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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 6 मई 2024 (13:07 IST)

मन को शांत कैसे रखें? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

शरीर में पीड़ा होती है और मन में दुख होता है

Art of Living
दुख हमारे मन का बनाया हुआ है!  शरीर में 'पीड़ा' होती है और मन में 'दुख' होता है। यदि कोई मन से दुखी नहीं है तो वे शरीर की पीड़ा सह लेते हैं मगर यदि शरीर स्वस्थ रहे और आपका मन दुखी हो तो यह आपके शरीर में भी पीड़ा लाता है।  हम अक्सर समझते हैं कि हमारा मन हमारे शरीर के अन्दर है। लेकिन ऐसा नहीं है!

हमारा मन हमारे शरीर से भी बड़ा है इसलिए ये शरीर हमारे मन के भीतर है। हम जब भी खुश होते हैं तब हमारी चेतना विकसित होती है। और जब भी हमारी चेतना सिकुड़ती है तो हमारा मन दुखी हो जाता है, हम डिप्रेस्ड हो जाते हैं।
 
डिप्रेशन क्यों होता है? 
डिप्रेशन का यही कारण है कि हमारी चेतना सिकुड़ गयी है। जब आप नकारात्मक बातें करते हैं या सुनते हैं, इससे प्राणशक्ति का ह्रास होता है। जब आप दुखी होते हैं तब हमारे मस्तिष्क का पिछला हिस्सा, जिसे हम हिपोकम्पस कहते हैं वह सिकुड़ने लगता है। हमारे मस्तिष्क के बीच में एक भाग है जिसको अमगडाला कहते हैं, वह भी सिकुड़ने लगता है।  और जब अमगडाला सिकुड़ने लगता है तब हमारे शरीर की ताकत कम होने लगती है।  
 
लोग आत्महत्या क्यों करना चाहते हैं?  
मान लीजिये आपने एक कोट पहना है और वह बहुत टाइट है। तो आपको लगता है कि 'अरे इसको निकालो। इसमें से निकल जाओ।' ऐसे ही जब हमारा सूक्ष्म शरीर या प्राणमय कोष सिकुड़ जाता है, तो वह हमारे भौतिक शरीर से भी छोटा हो जाता है और इसलिए हमें बेचैनी होने लगती है, हमें डिप्रेशन महसूस होने लगता है और आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। लेकिन आत्महत्या इसका उपाय नहीं है ।  
 
मन में आत्महत्या का विचार आये  तो क्या करें? 
ऐसी स्थिति में गाना गायें, प्राणायाम करें, ध्यान करें  और  भोजन पर ध्यान दें। जब आप नियमित आसन, प्राणायाम और ध्यान करेंगे और सकारात्मक बातें सोचेंगे तो देखेंगे कि आपका प्राणमय कोष बड़ा होता जाएगा;  इससे आपकी ऊर्जा बढ़ेगी और फिर आप अपने आप अच्छा अनुभव करने लगेंगे।  जब हमारा 'सूक्ष्म शरीर' हमारे 'कारण शरीर' से बड़ा हो जाता है; तब मस्ती चढ़ती है, आनंद चढ़ता है। इसलिए आनंद में जाने के लिए प्राण शक्ति को बढ़ाना चाहिए। डिप्रेशन से बाहर आने के लिए, मन की ऊर्जा को; प्राणशक्ति को बढ़ाना पड़ेगा।  
 
मन के राग-द्वेष से बाहर कैसे निकलें? 
राग-द्वेष से बाहर निकलने के लिए पहला कदम यही समझना है कि 'आपका' मन आपके लिए समस्या खड़ी कर रहा है। ये जानना कि आपका 'मन' आपको परेशान कर रहा है; आपकी 50% समस्या हल कर देता है। बहुत से लोगों को तो ये होश भी नहीं होता कि वे अपने ही मन से परेशान हैं; वे लोग दुनिया को दोष देते रहते हैं; उन्हें लगता है कि दुनिया उन्हें परेशान कर रही है। तो राग-द्वेष अपने आप होते हैं फिर समाप्त हो जाते हैं, आप केवल उसके साक्षी बने रहें।
 
आपको कोई भी नहीं कर सकता है परेशान  
जीवन में मन की समस्याओं से बचने के लिए ज्ञान के पथ पर चलते रहें; योग वासिष्ठ पढ़ें, अष्टावक्र गीता पढ़ें; इससे आपका मन थम जाएगा। लेकिन यदि आप दिन भर आलतू- फालतू की बातें  करते रहेंगे, तरह-तरह की आलोचना करते रहेंगे तो आपका दिमाग ऐसे ही फिरता रहेगा।

इसीलिए संघ का बड़ा महत्व है। संघ में जब कोई व्यक्ति हमेशा वैराग्य की बात करता रहेगा तो आपके भीतर भी वैराग्य जम जाएगा लेकिन वहीं कोई वासना की बात करता रहे तो फिर वासना पकड़ लेगी। यह रहस्य है।  
 
सबसे ज़रूरी बात है कि आप ये जानें कि 'आप अविनाशी हैं' आपको तो कोई भी परेशान नहीं सकता फिर मन की क्या बात है! बादल आसमान में मंडरा सकते हैं, मगर आसमान को छिन्न-भिन्न नहीं कर सकते; यह असंभव है! असली बात तो यह है कि बादल तो आसमान को छू भी नहीं सकता। यह समझते ही आपका मन शांत हो जाएगा।
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