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Last Updated : सोमवार, 6 जुलाई 2020 (10:19 IST)

Shri Krishna 5 July Episode 64 : उद्धवजी जब राधा का नाम जपते हुए पहुंचते हैं श्रीकृष्ण महल

Shri Krishna 5 July Episode 64 : उद्धवजी जब राधा का नाम जपते हुए पहुंचते हैं श्रीकृष्ण महल - Shri Krishna on DD National Episode 64
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 5 जुलाई के 64वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 64 ) में ....फिर राधा को एक लता से यह पूछते हुए बताया जाता है कि हे लता बहन मेरा कान्हा तेरे पीछे छुपा हो तो बता दें। नहीं तो ये ही बता दें कि वह कहां गया है...उद्धवजी पीछे से राधा का यह व्यवहार देखते हैं। फिर राधा एक भंवरे से यह पूछती है। उद्धवजी उनके पीछे-पीछे जाकर देखते हैं कि किस तरह राधा उनकी याद में तड़प रही है। यह देखकर उद्धव की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। राधा युमना से कहती है तू ही बता कालिंदी की मेरा कृष्‍ण कहां है? तू नहीं बताएगी तो यदि मैं चाहूं तो अपने एक अश्रू से तूझे डूबो दूं परंतु क्या करूं वो निर्मोही मुझसे अश्रू न बहाने की शपथ ले गया है। यह सुनकर उद्धव रोने लगते हैं।
 
यमुना के तट से जब राधा चली जाती हैं तो उद्धव राधा के जहां चरण पड़े थे उस जगह पर अपना मस्तक रखकर फूट फूटकर रोने लगते हैं और फिर उठकर कहते हैं आप धन्य है राधाजी, आप धन्य हैं। कान्हा को आप पर इतना अत्याचार नहीं करना चाहिए था। ये अन्याय है..ये अन्याय है। फिर से वह मस्तक रखकर फूट-फूटकर रोने लगते हैं और फिर उठकर राधा-राधा का नाम जपकर मस्ती में उनका कीर्तन और नृत्य करने लगते हैं। धन्य धन्य राधे तेरे प्रेम को प्रणाम। धन्य धन्य तेरे ब्रज को प्रमाण, तेरी भक्ति को प्रणाम..तेरे त्याग को प्रणाम।  धन्य धन्य राधे तेरे प्रेम को प्रणाम। गोपियों और राधा को ज्ञान सिखाने आए थे उद्धव, लेकिन राधा के पीछे-पीछे पागल होकर राधा की ही भक्ति करने लगते हैं। 


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गोपियों और राधा को ज्ञान सिखाने आए थे उद्धव, लेकिन राधा के पीछे-पीछे पागल होकर राधा की ही भक्ति करने लगते हैं। वे राधा नाम का जप करते हुए पुन: मथुरा लौट जाते हैं और राधा का नाम जपते हुए श्रीकृष्ण के महल में दाखिल होते हैं। गैलरी में खड़े श्रीकृष्‍ण राधा का नाम सुनकर व्याकुल होकर कीर्तन की आवाज जहां आ रही होती है वहां जाते हैं तभी वे देखते हैं कि उद्धवजी नृत्य करते हुए कक्ष में दाखिल होते हैं राधा का नाम कीर्तन करते हुए।
 
श्रीकृष्ण नृत्य करते हुए उद्धव को पकड़कर कहते हैं उद्धव भैया ये क्या। कृष्ण उन्हें देखकर अपने रोने को रोककर कहते हैं आप आ गए उद्धव भैया। आप लौट आए भैया।
 
उद्धव प्रसन्न और प्रफुल्लित होकर कहते हैं हां मैं लौटकर आ गया कन्हैया। मैं ब्रज से लौटकर चला आया कन्हैया। फिर वे चुप हो जाते हैं तो कृष्ण कहते हैं बस इतना ही कहकर चुप हो गए, आगे भी बोलो। ब्रज का कुशल समाचार सुनाओ उद्धव भैया, सब लोग कैसे हैं? मेरे गोप सखा कैसे हैं? गोपियां कैसी हैं?... फिर कृष्‍ण रुककर आंखों में आंसू भरकर कहते हैं और राधाजी कैसी हैं?
 
उद्धव तो बस श्रीकृष्ण को पागलों की तरह देखते ही रहते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं उनसे कुछ बातें हुई? क्या कहा उन्होंने? मेरे लिये कोई संदेश दिया है? वहां मुझे कोई याद भी करता है उद्धव भैया? लेकिन उद्धव कुछ नहीं कहते हैं और चुपचाप बस श्रीकृष्ण को ही देखते रहते हैं।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं तुम चुप न रहो उद्धव भैया, कुछ बोलो ना। कुछ बोलो भैया, तुम्हारी इस चुप्पी से मेरा दिल धड़कने लगा है। कुछ बोलो ना उद्धव भैया। उद्धव कुछ नहीं बोलते हैं तो श्रीकृष्ण कहते हैं वहां...वहां कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई। उद्धव भैया वहां सब कुशल तो है? तब श्रीकृष्ण उद्धव को झकझोर कर कहते हैं..बोलो भैया उद्धव भैया। वहां सब कुशल तो है?
 
