Hindu vivah vidhi paddhati: धर्म शास्त्रों के अनुसार हिंदू विवाह एक समझौता नहीं है। यह भोग विलासिता का साधन भी नहीं है। हिन्दू विवाह 16 संस्कारों में से एक धार्मिक संस्कार है। शास्त्रों के अनुसार 8 प्रकार के विवाह में से ब्रह्म विवाह को ही धर्म शास्त्रों ने मान्यता दी है। वर्तमान में सभी हिंदू इसी विवाह पद्धति को अपनाते हैं जिसमें स्थानीय संस्कृति के अनुसार उनके रीति रिवाज भले ही भिन्न हो।
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1. रिश्ता तय: रिश्ते की तलाश पुरी होने के बाद रिश्ता तय करने के लिए लड़के वाले लड़की को और लड़की वाले लड़के को तिलक लगाकर नेक देते हैं जिसे तिलक की रस्म कहते हैं।
2. सगाई या मंगनी: रिश्ता तय होने के बाद सगाई की रस्म निभाई जाती है। इसे पंजाब में रोका कहते हैं।
3. लग्न टीप: सगाई के बाद ही लड़की वाले के घर पर पंडित से लग्न लिखाते हैं जिसमें विवाह की तारीख और लग्न का समय लिखा जाता है। लड़की वाले लग्न टीप को लड़के वाले को दे देते हैं। लड़के वाले इस टीप को मंदिर में संभालकर रखते हैं क्योंकि यही लग्न टीप लग्न वाले दिन पंडित मांगता है। लग्न टीप के बाद घर के द्वार को सजाया जाता है।
4. न्योता: इसके बाद पूर्वजों को सबसे पहले न्योता देने हैं। न्योता यानी निमंत्रण देते हैं विवाह में आने का जिसे सुखपिंडी कहते हैं। इसके बाद देवताओं को न्योता देते हैं जिसके लिए गणेश मंदिर और कुलदेवी के यहां पत्रिका रखते हैं। इसके बाद सभी को पत्रिका बांटते हैं।
5. पारंपरिक गीत: लग्न टीप लिखाने के बाद घर में 5 दिनों तक गणेशजी के गीतों के साथ ही पारंपरिक गीत गाते हैं जिसे बन्ना बन्नी के गीत भी कहते हैं।
6. माता पूजन: विवाह की शुरुआत माता पूजन से होती है। सबसे पहले घर के पास किसी मंदिर में माता की पूजा करने जाते हैं।
7. गणेश पूजन: गणेश पूजन के लिए पहले गणेशजी के लिए बड़े बड़े लड्डू बनाते हैं। इन लड्डुओं के साथ गणेश जी की पूजा होती है।
8. हल्दी: माता पूजन और गणेश पूजा के बाद हल्दी की रस्म होती है जिसमें वर या वधु को हल्दी लगाई जाती है।
9. मंडप और गृह शांति: मंडप के सामने या आसपास दीवार पर माता बनाई जाती है जिसकी पूजा करते हैं। फिर मंडप लगाया जाता है। मंडप में ही गृह शांति और मामेरा आदि का कार्यक्रम होता है। इसी में तेल चढ़ाने की रस्म भी पूरी करते हैं।
10. द्वार पूजा : मंडप के बाद लड़का बारात लेकर लड़की वालों के यहां जाता है। घोड़ी पर सवार होकर जाता है जब पहले घोड़ी को चना खिलाने की रस्म करते हैं। इसके बाद वहां पर जहां तोरण लगाते हैं उस द्वार की लड़की वाले पूजा करते हैं। इसके बाद तोरण लगता है।
11. पलड़ा : जब सभी बराती लड़की वालों के यहां पहुंचते हैं तो सबसे पहले पलड़े की रस्म होती है। इसमें एक थाल में लड़की के लिए ड्राई फूड, रकम, जेवर, कपड़े आदि होते हैं।
12. वरमाला : लड़का और लड़की एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं और सभी उपस्थित जन उन्हें आशिर्वाद देते हैं। आजकल यह रस्म लग्न के बाद स्टेज पर करने लगे हैं।
13. लग्न : इसके बाद तय समय पर लग्न होता है जिसमें पंडित जी सहित सभी लोग देवी-देवता, ग्रह-नक्षत्र आदि को सावधान कहते हैं।
15. फेरे : कन्या दान के बाद लड़की के घर पर लगे मंडप के नीचे फेरे होते हैं। फेरे के इसके बाद फेरे की रस्म प्रारंभ होती है।
16. सप्तपदी और सात वचन: फेरे के बाद सप्तपदी यानी मंडप के नीचे चावल की सात ढेरिया बनाई जाती है और कन्या उन चावल की ढेरियो को अपने दाहिने पैर के अंगूठे से छूती है। अग्नि की परिक्रमा होती है। इसके बाद लकड़ी पति के लिए सात वचन कहती है और लड़का पांच वचन कहता है।
17. मांग भराई और मंगलसूत्र: अंत में वर सिक्के के ऊपर सिंदूर रखकर वधु की मांग में लगाता है। इसके बाद वर वधु को मंगलसूत्र पहनाता है। दूल्हे के यहां से स्त्रियां दुल्हन को पैरों में तीनों उंगलियों में बिछुड़ी पहनाती है। उस समय दुल्हन, दूल्हे के यहां से दी गई साड़ी जिसे शालू कहा जाता है वह पहनती है।
18. विदाई की रस्म: अंत में लड़की की विदाई होती है। दुल्हन को एक पाट पर बिठाकर उसके हाथ गीली हल्दी में करते हैं। फिर वह अपने सभी सगे संबंधियों की पीठ पर अपने हाथ के छापे बनाकर विदा होने की रस्म निभाती हैं। उस समय माहौल भावनात्मक हो जाता है। इसके बाद दूल्हे एवं उसके परिवार के साथ दुल्हन विदा हो जाती है।
19. नई वधू का गृह प्रवेश: गृह प्रवेश रस्म में दुल्हन द्वार के पास रखे चावल से भरे कलश को अपने दाहिने पैर से गिराती है। कहा जाता है कि इस दौरान जब कलश के चावल घर के भीतर बिखरते हैं तो घर में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। चावल से भरा कलश गिराना इस बात का प्रतीक है कि नई दुल्हन अपने साथ लक्ष्मी (धन और समृद्धि की देवी) के आशीर्वाद को घर में लेकर आ रही है।
20. माता नमन: गृह प्रवेश के बाद वर और वधु उस स्थान पर जाते हैं जहां लड़के वालों का मंडप लगा होता है और जहां पर माता बनी होती है। दोनों माता की पूजा करते हैं और तब बाद में माता का सभी सामान उठाकर घर में उचित स्थान पर रख देते हैं।
21. चूड़ा रस्म : माता नमन के बाद चूड़ा रस्म होती है। जिसमें वधू को चूड़ियां और बिछिया पहनाई जाती है।
22. पग फेरे : दोनों पक्ष द्वारा तय समय पर लड़की वाले लड़की को लेने आते हैं जिसे पग फेरे की रस्म कहते हैं। हर समाज और प्रांत में इसका नाम अलग हो सकता है। इसी तरह बाद में लड़का अपनी दुल्हन को लेने उसके घर अकेला या किसी परिजन के साथ जाता है।
23. माता विसर्जन: अंत में सवा माह के बाद माता पूजन की सामग्री यानी मटकी और कागज पर बनी माता आदि का विसर्जन कर देते हैं।