मंदिर' का अर्थ होता है- मन से दूर कोई स्थान। 'मंदिर' का शाब्दिक अर्थ घर भी होता है। देवालय, शिवालय, रामद्वारा, गुरुद्वारा, जिनालय सभी का अर्थ अलग अलग होता है। मंदिर को अंग्रेजी में टेम्पल नहीं कहते हैं।
आजकल देखा गया है कि घर के पास ही मंदिर है फिर भी लोग बाहर से ही नमस्कार करते हुए निकल जाते हैं। वे समझते हैं कि बस इतने से ही हमारा कर्तव्य पूरा हो गया। तर्क देते हैं कि मन में श्रद्धा होना चाहिए बस। यदि ऐसा ही है तो मंदिर की जरूरत क्या? दरअसल, लोग मंदिर के पीछे छिपे विज्ञान और अध्यात्म को नहीं जानते। मंदिर हमें हर तरह के संकट से बचाता है साथ ही प्रतिदिन मंदिर जाने के कई लाभ है। आओ जानते हैं क्या है वे संकट और लाभ।
कौन कौन से 10 संकटों से बचाता है मंदिर?
1.आकस्मिक घटना-दुर्घटना : यदि आप प्रतिदिन मंदिर जा रहे हैं तो आप अपने जीवन में आने वाली उन घटनाओं से बच सकते हैं जो कि आकस्मिक आती है जैसे दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या जैसी नकारात्मकता आपकी जिंदगी से दूर रहेगी।
2. भूत-पिशाच : मंदिर जाने वाले व्यक्ति के मन में भरपूर सकारात्मकता और आध्यात्मिक बल होता है जिसके चलते उसके आस-पास नकारात्मक ऊर्जा उसके पास फटकती भी नहीं है। आप इस उर्जा को भूत, पिशाच या प्रेत भी कह सकते हैं। मंदिर जाने वाला भयमुक्त जीवन जिता है।
2.ग्रह बाधा : यदि आप प्रतिदिन मंदिर जाते हैं तो आप पर किसी भी प्रकार के ग्रह और नक्षत्रों का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। ग्रहबाधा से आप मुक्त रहते हैं। मंगल दोष, शनि या अन्य किसी ग्रह की बाधा है, साढ़े साती, अढ़ाय्या या राहु की महादशा चल रहा है तो घबराने की जरूरत नहीं।
3.रोग या बीमारी : मंदिर में जाकर आप मंदिर के नियमों का पालन करते हैं। व्रत, उपवास और पाठ में विश्वास करते हैं, सोच-समझकर आहार-विहार करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी नहीं होगी।
4.दुख या शोक : मंदिर जाकर मन में विश्वास और आत्मबल का संचार होता है जिसके कारण मन में किसी भी प्रकार का दुख या शोक नहीं रहता है। व्यक्ति सभी परिस्थिति में समभाव से रहता है। समभाव अर्थात न तो भावना में बहता है और न ही कठोर होता है। हर परिस्थिति उसके लिए सामान्य होती है।
5.कोर्ट-कचहरी-जेल: मंदिर जाने से व्यक्ति में सही और गलत को समझने की क्षमता होती है। वह किसी भी प्रकार की फालतू लड़ाई झगड़े में नहीं पड़ता है। जैसे रास्ते में पड़े पत्थर या गड्डे को देख लेने के बाद हम अपनी गाड़ी को उससे बचाकर निकाल ले जाते हैं उसी तरह व्यक्ति अपनी जिंदगी को समझदारी से गड्डों से बचा ले जाता है।
6.तंत्र, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन : मंदिर जाने वाले व्यक्ति का कोई शत्रु किसी बुरी विद्या के माध्यम से कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। बहुत से व्यक्ति अपने कार्य या व्यवहार से लोगों को रुष्ट कर देते हैं, इससे उनके शत्रु बढ़ जाते हैं। कमजोर शत्रु हमेशा सामने की लड़ाई नहीं लड़ते हुए पीठ के पीछे ऐसे कार्य करते हैं जिनको अंधविश्वास की श्रेणी में रखा जाता है। मंदिर जाने वाले लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