तब उद्धव मुस्कुराकर कहते हैं किसकी कुशल पूछ रहे हो? तब उद्धव रोते हुए कहते हैं- आप जिन्हें छोड़कर चले आएंगे क्या वह कभी कुशल से रह पाएंगे? तुमने इतना घोर अन्याय उसके साथ क्यों किया? इतना घोर अन्याय तुम कैसे कर सकते हो? तुम इतने निर्मम और निष्ठूर हो कि यह मुझे वहां जाकर ही पता चला। अन्यथा मैं तुम्हारा ये रूप कभी पहचान ही नहीं पाता। वो तो तुम्हें प्रेम का अवतार कहते हैं। क्या ऐसा अवतार प्रेम का अवतार? जो अपनी प्रेमिकाओं को उसके आंसुओं की नदी में डूबने के लिए छोड़कर चला आया और पलटक उसकी सूधी भी न ली।
 
फिर उद्धव हंसते हुए कहते हैं..आप तो महलों के बड़े-बड़े राज कार्यों में व्यस्त हैं। फिर रोते हुए कहते हैं- तनिक उनकी भी सोचिये जिनके जीवन में आपके सिवाय और कुछ काम नहीं। चारों प्रहर बस एक ही काम है आपको याद करना। उनकी सोचिये जिनके हृदय में आपके विरह की पीड़ा एक धान की धूनी की तरह भीतर ही भीतर धीमे-धीमे सुलगती रहती है परंतु भस्म नहीं होती हैं। निरंतर जल रही है, फिर भी जी रही हैं। आप जानते हैं क्यों जी रही है? सिर्फ एक वचन के सहारे कि मैं फिर लौटकर आऊंगा।...जानते हैं कि एक गोपी में मुझसे क्या कहा? यह कि उद्धव भैया मैं उनके विरह में मर नहीं सकती क्योंकि उसने वचन दिया है आने का और जब वह आएगा और यदि हमें जीवित नहीं पाएगा तो बहुत दु:खी होगा उद्धव भैया। हम उनको दु:ख नहीं दे सकते उद्धव भैया। जिससे प्रेम किया जाता है उसे कभी दु:ख नहीं दिया जाता है उद्धव भैया। ये है..ये है प्रेम की पराकाष्ठा। 
 
फिर आगे उद्धव कहते हैं- आपने पूछा कि उन्होंने कोई संदेशा दिया है क्या? नहीं, उन्होंने कोई संदेश नहीं दिया। सिर्फ एक प्रश्न पूछा है कि कब आओगे? कब आओगे तुम?...कब आओगे तुम? तीन बार यह कहकर उद्धव चुप हो जाते हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं एक ही प्रश्न पूछा है सबने कब आओगे? उद्धव कहते हैं हां। और इसका उत्तर देने के लिए आपको स्वयं जाना पड़ेगा।
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं मुझे जाना पड़ेगा? ये आप क्या कह रहे हैं उद्धव भैया। तब उद्धव कहते हैं हां आपको ही जाना पड़ेगा। मैं सोचता हूं कि जो भक्त अपना घर बार, अपनी संतान, अपनी पति-पत्नी सबको छोड़कर केवल आपके लिए जी रही हैं..ऐसे भक्तों और ऐसे प्रेम की जीवंत मूर्तियों को छोड़कर एक दिन के लिए भी आप मथुरा में कैसे रह सकते हैं? गोकुल जाने का मन नहीं होता आपका?
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं करता है, बहुत करता है उद्धव भैया। परंतु मथुरा मेरी कर्तव्य भूमि है, इसे छोड़कर नहीं जा सकता मैं। तब यह सुनकर उद्धव कहते हैं मथुरा में अब कौनसा कर्तव्य बाकी रह गया आपका? कंस मारा गया, यदुवंशियों का संकट टल गया। अब आपको यहां क्या करना है? इसलिए मैंने निश्चय किया है कि आज ही आपको वृंदावन ले जाऊंगा। ऐसा कहते हुआ उद्धव श्रीकृष्ण का हाथ पकड़के उन्हें ले जाने लगते हैं तो श्रीकृष्‍ण हंसने लगते हैं। यह देखकर उद्धव उनका हाथ छोड़ देते हैं। 
 
श्रीकृष्ण हंसते हुए उद्धव को नीचे से उपर तक देखते हैं। उनके खुले बार, किचड़ में सना चेहरा और पागलों जैसी हालत देखकर वे कहते हैं ये कायापलट कैसे हो गई उद्धव भैया? यहां से जाने वाला उद्धव और वृंदावन से लौटकर आने वाला उद्धव, इन दोनों में इतना अंतर कैसे आ गया? एक परमज्ञानी आज भावना और प्रेम की बोली बोल रहा है। ये कैसे हो गया?..फिर श्रीकृष्ण हंसते हुए कहते हैं- कहीं ब्रज की किसी गोपिका ने आप पर जादू तो नहीं कर दिया?
 
