वृक्ष का होना कितना लाभदायक, अगले पन्ने पर..
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गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रूपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ- अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ' नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है। -पुराण
दरअसल, वृक्ष हमारी धरती पर जीवन का प्रथम प्रारंभ हैं। जीवों ने या कहें आत्मा में सर्वप्रथम प्राणरूप में खुद को वृक्ष के रूप में ही अभिव्यक्त किया था। जब धरती पर स्वतंत्र जीव नहीं थे, तब वृक्ष ही जीव थे। यही जीवन का विस्तार करने वाले थे, जो आज भी हैं।
इसके बाद जब चेतना परम पद को प्राप्त कर लेती है, तो वह वृक्षों जैसी ही स्थिर हो जाती है। अनंत ऐसी आत्माएं हैं जिन्होंने वृक्ष को अपना शरीर बनाया है। वृक्ष इस धरती पर ईश्वर के प्रथम प्रतिनिधि या दूत हैं। वेद शास्त्रों और पुराणों को पढ़ने पर इस बात का खुलासा होता है।
।।तहं पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।।
भावार्थ- अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों यहां तक कि देवताओं ने भी वटवृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं। -रामचरित मानस
क्या वृक्ष के समक्ष खड़े होकर मन्नत मांगने से पूर्ण होती है...
धरती के दो छोर हैं- एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। वृक्ष इन दोनों ध्रुवों से कनेक्ट रहकर धरती और आकाश के बीच ऊर्जा का एक सकारात्मक वर्तुल बनाते हैं। वृक्ष का संबंध या जुड़ाव जितना धरती से होता है उससे ज्यादा कई गुना आकाश से होता है।
वैज्ञानिक शोधों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि धरती के वृक्ष ऊंचे आसमान में स्थित बादलों को आकर्षित करते हैं। जिस क्षेत्र में जितने ज्यादा वृक्ष होंगे, वहां वर्षा उतनी ज्यादा होगी। धरती के वर्षा वनों के समाप्त होते जाने से धरती पर से वर्षा ऋतु का संतुलन भी बिगड़ने लगा है जिसके चलते कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ के नजारे देखने को मिलते हैं। खैर, यह तो सिद्ध होता है कि वृक्षों का संबंध आकाश से है।
यदि आप किसी प्राचीन या ऊर्जा से भरपूर वृक्षों के झुंड के पास खड़े होकर कोई मन्नत मांगते हो तो यहां आकर्षण का नियम तेजी से काम करने लगता है। वृक्ष आपके संदेश को ब्रह्मांड तक फैलाने की क्षमता रखते हैं और एक दिन ऐसा होता है जबकि ब्रह्मांड में गया सपना हकीकत बनकर लौटता हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं, मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। ब्रह्मांड में इस रूप की तस्वीर पहुंच जाती है फिर जब वह पुन: आपके पास लौटती है तो उस तस्वीर अनुसार आपके आसपास वैसे घटनाक्रम निर्मित हो जाते हैं अर्थात योगानुसार विचार ही वस्तु बन जाते हैं। यदि आप निरंतर वृक्षों की सकारात्मक ऊर्जा के वर्तुल में रहते हैं तो आपके सोचे सपने सच होने लगते हैं इसीलिए वृक्षों को कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है।
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तुलसी : हमारे ऋषि-मुनियों ने जब तुलसी का निरंतर प्रयोग किया तो उन्हें पता चला कि तुलसी में ऐसे गुण हैं, जो हमारे एक नहीं सैकड़ों रोग को मिटा सकती है। उसमें सबसे खास यह कि तुलसी में कैंसर सेल्स को मिटाने की ताकत है। 5 तुलसी के पत्तों का 5 बेल और 5 नीम के पत्तों के साथ कूट-पीसकर गोली बनाकर सेवन किया जाए तो यह कैंसर को समाप्त कर सकती है। वैसे प्रतिदिन तुलसी का 1 पत्ता खाते रहने से कभी भी जीवन में कैंसर नहीं होता।
