Mirza Ghalib ke Latife : मिर्ज़ा ग़ालिब के 3 मजेदार लतीफ़े
मेरा जूता
एक दिन सय्यद सरदार मिर्ज़ा शाम को चले आए- जब थोड़ी देर रुक कर जाने लगे तो मिर्ज़ा खुद अपने हाथ में शमादान लेकर आए ताकि वह रोशनी में अपना जूता देख कर पहन लें- उन्होने कहा क़िबला ओ काबा, आपने क्यूं तकलीफ फरमाई- मैं अपना जूता आप पहन लेता-
गालिब ने कहा मैं आपका जूता दिखाने को शमादान नहीं लाया, बल्कि इसलिए लाया हूं कि कहीं आप मेरा जूता ना पहन जाएं।
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आम पर नाम
एक रोज़ बादशाह चन्द मुसाहिबों के साथ आम के बाग ' हयात बख्श ' में टहल रहे थे-साथ में गालिब भी थे-
आम के पेडों पर तरह-तरह रंगबिरंगे आम लदे हुए थे- यहां का आम बादशाह और बेगमात के सवाय किसी को मोयस्सर नहीं आ सकता था-
गालिब बार बार आमोँ की तरफ गौर से देखते थे- बादशाह ने पूछा 'गालिब इस क़दर गौर से क्या देखते हो'-
गालिब ने हाथ बाँध कर अर्ज़ किया 'पीरोमुरशद, देखता हूं कि किसी आम पर मेरा या मेरे घर वालों का नाम भी लिखा है या नहीं-
बादशाह मुस्कुराएं और उसी रोज़ एक टोकरा आम गालिब के घर भेज दिए।
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बूढ़े को मां की गाली
गालिब को उनके हासिद अक्सर फहश ख़त लिखा करते थे- किसी ने एक ख़त मे गालिब को मां की गाली लिखी। पढ़कर गालिब मुस्कुराए और कहने लगे- उल्लू को गाली देना भी नहीं आती। बूढ़े या अधेड उम्र के लोगों को बेटी की गाली देते हैं ताकि उसको गैरत आए।
जवान को जोरू की गाली देते हे क्योंकि उसको जोरू से ज्यादा लगाव होता है। बच्चे को मां की गाली देते है के वह मां के बराबर किसी से मानूस नहीं होता। यह पागल तो 72 साल के बूढ़े को मां की गाली देता है। इससे ज्यादा कौन बेवक़ूफ होगा।