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बड़ी खामोशी से ‘राहत’ छिन गए हम सबसे
बुधवार,अगस्त 12, 2020
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मिर्ज़ा ग़ालिब उन बिरले कवियों में से हैं जिनको चाहे अभीष्ट प्रशंसा उनके जीवन में न मिली हो किंतु उनकी योग्यता और विद्वत्ता की धाक सभी पर जमी हुई थी।
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गालिब को उनके हासिद अक्सर फहश ख़त लिखा करते थे- किसी ने एक ख़त मे गालिब को मां की गाली लिखी। पढ़कर गालिब मुस्कुराए और कहने लगे- उल्लू को गाली देना भी नहीं आती
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इंदौरी की शायरी एक खूबसूरत कानन है, जहां मिठास की नदी लहराकर चलती है। विचारों का, संकल्पों का पहाड़ है, जो हर अदा से टकराने का हुनर रखता है। फूलों की नाजुकता है,
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हिन्दी से जो लोग उर्दू मंचों पर आ रहे हैं, उनकी शायरी में एक अलग ही ताज़गी और अलग ही चमक है।
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'बहुत इंतिहाई आकर्षक आँखें, बिल्कुल हीरे की तरह चमकती हुईं। लंबे-लंबे बाल, जिन्हें वो निहायत ही दिलचस्प अंदाज़ से बार-बार पीछे की तरफ कर लेते और साथ ही एक बहुत दिलकश ज़हीन मुस्कुराहट के मालिक।' किसी शख़्स की तारीफ़ में कभी ये तमाम दिलफ़रेब बातें कही ...
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मुंबई। हिन्दी फिल्म बाजार के लोकप्रिय गीत 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी' के रचनाकार और मशहूर उर्दू शायर बशर नवाज का संक्षिप्त बीमारी के बाद बुधवार महाराष्ट्र के औरंगाबाद में निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे।
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
गालिब के खास शागिर्द और दोस्त अक्सर शाम के वक़्त उनके पास जाते थे और मिर्ज़ा सुरूर के आलम में बहुत पुरलुत्फ बातें किया करते थे-
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
एक रोज़ बादशाह चन्द मुसाहिबों के साथ आम के बाग ' हयात बख्श ' में टहल रहे थे-साथ में गालिब भी थे- आम के पेडों पर तरह-तरह रंगबिरंगे आम लदे हुए थे- यहां का आम बादशाह और बेगमात के सवाय किसी को मोयस्सर नहीं आ सकता था-
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
यह बात आज भी संदिग्ध बनी हुई है कि मिर्जा ग़ालिब शिया थे या सुन्नी। इस संबंध में हमारी जानकारी का आधार उनकी अपनी रचनाएं हैं जिनमें स्वयं इतना अंतर्विरोध है कि उससे हम कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते। बहुत-सी बातें ऐसी हैं कि जिनके पीछे कोई आस्था या ...
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
एक दिन हमने मिर्ज़ा ग़ालिब से पूछा कि 'तुमको किसी से मुहब्बत भी है?' कहा कि, 'हाँ हज़रत अली मुर्तज़ा से।' फिर हमसे पूछा कि 'आपको?' हमने कहा, 'वाह साहब, आप तो मुग़ल बच्चा होकर अली मुर्तुज़ा का दम भरें और हम उनकी औलाद कहलाएँ और मुहब्बत न रखें क्या यह ...
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
एक दिन सय्यद सरदार मिर्ज़ा शाम को चले आए- जब थोड़ी देर रुक कर जाने लगे तो मिर्ज़ा खुद अपने हाथ में शमादान लेकर आए ताकि वह रोशनी में अपना जूता देख कर पहन लें- उन्होने कहा क़िबला ओ काबा, आपने क्यूं तकलीफ फरमाई- मैं अपना जूता आप पहन लेता-
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शनिवार,दिसंबर 27, 2014
ऐतिहासिक शहर आगरा में जन्मे और अपना प्रारंभिक जीवन यहीं बिताने वाले मशहूर शायर मिर्जा ग़ालिब आज की तारीख में आगरा की भीड़भाड़ तथा आधुनिक चकाचौंध में गुम से हो गए हैं।
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भाषा|
मंगलवार,नवंबर 11, 2014
जाने-माने उर्दू कवि और आलोचक शमसुर रहमान फारुकी ने अपनी किताब ‘द सन दैट रोज फ्रॉम द अर्थ’ में 1857 की लड़ाई में ‘कंपनी बहादुर’ के हाथों हार के बावजूद 18वीं और 19वीं सदी में उत्तर भारतीय शहरों दिल्ली और लखनऊ में उर्दू साहित्य संस्कृति के संपन्न बने ...
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शुक्रवार,अक्टूबर 10, 2014
ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह की पुण्यतिथि पर बाँसुरी वादक रोनू मजूमदार और भजन व ग़ज़ल गायक अनूप जलोटा से हुई बातचीत पर आधारित-
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गुरुवार,अगस्त 28, 2014
'किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी, ये हुस्नों इश्क धोखा है सब मगर फिर भी'...ये शेर अपनेआप में एक बेबसी, इक इंतिज़ार और तमाम उम्मीदें जज़्ब किए हुए है। और एक उम्र तक अपने सीने में ये तमाम ख़लिश पाले रक्खी, मक़्बूल शाइर फ़िराक़ गोरखपुरी ने, यानी ...
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बात उन दिनों से क़रीब 11 बरस पहले की है, जब हिंदुस्तान को चीरकर दो हिस्सों में तक़्सीम नहीं किया गया था। तब चिनाब, झेलम, सिंधु और रावी का पानी बिना किसी बँटवारे के गुनगुनाता आज़ाद बहता था। तब न कोई हिन्दू था, न कोई मुसलमान। तब लोग सिर्फ़ हिंदुस्तानी हुआ ...
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शनिवार,जुलाई 19, 2014
फिल्म और थिएटर की मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी ने अपने वालिद और हमारे वक्त के बेहतरीन व अज़ीम शायर कैफ़ी आज़मी की याद में इंटरनेट पर एक वेबसाइट लांच की है। इस वेबसाइट पर कैफ़ी की शायरी, वीडियो और उनके लिखे फिल्मी गीतों को संजोया गया है। अलावा इसके ...
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बुधवार,अप्रैल 30, 2014
कौन होगा, जो मशहूर शायर मुनव्वर राना के नाम से वाक़िफ़ न हो। जी हां ! वही मुनव्वर राना, जिनकी शायरी में दुनियादारी की चाहरदीवारी से घिरी एक माँ, खुलकर साँस लेती है। वही मुनव्वर राना, जिनके लिए जन्नत का रास्ता कहीं आसमान के उस पार से नहीं, बल्कि माँ ...
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शुक्रवार,दिसंबर 6, 2013
कहते हैं हर शब के बाद सहर और सहर के बाद फिर शब आती है। दोनों की उम्र क़रीब-क़रीब बराबर ही तय है। मगर कभी-कभी शब की उम्र सहर के मुकाबले दराज़ होने का अहसास होता है। अज़ीम शायर मेराज फैज़ाबादी के चले जाने से शायरी की दुनिया भी इन दिनों ऐसे ही एक ...
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