शनि ग्रह के लिए पूजें स्थावरेश्वर महादेव को
50वें महादेव लिंग स्थावरेश्वर (शनि ग्रह के आधिपत्य)
पौराणिक कथा: स्कंदपुराण के अवंतिखण्ड में भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा जब अपने पति के प्रखर तेज से पीड़ित होने लगी, तब उन्होंने तेजबल से एक नारी को पैदा कर उसे अपने पति की सेवा में नियुक्त कर दिया।
उसको एक पुत्र की उत्पत्ति हुई, जिसका नाम शनि रख गया। जैसे-जैसे शनि बड़ा होने लगा वैसे-वैसे संपूर्ण जगत प्रभाव में आने लगा। तब इन्द्र के प्रस्ताव पर ब्रह्माजी ने सूर्य को उसे समझाने को कहा तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त की। सभी देवताओं ने शिव से प्रार्थना की। शिव द्वारा समझाने पर शनि ने अपने लिए स्थान मांगा।
शिव ने शनि को महाकाल वन स्थित शिवलिंग की उपासना करने तथा इसी में समाहित होने का निर्देश दिया। जिन लोगों को शनिदेव चौथे, आठवें, बारहवें अथवा जन्म स्थान पर रहकर पीड़ा देते हैं। उन्हें इस लिंग का पूजन करना चाहिए। इस लिंग के पूजन से शनि का क्रोध शांत हो जाता है। इस स्थान पर शनिदेव का निवास होने के कारण इसे स्थावरेश्वर भी कहा जाता है। यह मंदिर उज्जैन में बम्बाखाना क्षेत्र में स्थित है।
विशेष- कृष्ण पक्ष की प्रदोष को पूजन और अभिषेक से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है व श्रावण मास में शनि की शांति हेतु काले अंगूर के रस से रूद्राभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
दान- तिल, तेल, लोहा, पात्र, काली तिल्ली, काली उड़द।