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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022 (15:12 IST)

Russia-Ukraine War भारत के लिए भी संकट, रूस-चीन-पाकिस्तान की दोस्ती खतरे की घंटी, पढ़ें पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का Exclusive Interview

रूस-यूकेन युद्ध पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का Exclusive interview

Russia-Ukraine War भारत के लिए भी संकट, रूस-चीन-पाकिस्तान की दोस्ती खतरे की घंटी, पढ़ें पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का Exclusive Interview - Russia-Ukraine war is a crisis for India too: Yashwant Sinha, former foreign minister
Russia Ukraine War के बाद अब दुनिया की निगाहें भारत के रूख पर टिक हुई है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अब भारत पर अपनी स्थिति को साफ करने को लेकर दबाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस बयान के बाद कि ''अमेरिका आज भारत से बात करेगा अभी तक पूरी तरह से इसका कोई समाधान नहीं निकला है'' भारत पर अपना रूख साफ करने का दबाव और भी बढ़ गया है। वहीं दूसरी ओर भारत के दोनों पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के खुलकर रूप से साथ आ जाने से भारत के सामने चुनौती बढ़ने के साथ नया खतरा भी खड़ा हो गया है। 
 
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत का क्या रूख हो सकता है या आने वाले समय में भारत की क्या भूमिका हो सकती है इसको लेकर ‘वेबदुनिया’ भारत के पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा से इस पूरे मामले एक्सक्लूसिव बातचीत की।  
 
रूस-यूक्रेन भारत के लिए भी संकट-‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि  अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से एक तरफा कार्रवाई (Unilateralism) होती रही है जिसमें दुनिया के ताकतवर देशों ने कमजोर देशों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की है। अभी जो रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है वह भी इसकी एकतरफा (Unilateralism) कार्रवाई का एक और उदाहरण है।
 
आज भारत के सामने पहले से ही कई चिंताएं हैं, इसलिए भारत को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए तटस्थ रहने से भारत का काम नहीं चलेगा और वह इसलिए नहीं चलेगा कि आज दुनिया में चीन अमेरिका के समकक्ष शक्तिशाली देश बन गया है और चीन और भारत के संबंध अच्छे नहीं हैं। इस समय चीन हमारी सीमाओं पर लगातार आक्रामक रहा है और हमारी भूमि पर कब्जा करता रहा है और कब्जा करके बैठा हुआ भी है। अगर इस मौके पर एकतरफा कार्रवाई का विरोध हम नहीं करते हैं तो चीन भी जब एक तरफा कार्रवाई करेगा तो दुनिया के दूसरे देश उसका विरोध नहीं करेंगे। 
 
ऐसे में भारत के लिए बहुत संकट की परिस्थिति है क्योंकि एक तरफ रूस हमारा सबसे पुराना और भरोसेमंद मित्र है और रूस की कार्रवाई के खिलाफ हमको बोलना होगा लेकिन हमको अपनी चिंताओं का ध्यान भी रखना है।
 
इसलिए भारत को एक प्रिंसिपल पोजीशन लेना चाहिए जिसमें भारत को यह कहना चाहिए कि अगर किसी देश को दिक्कत है तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस बात को उठा सकता हैं और विश्व शांति बहाली होनी चाहिए। भारत को तत्काल अपील करनी चाहिए रूस अपनी सेना को यूक्रेन से वापस बुलाएं और युद्ध पर पूर्णविराम लगाए। ऐसा नहीं करने से भारत के लिए चीन बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है अगर हम इस मौके पर पूरी तरह से तटस्थ रह गए तो।

रूस-चीन-पाकिस्तान की दोस्ती खतरे की घंटी?- रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत के दोनों पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के खुलकर रूस के साथ आ जाने को पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा एक बहुत बड़ा खतरा बताते हुए कहते है कि चीन और रूस की दोस्ती फिर पाकिस्तान की रूस के साथ बढ़ती निकटता भारत के लिए खतरे की घंटी है।

