादमी के किसी अफ़सर के पास कभी उर्दू का अख़बार नहीं देखा।हर एक जिले में उर्दू इंसपेक्टर होना चाहिए, जो सीधा कलेक्टर के हुक्म से काम करे।-
इंदौर और यहाँ के बाशिंदों के बारे में आपका क्या ख़्याल है।-
इंदौर बहुत अच्छा शहर है। इसे देश की साहित्यिक राजधानी कहा जाना चाहिए। मुखतालिक ज़ुबानों का संगम यहाँ है और सबको इज्जत मिलती है। उर्दू-हिन्दी में तो यहाँ कोई फर्क ही दिखाई नहीं देता। मेरा प्यार, मेरा दिल, मेरा तआवुन, मेरी दुआएँ हमेशा इंदौरवासियों के साथ हैं।
उछलते-खेलते बचपन में बेटा ढूँढ़ती होगीतभी तो देख के पोते को दादी मुस्कुराती हैओढ़े हुए बदन पे गरीबी चले गएबहनों को रोता छोड़ के भाई चले गएइन्हें फ़िकरापरस्ती मत सिखा देना के ये बच्चेज़मीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैंकसम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता हैधुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता हैकम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की खातिरऐसी मिट्टी में मिलाना के खिलौना हो जाऊँमुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैंमैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँग़ज़ल वो सिनफ़े नाजुक है जिसे अपनी रफ़ाक़त सेवो मेहबूबा बना लेता है बैं बेटी बनाता हूँहम सायादार पेड़ जमाने के काम आएजब सूखने लगे तो जलाने के काम आएकोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता हैअपने गाँव में सब कुछ भैय्या अच्छा लगता हैनए कमरों में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता हैपरिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता हैये चिड़िया मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती हैकहीं भी शाखे गुलदेखे ये झूला डाल देती हैतो फिर जाकर कहीं बाप को कुछ चैन पड़ता हैकि जब ससुराल के घर आ के बेटी मुस्कुराती हैखुदा मेहफूज़ रक्खे मुल्क को गंदी सियासत सेशराबी देवरों के बीच भोजाई रहती हैहमारे और उसके बीच/इक धागे का रिश्ता हैहमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती हैये देखकर पतंगें भी हैरान हो गईअब तो छतें भी हिन्दू मुसलमान हो गईं।अदब के ज़र्रिये यकजेहती और भाईचारे का पैग़ाम क्या सरहदों से बाहर जाकर भी दिया जा सकता है।ज़रूर दिया जा सकता है और दिया जा रहा है। आप देख नहीं रहे हैं के पड़ोसी मुल्कों के फ़नकार भारत आते हैं और कितनी इज़्ज़त पाते हैं। इसी तरह जब हम सरहद पार जाते हैं तो हमें भी सर-आँखों पर बिठाया जाता है।मगर एक कड़वा सच यह है के एक फ़नकार के लिए भी सरहद पार जाना आसान नहीं है। वीज़ा बड़ी मुश्किल से मिलता है, जब के फ़नकार को अदबी मेहफ़िलोंस् में हिस्सा लेने के लिए वीज़ा इतनी देर में मिल जाना चाहिए, जितनी देर में गर्म चाय ठंडी होती है।फ़नकारों में एकता और भाईचारा हमेशा से रहा है और आज भी है। हम लोग ग़ैरमुमालिक में जाकर इसी प्यार, मोहब्बत को फैलाते हैं। नफ़रत की दीवारें तो लीडरों के ज़रीये खड़ी की जाती हैं। फ़नकार दूसरे मुलकों में सिर्फ़ फ़नकार नहीं होता। वह अपने मुल्क का नुमाइंदा होता है, जो के एक एम्बेसेडर (राजदूत) की तरह होता है।सियासत नफ़रतों का ज़ख्न्म भरने ही नहीं देतीजहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है।ज़ख्न्म को न भरने देने वाली यह मक्खी है सियासतलेकिन हमने भी नफ़रत को मोहब्बत से मिटाने का हुनर सीख लिया है।जो मुझको साँप कहता है उससे में इक रोज़जाकर लिपट गया, उसे चंदन बना दियापरिंदों ने कभी रोका नहीं रस्ता परिंदों काख्नुदा दुनिया को चिड़ियाघर बना देता तो अच्छा थाहज़ारों सरहदों की बेड़ियाँ लिपटी हैं पैरों सेहमारे पांव को भी पर बना देता तो अच्छा था भारत और पाकिस्तान में कुछ अच्छी शायरी करने वाले नौजवान शायरों के नाम बतायें- -
पाकिस्तान में - इफ़्तिख़ार आरिफ़, अहमद फ़राज़ (जवान नहीं हैं) नसीर तुराबी, शहजाद अहमद, असलम कोलसरी, अजीम बे़हजाद अच्छा लिख रहे हैं। इसी तरह भारत में नौशाद, मोमिन, तारिक़ क़मर, मोइन शादाब, शाहिद अंजुम, खुरशीद अकबर अच्छा लिख रहे हैं। औरतों में पाकिस्तान की रेहानरूही क़मर, फ़हमीदा रियाज़ और किश्वर नाहीद अच्छा लिख रही हैं। अदब में शायर के मेयार का अन्दाज़ा उसकी शायरी से लगाया जाना चाहिए। देश-विदेश में मुशायरा पढ़ने से नहीं। ऐसा सोचा गया तो मीर गालिब तो कभी हिन्दुस्तान से बाहर गए नहीं। दौरे हाज़िर में मुशायरे उर्दू अदब को नुक़सान पहुँचा रहे हैं। मुशायरों में पुरानी तेहज़ीब और रिवायतों को क़ायम किया जाना चाहिए।हिन्दुस्तान में उर्दू के मुसतक़बिल के बारे में आप क्या सोचते हैं ?हिन्दुस्तान में उर्दू को बचाना है तो सबसे पहले उर्दू अकादमियों को ख्नत्म कर देना चाहिए। इनसे सरकारी रक़म बरबाद हो रही है। दावतें उड़ाई जा रही हैं। हवाई जहाजों से साफ़र किये जा रहे हैं और उनमें बैठकर अँग्रेज़ी के अख्नबार पढ़े जा रहे हैं। मैंने अकादमी के किसी अफ़सर के पास कभी उर्दू का अख़बार नहीं देखा। हर ऎक ज़िले में उर्दू इंसपेक्टर का तक़र्रुर होना चाहिए, जो सीधा कलेक्टर की रेहनुमाई में काम करे।-
इंदौर और इंदौर के बाशिन्दों के बारे में आपका क्या ख़्याल है।-
इंदौर बहुत अच्छा शहर है। इसे मुल्क की अदबी और सक़ाफ़यी राजधानी कहा जाना चाहिए। मुख्नतलिफ़ ज़ुबानों का संगम यहाँ है और सबको इज़्ज़त मिलती है। उर्दू-हिन्दी में तो यहाँ फ़र्क़ ही दिखाई नहीं देता। मेरा प्यार, मेरा दिल, मेरा तआवुन , मेरी दुआएँ हमेशा इन्दौर के बाशिन्दों के साथ हैं।