12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे खास ज्योतिर्लिंग कौन-सा है?
12 Jyotirlingas: देशभर में ज्योतिर्लिंग हैं। सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर, नागेश्वर, रामेश्वरम् और घृष्णेश्वर। वैसे जो सभी ज्योतिर्लिंगों का पुराणों में अलग अलग महत्व बताया गया है परंतु इनमें से सबसे खास ज्योतिर्लिंग कौनसा है जहां जाने से सभी ज्योर्तिंग के दर्शन पूर्ण हो जाते हैं।
भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, और सावन माह में इनका दर्शन करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है। इनमें भी खासकर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम, महाकालेश्वर और काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व है। उक्त चारों में भी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को सबसे खास माना गया है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी तट पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। इसे महाकाल कहते हैं।
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग क्यों है सबसे खास?
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प्राचीनकाल में यहीं से विश्व का काल यानी मानक समय निर्धारित होता था।
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महाकाल इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यह अपने भक्तों को अकाल मृत्यु से बचाते हैं।
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महाकालेश्वर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो स्वयंभू और दक्षिणमुखी भी है।
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यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग हैं जहां पर शिवजी की भस्म आरती की जाती है।
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यहां पर साढ़े तीन काल विराजमान है- महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्ध काल भैरव।
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वराह पुराण में उज्जैन को नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है।
आकाशे तारकम लिंगम, पाताले हाटकेश्वरम
मृत्युलोके महाकालं, त्रियलिंगम नमोस्तुते
अर्थात: भगवान् शिव आकाश में तारक, पाताल में हाटकेश्वर एवं मृत्युलोक में महाकाल बनकर विराजते हैं, उन्हें हम नमन करते हैं। यानि आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर और धरती पर महाकाल ही एकमात्र शिवलिंग हैं। इन तीनों को नमस्कार है।
वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। पौराणिक तथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है।