7.कर्ज से मुक्ति : मंदिर जाने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी ऐसे संकट नहीं आते हैं कि वह कर्ज में डूब जाए। थोड़ा बहुत कर्ज होता है तो कोई फर्क नहीं। कर्ज भी सोच समझकर लें। यदि ज्यादा है तो उसके चुकता होने के निश्चित ही मंदिर से ही रास्ते निकलते हैं। मन मंदिर में विश्वास है तो इस बाधा व्यक्ति मुक्त हो जाता है।
8.नौकरी और रोजगार : आप बेरोजगार है या आपका व्यापार नहीं चल रहा है तो निश्चित ही आपको प्रतिदिन मंदिर जाना चाहिए। आपको जल्द ही सफलता मिलेगी। हालांकि जो प्रतिदिन मंदिर जाकर प्रार्थना और पूजा पाठ करता है उसके साथ यह समस्या नहीं रहती है। होती भी है तो वह दिमाग पर बोझ नहीं लेकर कर्म करता जाता है और सफल हो ही जाता है।
9.तनाव या चिंता : बहुत से लोगों को अनावश्यक भय और चिंता सताती रहती है जिसके कारण वे तनाव में रहने लगते हैं। तनाव में रहने की आदत भी हो जाती है जिसके चलते व्यक्ति कई तरह के रोग से भी घिर सकता है। लेकिन मंदिर जाने वाले के दिल और दिमाग में ये सब नहीं रहता है।
10.गृहकलह : प्रतिदिन मंदिर जाने वाले में मन और मस्तिष्क में कलह या क्रोध नहीं होता है। घर के दूसरे सदस्य यदि उससे झगड़ा करते हैं या घर में गृहकल हो रही है तो वह उसे समझदारी से हेंडल कर माहौल को खुशनुमा बना देता है।
अब जानिए कि मंदिर जाने वाला कैसे उपरोक्त संकटों से मुक्त रहता है और उसे क्या लाभ मिलता है?
1. मंदिर में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है। पुराने मंदिर सभी धरती के धनात्मक (पॉजीटिव) ऊर्जा के केंद्र हैं।
2.पुराने मंदिर सभी धरती के धनात्मक (पॉजीटिव) ऊर्जा के केंद्र हैं। ये मंदिर आकाशीय ऊर्जा के केंद्र में स्थित हैं। उदाहरणार्थ उज्जैन का महाकाल मंदिर कर्क रेखा पर स्थित है। ऐसे धनात्मक ऊर्जा के केंद्र पर जब व्यक्ति मंदिर में नंगे पैर जाता है तो इससे उसका शरीर अर्थ हो जाता है और उसमें एक ऊर्जा प्रवाह दौड़ने लगता है। वह व्यक्ति जब मूर्ति के जब हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। जब वह व्यक्ति सिर झुकाता है तो मूर्ति से परावर्तित होने वाली पृथ्वी और आकाशीय तरंगें मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तिष्क पर मौजूद आज्ञा चक्र पर असर डालती हैं। इससे शांति मिलती है तथा सकारात्मक विचार आते हैं जिससे दुख-दर्द कम होते हैं और भविष्य उज्ज्वल होता है। नंगे पैर भूमि कर चलने से पैरों के पॉइंट पर दबाव पड़ता है जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल रहता है।
3.मंदिर में प्रवेश से पूर्व शरीर और इंद्रियों को जल से शुद्ध करने के बाद आचमन करना जरूरी है। इस शुद्ध करने की प्रक्रिया को ही आचमन कहते हैं। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए। आचमन से मन और शरीर शुद्ध होता है।