तब उद्धव कहते हैं नहीं भगवन! ये किसी गोपिका का नहीं। ये ब्रज की मिट्टी का जादू है। ये मेरे शरीर पर लगी हुई ब्रज की मिट्टी देख रहे हैं ना..इसे एक बार...एक बार अपनी देह पर लगा कर तो देखिये..ज्ञान और ज्ञान के अहंकार दोनों से मुक्ति मिल जाएगी। आंखें वही रहेंगी परंतु दृष्टि बदल जाएगी। चारों ओर बस एक ही रंग दिखाई देगा प्रेम रंग..भक्ति का रंग।... यह सुनकर श्रीकृष्‍ण मुस्कुरा देते हैं। तब उद्धव कहते हैं सब रंग फीके-फीके लगने लगेंगे। कानों में केवल प्रेम की मुरली सुनाई देगी..प्रेम की मुरली। 
 
यह सुनकर फिर श्रीकृष्ण हंसते हुए अपने स्थान पर बैठ जाते हैं। उद्धव उनकी ओर देखते हैं तो वे कहते हैं- बस हो गया काम उद्धव भैया। जिस काम के लिए आपको ब्रज भेजा था वह काम पूरा हो गया।...उद्धव यह सुनकर चौंक जाते हैं और पूछते हैं काम, क्या काम?
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं वही जो उस गोपिका ने आपसे कहा था। अर्थात ज्ञान की भांग का नशा जो आप पर भारी था उसे उतारकर आपको प्रेम की मदिरा चखाना चाहता था। ज्ञान में एक अहंकार रहता है परंतु प्रेम की मदिरा में एक ऐसी मस्ती है जिसमें प्रेमी खुद को भूल जाता है केवल अपने प्रेमी को याद रखता है। जो अपने को ही भूल जाएगा उसका अहम कहां रहेगा? यह सुनकर उद्धव के हाथ जुड़ जाते हैं.. तब श्रीकृष्‍ण कहते हैं उद्धव भैया ज्ञान में तर्क-वितर्क, दर्शन और विज्ञान के कई रास्ते होते हैं जिनमें कभी-कभी प्राणी ऐसा भटकता है कि दिग्भ्रांत हो जाता है। परंतु प्रेम के मार्ग में एक ही सीधी डगर है जिस पर चलता हुआ प्राणी कभी इधर-उधर नहीं भटक सकता। इसलिए जो मुझे आपकी तरह बहुत प्यारा होता है उसे मैं बाकी सब रास्तों से निकालकर प्रेम के सीधे मार्ग पर लाकर खड़ा कर देता हूं। बस उस मार्ग पर वह जैसा भी चलेगा, भटकेगा नहीं और अंत में सीधा मुझ तक पहुंच जाएगा।
 
यह सुनकर उद्धवजी कहते हैं हे दयालु! इस कृपा के लिए मैं किस प्रकार आपका आभार प्रकट करूं? इसके लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। ऐसा कहते हुए उद्धवजी श्रीकृष्ण के चरणों में झुकते हैं लेकिन श्रीकृष्‍ण उन्हें उठा लेते हैं और कहते हैं नहीं उद्धव भैया, यदि इसका आभार मानना है तो राधाजी का आभार मानों। ये उन्हीं का उपकार है। 
 
फिर श्रीकृष्ण राधा को पुकारते हैं- राधे!..राधा प्रभु की पुकार सुनकर प्रकट हो जाती हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं हमारे प्रिय मित्र पर आपने जो उपकार किया उसके लिए हम आपके आभारी हैं।... राधा कहती हैं हमने यह आभार स्वीकार कर लिया है परंतु एक विनती है। कृष्ण कहते हैं क्या? तो राधा कहती हैं फिर कभी किसी के हाथ इस प्रकार का संदेश मत भेजना कि हमें भूल जाओ। हमें ऐसी बात सुनके भी दु:ख होता है।...
 
श्रीकृष्ण आंखों में आंसू भरकर कहते हैं अबके क्षमा कर दो राधे। फिर ऐसी भूल नहीं होगी। राधा उनके जुड़े हुए हाथ पकड़ लेती हैं और कहती हैं यह क्या कर रहे हैं नाथ। आप हाथ जोड़ते हैं तो हमें पाप लगता है। यह सुनकर श्रीकृष्ण राधा के दोनों हाथ पकड़ लेते हैं। फिर वे उद्धव की ओर देखते हैं।
 
उद्धव इस अद्भुत दृश्य को देखकर धन्य मुद्रा में हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं। फिर वे राधा और कृष्ण के चरणों में बैठकर दोनों के चरणों में अपना सिर झुका देते हैं। दोनों उन्हें आशीर्वाद देते हैं। फिर उद्धव भक्ति में रमकर दोनों का स्तुति गान करते हैं। सभी देवता उनका स्तुति गान सुनते हैं। आसमान से सभी देवता फूल बरसाते हैं। ब्रह्मा और शिव प्रभु की यह लीला देखते हैं। जय श्री राधे कृष्णा।
 
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