नष्ट हो जाएगी काशी, स्वयं शिव ने बनाया था वास्तु विधान...
काशी को क्योटो बनाने के क्रम में काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण के लिए बनारस के ललिता घाट से विश्वनाथ मंदिर तक दो सौ से अधिक भवन चिन्हित किए गए हैं, जिन्हें तोड़ा जा रहा है। इनमें लगभग 50 की संख्या में प्राचीन मंदिर व मठ शामिल हैं। ये सभी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की ज़द में आने वाले मंदिर हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपने संसदीय क्षेत्र काशी को क्योटो बनाने की बात कही तब काशी को जानने और समझने वालों के ज़ेहन में यह सवाल बार-बार आया कि इतिहास से भी पुरानी नगरी काशी को कोई 600 साल पुराने इतिहास वाले क्योटो के समान क्यों बनाना चाहता है? इन प्राचीन मंदिरों, देव विग्रहों की रक्षा के लिए आंदोलनरत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 12 दिन के उपवास पर बैठे हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि काशी का पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं भगवान शिव ने मूर्तरूप दिया था। ऐसे में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के कारण पक्का महाल के पौराणिक मंदिरों और देव विग्रहों को नष्ट करने से काशी ही नष्ट हो जाएगी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है पक्का महाल ही काशी का मन, मस्तिष्क और हृदय है। पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं भगवान शिव ने मूर्तरूप दिया था। ऐसे में इसके नष्ट होने से काशी के नष्ट होने का खतरा है। यह सिर्फ काशी के एक हिस्से पक्का महाल या यहां रहने वालों की बात नहीं है बल्कि सवा सौ करोड़ देशवासियों की आस्था का प्रश्न है। पक्का महाल की अवधारणा काशी के गंगा तट पर अस्सी से राजघाट तक की है।
कहा जाता है कि काशी को जानना समझना हो तो पक्का महाल को समझना ज़रूरी है। यह इलाका खुद में कई संस्कृतियों को समेटे हुए है। देश का ऐसा कोई राज्य नहीं जिसका प्रतिनिधित्व पक्का महाल न करता हो। अलग-अलग राज्यों की रियासतों की प्राचीन इमारत व वहां पूजे जाने वाले पौराणिक मंदिर और देव विग्रह इसी क्षेत्र में स्थित हैं। काशी में विकास के बहुत से कार्य हुए हैं लेकिन पौराणिक महत्व रखने वाले धरोहरों को कभी नष्ट नहीं किया गया, न ही इन्हे छेड़ा गया।
लेकिन आज काशी का यही पक्का महाल विकास की भेंट चढ़ने जा रहा है। हजारों हजार साल पुरानी विरासत को मिटाने की साजिश को विकास जामा पहना दिया गया है। जिससे काशी का हृदय कहे जाने वाला पक्का महाल इन दिनों सहमा सा है। क्योंकि इसके वजूद पर संकट खड़ा हो गया है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि यह विषय रामजन्म भूमि से भी बड़ा है, क्योंकि अयोध्या में सिर्फ एक मंदिर की बात है, लेकिन यहां हमारे पुराणों के उपरोक्त परंपरा से पूजित अनेक मंदिरों की बात है। अभी हम शास्त्रों के अनुसार ही विरोध कर रहे हैं, लेकिन यदि सरकार राजनीति से प्रेरित होकर यह अपेक्षा करेगी कि वह जन दबाव से ही मानेगी तब हम जनता का आह्वान भी करेंगे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि हम सरकार की किसी योजना के विरोध में नहीं हैं। सरकारें जनता के हित में ही कोई योजनाएं लाती हैं। हमारा विरोध सिर्फ इतना है कि किसी भी विग्रह और मंदिरों को अपमानित ना किया जाए, अपूजित ना रखा जाए, उनके स्थान से उन्हें न हटाया जाए।