4.पूजा एक रासायनिक क्रिया है। इससे मंदिर के भीतर वातावरण की पीएच वैल्यू (तरल पदार्थ नापने की इकाई) कम हो जाती है जिससे व्यक्ति की पीएच वैल्यू पर असर पड़ता है। यह आयनिक क्रिया है, जो शारीरिक रसायन को बदल देती है। यह क्रिया बीमारियों को ठीक करने में सहायक होती है। दवाइयों से भी यही क्रिया कराई जाती है, जो मंदिर जाने से होती है।
5.प्रार्थना में शक्ति होती है। प्रार्थना करने वाला व्यक्ति मंदिर के ईथर माध्यम से जुड़कर अपनी बात ईश्वर या देव शक्ति तक पहुंचा सकता है। देवता सुनने और देखने वाले हैं। प्रतिदिन की जा रही प्रार्थना का देवताओं पर असर होने लगता है। मानसिक या वाचिक प्रार्थना की ध्वनि आकाश में चली जाती है। प्रार्थना के साथ यदि आपका मन सच्चा और निर्दोष है तो जल्द ही सुनवाई होगी और यदि आप धर्म के मार्ग पर नहीं हैं तो प्रकृति ही आपकी प्रार्थना सुनेगी देवता नहीं। प्रार्थना का दूसरा पहलू यह कि प्रार्थना करने से मन में विश्वास और सकारात्मक भाव जाग्रत होते हैं, जो जीवन के विकास और सफलता के अत्यंत जरूरी हैं।
6.प्रतिदिन मंदिर जाकर व्यक्ति अपने मस्तक पर या दोदों भौहों के बीच चंदन या केसर का तिलक लगाता है। इस तिलक लगाने जहां शांति का अनुभव होता है वहीं इससे एकाग्रता बढ़ती है। दरअसल जहां तिलक लगाया जाता है उसके ठीक पीछे आत्मा का निवास होता है। आज्ञाचक्र और सहस्रार चक्र के बीच के बिंदू पर आत्मा निवास करती है जोकि नीले रंग की है। आत्ता अर्थात हम खुद। चंदन लगाने के आध्यात्मिक लाभ भी हैं।
7.घंटी की आवाज हमारे मन और मस्तिष्क को हिलिंग की तरह होती है। शोधकर्ता कहते हैं कि जब मंदर की घंटी या घंटा बजता है तो 7 सेकंड्स तक उसकी गुंज हमारे कानों में गुंजती रहती है। इससे मन और मस्तिष्क में ऊर्जा का संचार होता है और दिमाग को बहुत सुकून मिलता है। यह हमारे शरीर की एनर्जी लेवल बढ़ाने में सहायक है। शारीरिक और आत्मिक शांति के बल पर ही आप दुनिया की हर झंझट से निपट सकते हैं।
8.मंदिर में व्यक्ति हाथ जोड़कर खड़ा रहता है। हाथ जोड़ने से जहां हमारे फेंफड़ों और हृदय को लाभ मिलता है वहीं इससे प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी होता है। कहते हैं कि हथेलियों और अंगुलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ा है जो शरीर के कई अन्य अंगों से जुड़े हैं। इससे उन अंगों में ऊर्जा का संचार होता है।
9.मंदिर का सुगंधित वातावरण जहां हमारे मन और मस्तिष्क को शांत करता है वहीं इस वातावरण में रहने से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और किसी भी प्रकार का वायरल इंफेक्शन नहीं होता है क्योंकि मंदिर में कर्पूर और धुआं होता रहता है। साथ ही ध्वनि से भी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।
10.प्रतिदिन मंदिर जाने वाले व्यक्ति में तनाव, चिंता, अवसाद और मानसिक रोग नहीं होते हैं। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी हैं कि वह प्रतिदिन मंदिर केवल हाथ जोड़ने के लिए नहीं जाए। वहां जाकर पूर्ण नियम से प्रार्थना, पूजा या पाठ करें तो ही इसका लाभ मिलेगा। अन्यथा ऐसे बहुत है जो मंदिर में एक एक मिनट भी खड़े नहीं रहते हैं और बाहर हो जाते हैं।