पाकिस्तान पहले से ही चीन के साथ था और अब यूक्रेन संकट के समय खुलकर रूस के साथ नजर आ रहा है जो दक्षिण एशिया में भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है। अगर भारत का पाकिस्तान या चीन के साथ कोई क्राइसिस होता है तब दुनिया के देश तटस्थ रह जाएगे ऐसे में रूस के साथ चीन और पाकिस्तान की निकटता भारत के नजरिए से ठीक नहीं है।
रूस या अमेरिका में से एक को चुनने का संकट?- रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका और रूस आमने सामने आने के बाद पूरी दुनिया दो गुटों में बंटी हुई दिखाई दे रही है ऐसे में क्या भारत के सामने भी गुटनिरेपक्ष की स्थिति को छोड़ने के संकट के साथ अमेरिका और रूप किसी एक को चुनने का संकट आ गया है,‘वेबदुनिया’ के इस सवाल पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि देखिए चुनने का सवाल नहीं है। शुरू से भारत अपनी विदेश नीति में एक प्रिंसिपल पोजीशन लेता रहा है। प्रिंसिपल पोजीशन का मतलब यह हुआ कि अगर कोई भारत का मित्र देश भी है अगर वह गलत कर रहा है तो उसकी गलती का अहसास उसे कराना चाहिए।
 
अमेरिका के खिलाफ पास हुआ था निंदा प्रस्ताव- रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत के रूख के सवाल पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि जब 1968 में सोवियत संघ ने चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण कर कब्जा किया था, उस समय भी भारतीय संसद में बहुत जोरदार बहस हुई थी और संसद में रूप के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने की मांग की गई थी लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने इसे नहीं माना था। 
 
वहीं 2003 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार के समय जब मैं विदेश मंत्री था तब अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया था और संसद में अमेरिका के खिलाफ प्रस्ताव पास करने को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने दोनों सदनों को चलने नहीं दिया था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ज्यादा संवेदनशील थी और संसद में अमेरिका के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव पास हुआ था।
शांति दूत की भूमिका में आ सकता है भारत- रूस-यूक्रेन विवाद में भारत की आने वाले समय की भूमिका पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि देखिए यूक्रेन का संकट रात भर में अचानक से नहीं आया है। रूस-यूक्रेन का संकट बहुत दिनों से बिल्डअप हो रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के देशों के साथ संबंध बनाकर भारत की एक विदेश नीति बनाने की कोशिश की है, तो ऐसे संकट के समय वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन से बात करते और भारत की जो दुनिया में शांति स्थापित करने की भूमिका रही है तो एक बार फिर भारत के पास मौका था कि उसको ऐसा प्रयास करना चाहिए।
 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते है कि रूस-यूक्रेन का संकट अचानक नहीं आया है,यह धीरे-धीरे बिल्डअप हुआ है। इस पूरे मुद्दे पर भारत को अपनी डिप्लोमेटिक भूमिका बखूबी निभानी चाहिए थी, यह एक ऐसा मौका था जब भारत को सचमुच में दुनिया को लोग एक शांति दूत के रूप में देख सकते थे। अभी भी देरी नहीं हुई है पहल करने की जरूरत है। भारत को कुछ ऐसे सिद्धांतों पर पहल करना चाहिए कि आने वाले दिनों में भारत के हितों की सुरक्षा हो सके
 
रूस भारत का पुराना दोस्त रहा है और भारत ने अमेरिका के साथ भी नजदीकी संबंध बनाए है। ऐसे में जब रूस और अमेरिका आमने सामने है जो भारत के सिवाए दुनिया में ऐसा कौन देश है जो दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर सकता है। शायद इसलिए यूक्रेन के लोगों ने भारत से अपील भी की थी।
 
तीसरे विश्व युद्ध की संभावना नहीं-रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद क्या तीसरे विश्व युद्ध की संभावना है इस सवाल पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा कहते हैं कि तीसरे विश्वयुद्ध की कोई संभावना नहीं है क्योंकि नाटो ने साफ कर दिया है कि वह अपनी सेना को नहीं भेजा और आमने-सामने की लड़ाई नहीं होगी। 
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