गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

Shri Krishna 30 June Episode 59 : जरासंध की सेना का जब श्रीकृष्‍ण और बलराम कर देते हैं संहार

Shri Krishna 30 June Episode 59 : जरासंध की सेना का जब श्रीकृष्‍ण और बलराम कर देते हैं संहार - Shri Krishna on DD National Episode 59
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 30 जून के 59वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 59 ) के पिछले एपिसोड में मद्र नरेश शल्य मथुरा की जनता तक जरासंध का संदेश पहुंचाते हैं कि यदि कंस के हत्यारे कृष्ण और बलराम को हमें सौंप दोगे तो मथुरा का जनसंहार नहीं होगा। जनता में बहुमत यह
मानता है कि महाराज कृष्ण और बलराम को सौंप दें। यदि कृष्‍ण भगवान है तो वे स्वयं ही अपनी रक्षा कर लेंगे, हमें तो अपने बाल-बच्चों की चिंता है। सभी के मतों से श्रीकृष्ण और बलराम कहते हैं कि यदि किसी एक के बलिदान से मथुरा की रक्षा होती है तो जरासंध को संदेश भिजवा दें कि कल प्रात: हम दक्षिण के द्वार से जाकर उनके समक्ष आत्मसर्पण कर देंगे।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
सेना‍पति वह संदेश जरासंध को देते हुए कहता है, सम्राट को बधाई हो। शत्रु ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। यह सुनकर सभी में हर्ष व्याप्त हो जाता है। जरासंध कहता है वाह मित्र वाह...तुम्हारी योजना तो सचमुच सफल हो गई। कल प्रात: कृष्‍ण और बलराम मथुरा के दक्षिण द्वार से बाहर निकलकर हमारे सामने आत्मसमर्पण कर देंगे। यह कहकर वह हंसने लगता है। सभी वहां नारे लगाते हैं...सम्राट की जय हो। 
 
 
प्रात:काल दक्षिण के द्वार के सामने जरासंध और उसकी सेना एकत्रित हो जाती है। द्वार और परकोटे पर मथुरा के सैनिक धनुष और तलवार लिए खड़े रहते हैं। 
 
उधर, श्रीकृष्ण और बलराम अपने महल से निकलते हैं जनता और सैनिकों के बीच से। जनता में बहुत से लोग उन्हें देखकर रोने लगते हैं और कई लोग हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं। एक भावुक दृश्य रहता है। महिलाएं उन्हें न जाने का कहती हैं। एक वृद्ध चरणों में गिरकर कहता है प्रभु आप चले जाएंगे तो हमारी रक्षा कौन करेगा? तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो सबकी रक्षा करते हैं वही प्रभु आपकी भी रक्षा करेंगे। बहुत से लोग उन्हें जाने से रोकते हैं। 
 
द्वार पर जाकर श्रीकृष्ण कहते हैं सेनानायक नगर द्वार खोल दो। सेनानायक आंखों में आंसू भरकर कहता है नहीं मैं नहीं खोल सकता। नहीं राजकुमार मुझसे ये पाप मत कराओ। मैं अपने हाथों से द्वार खोलकर आपको मृत्यु के मुंह में नहीं भेज सकता। तब श्रीकृष्ण कहते हैं ये हमारी आज्ञा है भद्रसेन। अन्यथा हम की खोल लेते हैं। यह सुनकर भद्रसेन दरवाजा खुलवा देता है। दरवाजा खोल दिया जाता है जब श्रीकृष्ण कहते हैं चले दाऊ भैया? बलराम कहते हैं चलो।
 
तभी पीछे से अक्रूरजी रोककर कहते हैं, रुकिये प्रभु। इस समय आप आज्ञा भी देंगे तो मैं आज्ञा का उल्लंघन कर दूंगा प्रभु। मैं आपको अकेले नहीं जाने दूंगा। मैं और मेरे चुने हुए साथी आपके साथ जाने की और आपने साथ मरने की शपथ लेकर आए हैं प्रभु। ये शहीदी दस्ता सबसे आगे रहेगा। अक्रूरजी रोते हुए कहते हैं, पहले हमारे सिर कटेंगे प्रभु। आप हमें मत रोकियेगा। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं जब आपने शपथ ले ही ली हैं तो मेरे रोकने से क्या लाभ होगा अक्रूरजी। फिर भी हमारी एक बात मान लो, तुम लोग हमारे आगे नहीं हमारे पीछे-पीछे चलो। अक्रूरजी कहते हैं परंतु प्रभु। तब श्रीकृष्ण उन्हें रोक देते हैं और कहते हैं- यह हमारी आज्ञा है।
 
