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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: जम्मू , रविवार, 11 जून 2023 (21:37 IST)

भारत-पाकिस्तान में लगातार 6ठी बार सीमा पर नहीं बंटेगा ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’

भारत-पाकिस्तान में लगातार 6ठी बार सीमा पर नहीं बंटेगा ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ - special story on baba chamliyal dargah mela
जम्मू। दस दिनों के उपरांत अर्थात 22 जून गुरुवार को रामगढ़ सेक्टर में चमलियाल सीमांत पोस्ट पर आयोजित किए जाने वाले बाबा चमलियाल के मेले में क्या इस बार भी लगातार छठी बार दोनों मुल्कों के बीच ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ बंटेगा या नहीं, सवाल फिर इसलिए उठने लगा है क्योंकि पाकिस्तानी रेंजरों ने इसकी बाबद बुलाई गई बैठक में शिरकत करने के बीएसएफ के न्योते का फिलहाल कोई जवाब ही नहीं दिया है।
 
यह भी सच है कि बंटवारे के बाद 76 सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वाह करते हुए पाकिस्तानी व भारतीय सेनाओं के जवान इस सीमा चौकी पर ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ बांट कर उन हजारों लोगों को सुकून पहुंचाते थे, जो चौकी पर स्थित बाबा दीलिप सिंह मन्हास अर्थात बाबा चमलियाल की दरगाह पर माथा टेकने आते थे लेकिन बावजूद इस आदान-प्रदान के इच्छाएं हमेशा ही बंटी हुई रही हैं। ये इच्छाएं उन पाकिस्तानियों की हैं जो 1947 के बंटवारे के बाद उस ओर चले तो गए लेकिन बचपन की यादें आज भी ताजा हैं। इस बार पाकिस्तानी नागरिकों को बाबा का प्रसाद भी नसीब नहीं होगा पाक रेंजरों के अड़ियलपन के कारण।
 
पिछले साल पाक रेंजरों ने अड़ियलपन दिखाते हुए इसमें शिरकत नहीं की थी तो वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना के कारण इस मेले को रद्द कर दिया गया था और वर्ष 2018 व 2019 में पाक रेंजरों ने न ही इस मेले में शिरकत की थी और न ही प्रसाद के रूप में ‘शक्कर’ और ’शर्बत’ को स्वीकारा था, क्योंकि वर्ष 2018 में 13 जून के दिन पाक रेंजरों ने इसी सीमा चौकी पर हमला कर चार भारतीय जवानों को शहीद कर दिया था तथा पांच अन्य को जख्मी।

तब भारतीय पक्ष ने गुस्से में आकर पाक रेंजरों को इस मेले के लिए न्यौता नहीं दिया था। पर अबकी बार वे इसका जवाब ही नहीं दे रहे हैं। नतीजतन, यही लगता है कि देश के बंटवारे के बाद से चली आ रही परंपरा इस बार भी टूट जाएगी। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि यह परंपरा टूटने जा रही हो बल्कि अतीत में भी पाक गोलाबारी के कारण कई बार यह परंपरा टूट चुकी है।
 
परंपरा के अनुसार पाकिस्तान स्थित सैदांवाली चमलियाल दरगाह पर वार्षिक साप्ताहिक मेले का आगाज वीरवार को होता है और अगले वीरवार को समापन। भारत-पाक विभाजन से पूर्व सैदांवाली तथा दग-छन्नी में चमलियाल मेले में शरीक हुए कई बताते हैं कि यह ऐतिहासिक मेला है।

पाकिस्तान के गांव तथा शहरों के लोग बाबा की मजार पर पहुंच कर खुशहाली की कामना करते हैं। भारत-पाक के बीच सरहद बनने के बाद मेले की रौनक कम हो गई। पहले मेले के सातों दिन बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। वर्तमान में मेले के आखिरी तीन-चार दिन ही अधिक भीड़ रहती है।

जिस दिन भारतीय क्षेत्र दग-छन्नी स्थित बाबा चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेला लगता है, उस दिन पाकिस्तान को तोहफे के तौर पर पवित्र शरबत और शक्कर भेंट की जाती है। भेंट किए गए शरबत शक्कर को सैदांवाली स्थित चमलियाल दरगाह ले जाकर संगत को बांटा जाता है। पाक श्रद्धालु कतारों में लग कर बाबा के पवित्र शरबत शक्कर हासिल करते हैं।
 
क्या है कहानी : जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है वह बाबा दीलिप सिंह मन्हास की समाधि है। इसके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली। इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काटकर उनकी हत्या कर डाली। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है कोई जानकारी नहीं है।
 
इस मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा ट्रालियों तथा टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ तथा ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता है। और अगर इस बार भी पाक रेंजरों का यही रवैया रहा तो यह लगातार छठी बार होगा की न ही पाक रेंजर पवित्र चाद्दर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए लाएंगें जिसे पाकिस्तानी जनता देती है और न ही वे प्रसाद को स्वीकार करेंगें।
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