जिनके घरों में तुलसी का पौधा रहता है उनके घर की हवा शुद्ध रहती है। यह हवा में उड़ रहे घातक जीवाणुओं का नाश कर देती है। तुलसी के बीजों को गुड़ में मिलाकर खाने से नि:संतान महिलाओं को जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल आती है। इस तरह तुलसी के सैकड़ों लाभ हैं।
लहसुन : कैंसर के उपचार में लहसुन की महत्वपूर्ण भूमिका है। कई चिकित्सीय शोध बताते हैं कि लहसुन का नियमित सेवन करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका बेहद कम होती है। लहसुन में कैंसर से लड़ने की विलक्षण क्षमता है। यह निरोधक प्रणाली को प्रेरित करता है, कैंसर भड़काने वाले तत्वों का निर्विषीकरण करता है और नाइट्रेट के निर्माण में बाधा बनकर यह पाचन मार्ग, स्तन तथा प्रोस्टेट के कैंसरों के इलाज में बहुत प्रभावकारी है।
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जामुन : जामुन की अधिकता के कारण इस धरती के माध्य स्थान का नाम जम्बूद्वीप पड़ा। जामुन कई रोगों की रोकथाम में लाभदायक है, जैसे पेचिश, पथरी, हैजा, रक्त संबंध बीमारी, गठिया, कब्ज, शुगर आदि। जामुन की गुठली के अंदर गिरी में 'जंबोलीन' नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी कारण मधुमेह में रोकथाम रहती है।
आम के पत्ते : आम के पत्ते शुगर लेवल को कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए लगभग 15 ताजे आम के पत्तों को लेकर एक गिलास पानी में उबाल दीजिए। सुबह इस पानी को छानकर पीजिए। इससे शुगर लेवल नियंत्रित रहता है।
करेला और आंवला : एक-एक चम्मच करेला और आंवले के जूस को मिला लीजिए। इस घोल को नियमित रूप से 2 महीने तक पीजिए। यह खून और यूरीन में शुगर के स्तर को कम करता है। करेला भी शुगर को नियंत्रित करता है। लेकिन करेला खाने से पहले उसके बीजों को निकाल दीजिए।
नीम का पत्ता : नीम के 10 पत्तों को रोजाना सुबह-सुबह पानी के साथ 3 महीने तक लीजिए। इससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहेगा। नीम खून को साफ करता है। यह कई अन्य रोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
कठुआ :
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अर्जुन की छाल : देश में तेजी से बढ़ रहे हृदयरोग को अर्जुन की छाल की मदद से रोका जा सकता है। इस छाल के चूर्ण के साथ कुछ औषधियां पुष्कर मूल, शंखपुष्पी, बिडंग, ब्राह्मी, वचा, गुगल, ज्योत्षिमती, पुनर्नवा, सर्पगंधा मिला देने के बाद तैयार औषधि हृदयरोग के लिए जिम्मेदार हानिकारक वसा को कम करने में कारगर है। हृदयाघात, हृदय शूल में अर्जुन की छाल से सिद्ध दूध अथवा 3 से 6 ग्राम छाल घी या गुड़ के शर्बत के साथ देते हैं। इसके अलावा अर्जुन के वृक्ष का उपयोग रक्तपित्त, प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, रक्तातिसार तथा क्षय और खांसी में भी लाभप्रद रहता है।
लहसुन : लहसुन का प्रयोग हृदयरोगों और कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन को गरीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है। वह इसलिए कि इसका लगातार प्रयोग मानव जीवन को स्वास्थ्य संवर्धक स्थितियों में रखता है। लहसुन एक संजीवनी है, जो कैंसर, अल्सर और हृदयरोग के विरुद्ध सुरक्षा कवच बन सकती है। त्वचा को दाग-धब्बेरहित बनाने, मुंहासों से बचने और पेट को साफ करने में भी लहसुन बढिय़ा है।
लौकी का रस : लौकी का एक कप रस निकालकर प्रतिदिन सेवन करने से भी हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है।
पीपल के पास रहना : औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इससे हृदय रोगियों को लाभ मिलता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल पाचन, खांसी, बुखार, दस्त, में सुधार करने के लिए भी उपयोगी है।