फिर दोनों द्वार के बहार निकाल जाते हैं उनके पीछे तलवार लिए अक्रूरजी और उनके सैनिक चलते हैं। जरासंध और उसके राजा यह दृश्य देखते रहते हैं। द्वार से बाहर निकलकर श्रीकृष्ण पलटकर कहते हैं, सेनानायक शत्रु विश्‍वासघात भी कर सकता है इसलिए अब यह द्वार बंद कर दो। सेनानायक ऐसा ही करता है।
 
फिर दोनों जरासंध की ओर कदम बढ़ते हैं तो उनके पीछे कुछ दूरी पर अक्रूरजी भी अपने चुने हुए सैनिकों के साथ चलते हैं। यह देखकर जरासंध, शल्य और बाणासुर आदि नरेश प्रसन्न हो जाते हैं। जरासंध कहता है, मित्र बाणासुर ये दो बालक बलिदान के लिए आ रहे हैं पर उनके पीछे ये 8-10 साथी क्या करने आ रहे हैं? उन्हें भी मरना है क्या? तब बाणासुर कहता है- नहीं सम्राट ये लोग इन दोनों का मृत शरीर उठाकर मथुरा आपस ले जाएंगे, इसलिए आ रहे हैं। यह सुनकर जरासंध हंसने लगता है। उसके हंसने के साथ ही सभी नरेश भी हंसने लगते हैं।
 
श्रीकृष्‍ण और बलराम छाती चौड़ी करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। फिर जरासंध कहता है अच्छी बात है परंतु याद रहे उन दोनों पर हमारे अतिरिक्त कोई हथियार नहीं उठाएगा।
हम अपने हाथों इन दोनों का मस्तक काट देंगे। 
 
फिर वह दोनों जरासंध के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं। सभी नरेश दोनों को देखने लगते हैं। उनके पीछे अक्रूरजी और उनके सैनिक खड़े हो जाते हैं। फिर भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी की ओर देखते हैं बलराम मुस्कुराते हैं तभी श्रीकृष्ण आसमान में अंगुली उठाते हैं तो बादल घिर जाते हैं और बिजलियां कड़कने लगती हैं। अक्रूरजी इस भयानक दृश्य को आसमान में देखते हैं। भयानक बिजली कड़कती है तो जरासंध और उसके साथी भयभीत होकर हिलने-डूलने लगते हैं। 
 
चारों और बादल गरजने और बिजली चमकने लगती है। श्रीकृष्ण की आसमान में अंगुली उठी रहती है। अक्रूरजी ये दृश्य देखकर श्रीकृष्ण को नमन करते हैं। फिर श्रीकृष्ण अपनी अंगुली नीचे कर देते हैं लेकिन भयानक बिजली कड़कती और चमकती रहती है जिसके चलते जरासंध और उसकी सेना के रथ और घोड़े हिलने लगते हैं। वहां बिजली गिरने लगती है तो सेना में भगदड़ मच जाती है।
 
जरासंध भी घबरा जाता है कि ये अचानक क्या हुआ। वह शल्य से पूछता है महाराज शल्य ये क्या हो रहा है? मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। अचानक यह तूफान कहां से आ गया। शल्य कहता है सम्राट मुझे भी कुछ नहीं दिख रहा है। मेरी आंखों के सामने बिजलियां कौंध रही हैं। 
 
तभी आसमान से दो दिव्य रथ सारथियों के साथ उतरते हैं। दोनों रथ श्रीकृष्ण और बलराम के पास आकर रुक जाते हैं। अक्रूरजी ये देखकर मन ही मन गद्गद होकर प्रभु की इस लीला को प्रणाम करते हैं। फिर श्रीकृष्‍ण रथ के सारथी से कहते हैं दारुक हमारे शस्त्र कहां है? दारुक आसमान में संकेत करते हुए कहता है प्रभु वो देखिये। पंच दिव्य ज्योतियां उतरकर एक जगह स्थिर हो जाती हैं। उनमें से एक धनुष और एक गदा बन जाती है जिसे श्रीकृष्ण धारण कर लेते हैं। तीसरी ज्योति चक्र में बदल जाती है। फिर चौथी ज्योति सावर्तक नाम का हल बन जाती है और पांचवीं मूसल बन जाती है जिसे बलरामजी धारण कर लेते हैं। पीछे हाथ जोड़े खड़े अक्रूरजी ये दृश्य देखते रहते हैं।
 
फिर श्रीकृष्ण सामने जरासंध की सेना को देखते हैं जहां पर बिजली और तूफान का प्रभाव जारी रहता है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं दाऊ भैया ये हमारे जीवन का पहला युद्ध है ना। दाऊ भैया कहते हैं हां पहला है। तब कृष्ण कहते हैं आप बड़े हैं इसलिए इसके सेनापति आप ही होंगे। तब बलराम कहते हैं मैं? फिर श्रीकृष्ण कहते हैं हां दाऊ भैया आप। आप परमशक्तिशाली हैं और इस समय मथुरावासी आपको ही अपना रक्षक मानते हैं। सो इस विपत्ति में उनकी रक्षा कीजिये और हे शेषावतार रथारूढ़ होइये। मैं आपका अनुज युद्ध में आपका पूरा साथ दूंगा। आप हमारे सेनापति हैं। यह सुनकर बलराम कहते हैं देखो कृष्ण मुझे ऐसी लच्छेदार बातें करते नहीं आती। मुझ पर छोड़ते हो तो फिर मेरा हाथ मत रोकना।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि केवल एक विनती है कि जरासंध को जीवित छोड़ देता। क्योंकि वह हारकर जीवित रहेगा तो एक बार फिर अपने अपमान का बदला लेने के लिए इसी प्रकार कई अक्षौहिणी दुष्टों को एकत्रित करके आएगा और हम दोनों मथुरा में बैठे-बैठे ही इतने सारे दुष्टों का एकसाथ संहार करते रहेंगे। अन्यथा इतने सारे दुष्टों को ढूंढने हम कहां-कहां भटकेंगे? इसलिए आज जरासंध को अपमानीत करके छोड़ देना। बलरामजी कहते हैं अच्छी बात है। अब अपने आयुधों को संभालों और अपने रथ पर सवार हो जाओ। श्रीकृष्ण कहते हैं- जो आज्ञा।
 
रथ पर सवार होकर श्रीकृष्ण कहते हैं दाऊ भैया अब यदि आज्ञा हो तो मैं युद्ध की घोषणा करूं? फिर श्रीकृष्ण अपना पांचजन्य शंख बजाते हैं। उसके भयंकर नाद से हाहाकार मच जाती है। जरासंध कहता है ये क्या है महाराज शल्य। ये तो युद्ध की घोषणा है, आत्मसमर्पण नहीं। शल्य कहता है सम्राट ये तो धोका है। यह सुनकर जरासंध चीखकर कहता है आक्रमण।
 
तभी भगवान श्रीकृष्ण अपने सुदर्शन चक्र को संकेत करते हैं तो वह सेना के ऊपर छा जाता है। श्रीकृष्ण अपने बाणों से जरासंध, शल्य और बाणासुर के साथ मनोरंजन करते हैं तो उधर बलराम अपने हल और मूसल से सेना का संहार करना प्रारंभ कर देते हैं। अक्रूरजी और उनके सैनिक भी अपना-अपना मोर्चा संभाल लेते हैं। चक्र भी घुम-घुम कर सेना का संहार करने लगता है।
 
फिर बलरामजी अपने हल को बड़ा करके उससे एक महारथी को रथ सहित उठाकर फेंक देते हैं। वह रथ सहित नीचे गिरकर भाग जाता है। श्रीकृष्ण भी अपना बाण चलाकर बाणासुर को रथ से नीचे गिरा देते हैं और शल्य को शस्त्रहिन कर देते हैं। दोनों रण से भाग जाते हैं। कोई भी नरेश नहीं रुक पाता। जरासंध भी देखता है कि किस तरह से बलरामजी अपने हल से सेना का संहार कर रहे हैं। दूसरी ओर श्रीकृष्ण शल्य के रथ में आग लगा देते हैं। वह भी रथ से उतरकर भाग जाता है। जरासंध सुदर्शन चक्र के संहार को भी देखकर भयभीत हो उठता है। अपने चारों और सैनिकों की लाशों के ढेर देखकर वह कुछ समझ नहीं पाता है कि यह क्या हो रहा है।
 
बलरामजी जरासंध को अपने हल से रथ से नीचे गिरा देते हैं तो वह गदा लेकर बलरामजी की ओर दौड़ता है। फिर बलराम और जरासंध में गदा युद्ध होता है। दोनों का गदा युद्ध देखने के लिए श्रीकृष्ण और अक्रूरजी खड़े हो जाते हैं।
 
उधर, घायल बाणासुर और शल्य आदि कहते हैं कि सम्राट अकेले रहे गए हैं हमें उनकी सहायता के लिए आगे जाना चाहिए। सभी कहते हैं चलो एक साथ धावा करते हैं। तभी सुदर्शन चक्र देखकर वे सभी भाग जाते हैं। अक्रूरजी और श्रीकृष्ण ये देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। जय श्रीकृष्‍ण।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
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